गुलशन राय खत्री
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे भले ही कुछ भी हों लेकिन इन नतीजों से एक बार साफ है कि कांग्रेस ने पहली बार जमकर और आक्रामक चुनाव लड़ा। हालांकि रविवार को पता चलेगा कि कांग्रेस को उसकी मेहनत का कितना फल मिला लेकिन इस बार ये जरुर है कि कांग्रेस को बहुमत मिले या हार लेकिन इतना जरुर है कि कांग्रेस ने इस बार एक योद्धा की तरह लड़ाई लड़ी, पूरे मन से लड़ी। ऐसा नहीं कि आधे अधूरे मन से या फिर एक के बाद एक गलतियां करते हुए।
कांग्रेस का ये यू टर्न भले ही उसे 2024 में सत्ता न दिलाए लेकिन इसके बाद उसकी जमीन मजबूत होनी शुरू हो गई है। पहले हिमाचल प्रदेश और फिर कर्नाटक में चुनावी जीत के बाद एक साथ पांच राज्यों में उसने न सिर्फ प्रचार के मामले में बल्कि रणनीति के मामले में भी जमीनी स्तर पर काम किया। यही वजह है कि बीते दस वर्षों में ये पहला मौका है, जबकि चुनाव से ऐन पहले कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं की गिनती नाम भर की रही है। ये एक तरह से कांग्रेस के अपने रंग में वापस आने का संकेत नजर आ रहा है।
दरअसल, कांग्रेस में इतने बड़े बदलाव के लिए कोई एक नेता को श्रेय नहीं दिया जा सकता लेकिन सबसे अधिक श्रेय राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे को जरुर जाता है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का असर चुनावों पर नजर आ रहा है। यही नहीं, इस यात्रा ने राहुल गांधी की इमेज में भी जबरदस्त परिवर्तन किया है। इसके अलावा कांग्रेस ने जिस तरह से अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी गांधी परिवार से इतर मल्लिकार्जुन खरगे को सौंपी, उसने भी कांग्रेस की तस्वीर बदलने में मदद की है। खरगे के अध्यक्ष बनने का सबसे अधिक फायदा ये रहा है कि वे किसी एक गुट के नहीं माने जाते। उनके कार्यकाल में कई क्षत्रपों के बीच उन्होंने समन्वय बनाने में भी सहायता की है। हालांकि गांधी परिवार की उसमें भी भूमिका रही है लेकिन इन बैठकों में बतौर पार्टी अध्यक्ष खरगे ने भी अपना असर दिखाया। नतीजा ये है कि राजस्थान में गहलोत और सचिन पायलट के बीच न सिर्फ युद्ध विराम हुआ बल्कि दोनों एकजुट होकर चुनाव लड़ते भी नजर आए।
आगे क्या
पांच राज्यों के चुनावी नतीजे अगर कांग्रेस के पक्ष में आएं या नहीं, लेकिन अगर उसने दो या तीन राज्यों में जीत हासिल कर ली तो भारतीय राजनीति में उसकी स्थिति मजबूत होगी और अगले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और जोर शोर से लड़ाई लड़ेगी। लेकिन उसे अभी भी कई मोर्चों पर लड़ना होगा। 2018 में कांग्रेस ने छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में जीत हासिल की थी लेकिन लोकसभा चुनाव में उसे इन राज्यों में ही निराश होना पड़ा था। ऐसे में ये कहना संभव नहीं है कि 2024 में कांग्रेस का प्रदर्शन सुधर ही जाएगा।