आरती शर्मा
बिहार के विश्वप्रसिद्ध हरिहरक्षेत्र मेले या सोनपुर मेले की शुरुआत हो चुकी है। अपने धार्मिक महत्व के अलावा यह एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला भी है और बिहार की ग्रामीण सभ्यता और संस्कृति का आईना भी।
इस मेले की पृष्ठभूमि में यह पौराणिक कथा है :
प्राचीन काल में यहां गंडक के तट पर गज और ग्राह के बीच लंबी लड़ाई चली थी। गज की पुकार पर विष्णु या हरि और शिव अथवा हर ने बीच-बचाव कर इस लड़ाई का अंत कराया था।
कथा प्रतीकात्मक है। प्राचीन भारत वैष्णवों और शैव भक्तों के बीच सदियों तक चलने वाली लड़ाई का साक्षी रहा था। अपने आराध्यों की श्रेष्ठता स्थापित करने के इस संघर्ष ने हजारों लोगों की बलि ली थी। इसकी समाप्ति के लिए गुप्त वंश के शासन काल में कार्तिक पूर्णिमा को वैष्णव और शैव आचार्यों का एक विराट सम्मेलन सोनपुर के गंडक तट पर आयोजित किया गया। यह सम्मेलन दोनों संप्रदायों के बीच समन्वय की विराट कोशिश साबित हुई जिसमें विष्णु और शिव दोनों को ईश्वर के दो रूप मानकर विवाद का सदा के लिए अंत कर दिया गया।
उसी दिन की स्मृति में यहां विष्णु और शिव की संयुक्त मूर्तियों के साथ हरिहर नाथ मंदिर की स्थापना और गंडक नदी में स्नान कर भगवान हरिहर नाथ कीपूजा शुरू हुई थी। कालांतर में यहां ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ पशुओं की खरीद-बिक्री का मेला लगने लगा।
आधुनिक काल में इसने एक बड़े व्यावसायिक मेले का रूप धर लिया है। इस मेले में बच्चों,युवाओं और बुजुर्गों की भी रुचि की हर चीज उपलब्ध है। खेल-खिलौने भी, मनोरंजन भी, धर्म-कर्म भी, घुमक्कड़ी भी और खेती तथा पशुपालन के सामान भी।
पिछले डेढ़ हजार सालों तक बिहार की ग्रामीण संस्कृति और ग्रामीण कला तथा शिल्प का प्रतिनिधित्व करने वाले हरिहरक्षेत्र मेले का अब शहरीकरण होने लगा है। फिर भी यहां आज भी ऐसी बहुत सारी चीजें बची हुई हैं जिन्हें देख और महसूस कर अपनी मिट्टी, अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ने का सुख मिलता है।