अग्नि आलोक
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*बी बी सी का यूं चले जाना हमेशा खलेगा* 

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*वे फिल्म जगत का जीवंत इतिहास थे*

*धर्मेश यशलहा* 

11नवम्बर की शाम जब यह मालूम हुआ कि बी बी सी याने ब्रज भूषण चतुर्वेदी का 86  साल की आयु में निधन हो गया तो बहुत ही सदमा लगा, 

भानपुरा (जिला मंदसौर) में जन्में ब्रजभूषण चतुर्वेदी ने फिल्म पत्रकारिता में जो ख्याति देश में पाई, ऐसे बिरले ही व्यक्तित्व होते हैं,भारत के 52 में से 51 अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव की कहानी को अपनी आंखों देखी बताना हर किसी के बस की बात नहीं थी, उनके फिल्मी जुनून और जानकारियों के ग्यान को देखकर ही तो ख्यात फिल्म निर्देशक -निर्माता रामानंद सागर (रामायण धारावाहिक फेम)ने उनका नाम *बीबीसी* रख दिया था, एक शिक्षक के रुप में अपनी सेवाएं देते हुए वे फिल्म पत्रकारिता में ऐसे रम गए कि उनकी कलम का जादू पूरे देश के पत्र- पत्रिकाओं में छाया रहा, अनेकों सम्मान मिले,2021 में उन्होंने अपनी आत्मकथा (बायोग्राफी) पुस्तक लिखी, पिछले साल 2022 में अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह और फिल्म संसार के फोटो की झलकियां दूसरी पुस्तक ” *चित्रकथा*” में प्रस्तुत की, *सुचित्रा* फिल्म  डायरी से तो उनका लम्बा नाता रहा,1952 से 2022 तक अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों के साक्षी बने, 2004 से लगातार गोआ गए, वहीं 23 फिल्म समारोहों की कथा सुनाई, उन्होंने 72 वर्ष के फिल्मी सफर में हजारों लेख , समीक्षाएं लिखी,देश की तो सभी फिल्म हस्तियों से वे मिले, रामानंद  सागर,बी आर चौपडा, ताराचंद  बडजत्या(राजश्री),धर्मेन्द्र,अशोक कुमार, राजेन्द्र कुमार, मीनाकुमारी, मधु बाला,नर्गिस, राजकुमार,  देवानंद, संजीव कुमार, किशोर कुमार, अमिताभ बच्चन,नौशाद अली, रवीन्द्र जैन, शर्मिला टैगोर, यश चौपडा, शाहरुख खान,  सलमान खान, तब्बु ,अनुपम खेर,कामिनी कौशल,अनेकानेक नाम हैं, 60 से अधिक  फिल्म  समारोह  के साक्षी बने, 

अपने पुत्र और पत्नी को खो देने (निधन) के बावजूद वे हमेशा सक्रिय रहे, हमेशा मिलनसार, हंसमुख, निडर स्वभाव प्रभावित करता रहा,

वे अपने स्वास्थ्य के प्रति हमेशा सजग रहे, मल्हाराश्रम स्कूल में अपने मार्निग समूह को कभी नही छोडते, तभी तो स्कूटर दुर्घटना के पैर में चोट आने और पट्टा चढने के बाद वाकर के सहारे ही मल्हाराश्रम स्कूल  में आ जाते थे, मेरे साथ ही वे मेरे पिताजी निवृत्त शिक्षक महेंद्र सिंह यशलहा के भी मित्र थे, वे हमारे घर आते रहे, घंटों बात करते और पुरानी यादों में खो जाते,सप्ताह पहले भी आए, उनसे इंदौर प्रेस क्लब में भी मेरी मुलाकात हुई ,वे सरताज  अकादमी की गतिविधियों ,बच्चों को बैडमिंटन सिखाने  एवं शारीरिक  व्यायाम और दौड कराने, मेरे लेखन  से मुझसे बहुत खुश होते, मल्हाराश्रम  के साथ ही इंडियन काफी हाउस भी उनकी बैठक का केंद्रबिंदु रहा, शासकीय कर्मचारी बनकर शिक्षक, व्याख्याता,उप प्राचार्य के रुप में नूतन विद्यालय चिमनबाग, मानपुर, बडनगर, संयोगितागंज नंबर 2, दतोदा(देवास), स्वामी विवेकानंद विद्यालय में 40 वर्षों तक अपनी सेवाएं दी, दो साल  संस्कृत महाविद्यालय में भी डेपुटेशन पर काम किया, शिक्षक और फिल्म  पत्रकार  के रुप में अपने काम,  समर्पण  से नाम किया,

 इंदौर के श्रीराम ताम्रकर, जयप्रकाश चौकसे के बाद उनका जाना एक खालीपन छोड़ गया है,धनतेरस (31 अक्टूबर 1937 ) को जन्में और फिल्म संसार का रुप बिखेर कर रुप चौदस(11नवम्बर 2023) को बिदाई दी, वे फिल्म जगत के किदवंती, बेमिसाल फिल्म समीक्षक के रुप में हमेशा याद किए जाएंगे 

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