~ डॉ. गीता शर्मा
हेपेटाइटिस लिवर को नुकसान पहुंचाने वाला एक ऐसा संक्रमण है जो वायरस के कारण शरीर में फैलता है। दुनियाभर में बड़ी तादाद में लोग इस बीमारी के शिकार हो रहे हैं।
खराब जीवनशैली के चलते होने वाले इस रोग के चलते लोगों के लिवर में दिनों दिन परेशाानी आने लगती है।
दरअसल, हेपेटाइटिस वायरल पांच तरीके का होता है। हेपेटाइटिस ए, बी सी, डी और ई हैं। हर वायरल अलग तरीके से शरीर को अपनी चपेट में लेता है। जहां टाइप बी और सी एक क्रोनिक रोग के तौर पर शरीर को नुकसान पहुंचाता है, तो वहीं ए, डी भी शरीर के लिए कम खतरनाक नहीं है।
इस संक्रामक रोग में लिवर में सूजन पाई जाती है। इससे पाचन क्रिया मंद हो जाती है और थकान का अनुभव होने लगता है। इसकी रोकथाम के चलते अब बच्चों को छोटी उम्र में ही टीकाकारण के ज़रिए सुरक्षा प्रदान की जाती है।
इसके अलावा सरकार एवं विभिन्न स्वास्थ्य संगठन हेपेटाइटिस के बारे में जागरुकता पैदा कर रहे हैं। इस जानलेवा रोग के जोखिम से बचने का सबसे जरूरी कदम है अपनी जीवनशैली में सुधार करना।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें,तो भारत में अब तक 40 मिलियन लोग हेपेटाइटिस बी और 6 से 12 मिलियन लोग हेपेटाइटिस सी से पीड़ित हैं।
इस वक्त दुनिया भर में लगभग 296 मिलियन लोग हेपेटाइटिस बी के शिकार हैं। हेपेटाइटिस के लक्षण बच्चों की अपेक्षा वयस्कों में जल्दी पकड़ में आ जाते हैं। वहीं, क्रोनिक हेपेटाइटिस बी धीमी गति से शरीर में बढ़ने लगता है।
गलत खानपान, दूषित पानी, ब्लड ट्रांसफ्यूजन और अल्कोहल का अनियंत्रित सेवन इस समस्या के कारण बन सकते हैं। भारत में इस समस्या को एक सीरियस पब्लिक हेल्थ प्रोब्लम के तौर पर देखा जा रहा है।
04 तरह का हो सकता है हेपेटाइटिस :
*1. हेपेटाइटिस ए :*
हेपेटाइटिस ए वायरस एचएवी संक्रमण के कारण होती है। ये एक एक्यूट शार्ट टर्म डिजीज़ है।
डब्ल्यू के मुताबिक सालाना 1.4 मिलयन लोग दुनियाभर में इस संक्रमण का शिकार होते हैं।, जो गंदे पानी को पीने से तेज़ी से फैलता है।
*2. हेपेटाइटिस बी :*
ये बाॅडी की एक क्रानिक कंडीशन है। इन्फेक्टेड खून के ट्रांसफ्यूशन से ये रोग फैलने लगता है।
सीडीसी के आंकड़ों के मुताबिक दुनियाभर में 826,000 लोग इस बीमारी का शिकार हो चुके हैं।
*3. हेपेटाइटिस सी :*
ये वायरस एचसीवीद्ध के कारण पनपने लगता है।
सीडीसी के अनुसारए लगभग 2.4 मिलियन अमेरिकी लोग इस बीमारी की चपेट में हैं। ये बीमारी संक्रमित खून और इंजेक्शन लगाने से हो जाता है।
*4. हेपेटाइटिस डी :*
ये रोग एचडीवी संक्रमण के कारण होता है। जो लोग पहले से एचबीवी वायरस की चपेट में होते हैं वे आसानी से इस वायरस की चपेट में आ जाते हैं।
यू संक्रमण हेपेटाइटिस बी के साथ होता है। इससे लिवर में सूजन की समस्या बढ़ने लगती है।
*हेपेटाइटिस के कारण :*
1. दूषित पानी :
पीने के लिए प्यूरिफाई या बाॅइल्ड वाॅटर का प्रयेाग करें। नल के पानी में सक्रंमण पनपने का खतरा रहता है। नल के पानी को डायरेक्ट पीने से बचें। इससे हेपेटाइटिस वायरस फैलने की संभावना रहती हैं।
साफ सफाई का ख्याल रखकर आप हेपेटाइटिस ए और ई के खतरे से बच सकते हैं। इसके अलावा बाज़ार में मिलने वाले पेय पदार्थ, कटे हुए फल और बासी खाना खाने से भी परहेज़ करें।
2. अल्कोहल :
शराब हमारे स्वास्थ्य के लिए मानसिक और शारीरिक दोनों तरीके से नुकसानदायक है। अगर आप हेपेटाइटिस से ग्रस्त है, तो शराब का सेवन करने से बचें। इससे लिवर संबधी समस्याओं का जोखिम बढ़ने लगता है।.
शराब लिवर को नुकसान पहुंचाने का काम करती है। साथ ही लिवर को शराब को प्रोसेस करने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
3. संक्रमित व्यक्ति से यौन संबंध :
वे लोग जो इस समस्या के शिकार है उन्हें सेक्सुअल रिलेशन से दूर रहना चाहिए। दरअसल, यौन गतिविधि से ये रोग तेज़ी से फैलने लगता है।
साथ ही आपके पार्टनर को भी संक्रमण अपनी चपेट में ले सकता है। इस परिस्थिति में कंडोम भी पूर्ण रूप से प्रोटेक्ट नहीं कर पाते हैं।
अगर आप इस रोग से ग्रस्त है, तो इस बारे में खुलकर अपने पार्टनर से बात करें और उसे इस खतरे से बचाएं।
*आवश्यक स्वास्थ्य परीक्षण :*
~लीवर फंक्शन टेस्ट
~लीवर बायोप्सी
~एबडॉमिनल अल्ट्रासाउंड
~मेगनेटिक रेज़ोनेंस इमेंजिंग यानि ~एमआरआई
~एंटीबॉडी टेस्ट
*उपचार :*
1. वैक्सीनेशन ज़रूरी :
हेपेटाइटिस रोग के लक्षण धीरे धीरे नज़र आने लगते हैं। आंखों में पीलापन, थकान, वज़न कम होना और बुखार समेत कई तरह की समस्याओं को अनुभव होने लगता है।
इससे बचने का सबसे सरल उपाय इसकी वैक्सीन है। अगर आप वैक्सीनेशन लेते हैं, तो आपका शरीर जल्द स्वस्थ और एक्टिव होने लगता है। वहीं छोटी उम्र में बच्चों को भी इसकी वैक्सीन लगवाना बेहद ज़रूरी है।
2 एक्सरसाइज़ अवश्य करें :
इस रोग से ग्रस्त लेाग अक्सर थकान का अनुभव करने लगते है। खुद को हेल्दी और फिट रखने के लिए नियमित तौर पर एक्सरसाइज कर ना ज़रूरी है। अगर आप हेपेटाइटिस के शिकार है, तो दिनभर में कुछ वक्त के लिए वर्कआउट करें।
इससे ब्लड सेल्स मज़बूत होने लगते है। इसके अलावा योग और प्राणायाम से भी शरीर को रोगों से लड़ने की शक्ति मिलती है।
3. डाइट का रखें ख्याल :
इस बीमारी से ग्रस्त मरीजों को अपनी डाइट में तरल पदार्थों के अलावा ब्रोकली, बीन्स, एवोकाडो और फूलगोभी का सेवन करना चाहिए।
इसके अलावा फाइबर रिच फलों और होल ग्रेन व्हीट का सेवन ज़रूरी है। इसके अलावा स्वीटनर्स के सेवन से बचें। ज्यादा शुगर आपके डाइजेशन को बिगाड़ने का काम कर सकती है। साथ ही हैवी मील्स लेने की जगह थोड़ थोड़ी देर में कुछ न कुछ खाते रहें।
*हेपेटाइटिस के लक्षण :*
1. पेट में दर्द रहना :
हेपेटाइटिस के मरीजों की पाचन क्रिया मंद हो जाती है। इसके चलते पेट में दर्द का अनुभव रहता है।
अगर आपके पेट में अक्सर दर्द रहता है, तो ऐसे में हेपेटाईटिस की संभावना बढ़ जाती है।
2. वज़न कम होना :
अचानक वज़न कम होना इस बीमारी का एक प्राथमिक लक्षण हो सकता है।
वज़न कम होने से शरीर में थकान और कमज़ोरी का अनुभव होने लगता है। ऐसे में मेडिकल जांच अवश्य कराएं।
3. खांसी जु़काम :
मरीज़ को फ्लू जैसे लक्षणों से होकर गुज़रना पड़ता है। अगर आप हेपेटाईटिस से ग्रस्त हैं, तो आपको शुरूआत में मामूली खांसी जु़काम जैसी समस्याओं से होकर गुज़रना पड़ता है।
4. पीलिया :
ऐसे में मरीज की स्किन पीली पड़ने लगती है। आंखों से लेकर नाखून तक पीले दिखने लगते हैं।
व्यक्ति सुस्त रहने लगता है। अगर इस तरह के लक्षण आपको नज़र आ रहे हैं, तो इसका इलाज करवाना बेहद ज़रूरी है।
5. भूख न लगना :
अगर आपको कई दिनों से लगतार ठीक से भूख नहीं लग पा रही है, तो ऐसे में इस बीमारी की संभावना बढ़ जाती है।
मेटाबॉलिज्म को प्रभावित करने वाला इस रोग के चलते भूख न लगना और बार बार उल्टी और जी मचलाने लगता है।
*हेपेटाइटिस का निदान एवं उपचार :*
1. डॉक्टरी जांच है ज़रूरी :
अगर आप हेपेटाइटिस के लक्षणों जैसे पेशाब और आंखों में पीलापन, पेट में दर्द और भूख न लगना जैसी समस्याएं महसूस हो रही हैं, तो इसके लिए मेडिकल चेकअप अवश्य करवाएं। साथ ही ले रही दवाओं के बारे में भी डॉक्टर को जानकारी दें।
2. लिवर फंक्शन टेस्ट :
ब्लड सैपल्स की जांच करवाने पर रिपोर्ट डॉक्टर को दिखांए।
इससे आप इस बात को जांच पाएंगे कि आपके लिवर में कितनी सूजन है और आपको किस प्राकर के उपचार की अवश्यकता है।
3. चिकित्सकीय उपक्रम :
एक्यूट हेपेटाइटिस में दवाओं की मदद और स्वास्थ्य का ख्याल रखने से कुछ महीनों के भीतर राहत मिलने की उम्मीद होती है।
क्रॉनिक हेपेटाइटिस होने पर डॉक्टरों की ओर से बताई गई दवा लेनी बेहद आवश्यक है। इसके अलावा लीवर ट्रांसप्लैनटेशन के ज़रिए भी इस समस्या को हल किया जा सकता है।
4. मेडिसिन्स :
हेपेटाइटिस सी से बचाव के लिए जिस मेडिसिन कॉम्बीनेशन का प्रयोग किया जाता है। उसमें पेगिलेटेड इंटरफेरॉन और रिबाविरिन शामिल हैं। पेगिलेटेड इंटरफेरॉन एक इंजेक्शन है, जो मरीज को हर सप्ताह लगाया जाता है।
रिबाविरिन एक दवा हैए जो दिन में दो बार दी जाती है। इस उपचार को आप अपने डॉक्टर की सलाह के बाद ही शुरू करें।
इसके अलावा कीमोथेरेपी भी उपचार का एक रूप है, जिसे सहन करने की क्षमता हर इंसान में अलग अलग प्रकार की होती है।
*जरूरी सावधानियां :*
~बच्चों में हेपेटाइटिस की बीमारी की रोकथाम के लिए वेक्सीनेशन जरूरी समझें।
~ थकान का अनुभव होने पर शरीर को आराम दें।
~ शरीर के किस भी अंग पर टैटू बनवाते वक्त सेनिटाइज़ड उपकरणों का इस्तेमाल ज़रूरी है
~अपने शेविंग रेज़र और टूथब्रश जैसी मूलभूत चीजों को अन्य लोगों से शेयर करने से बचें।
~अनप्रोटेक्टिव सेक्स करने से परहेज करें।
~शराब का अत्यधिक सेवन करने से बचें.