अग्नि आलोक
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*आइए मेरे साथ, पाताल लोक हो आते हैं*

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     ~ अनामिका (प्रयागराज)

आर्ष साहित्य निकटस्थ सृष्टि को तीन प्रमुख भागों में बांटता है : देवलोक, पृथ्वी लोक और पाताल लोक। देवलोक (इंद्रलोक) हिमालय और उसके आसपास के क्षेत्र से लेकर आसमान तक. पृथ्वी लोक अर्थात जहां भी जल, जंगल और समतल भूमि रहने लायक है. पाताल लोक अर्थात रेगिस्तान और समुद्रतट व उसके अंदर के क्षेत्र।
पाताल लोक 7 प्रकार के बताए गए हैं। जब हम यह कहते हैं कि विष्णु ने राजा बलि को पाताल लोक का राजा बना दिया था तो किस पाताल का? सात पातालों में से एक पाताल का नाम पाताल ही है।
पाताल लोक की मूल स्थिति पृथ्वी के नीचे बताई गई है। नीचे से अर्थ समुद्र में या समुद्र के किनारे। पाताल लोक में नाग, दैत्य, दानव और यक्ष रहते हैं। राजा बालि को विष्णु ने पाताल के सुतल लोक का राजा बनाया है और कहा था कि वह तब तक राज करेगा, जब तक कि कलियुग का अंत नहीं हो जाता।
राज करने के लिए किसी स्थूल शरीर की है जरूरत नहीं होती, सूक्ष्म शरीर से भी काम किया जा सकता है। पौराणिक मिथक के अनुसार राजा बलि अभी भी जीवित हैं और साल में एक बार पृथ्वी पर आते हैं। प्रारंभिक काल में केरल के महाबलीपुरम में उनका निवास स्थान था।
पुराणों के अनुसार इस ब्रह्मांड में पृथ्वी, वायु, अंतरिक्ष, आदित्य (सूर्य), चंद्रमा, नक्षत्र और ब्रह्मलोक हैं। धरती शेष पर स्थित है। शेष अर्थात खाली स्थान। खाली स्थान में भी बचा हुआ स्थान ही तो होता है।

आदि ग्रंथोँ में त्रैलोक्य का वर्णन मिलता है। ये 3 लोक हैं :

  1. कृतक त्रैलोक्य
  2. महर्लोक
  3. अकृतक त्रैलोक्य।
    कृतक और अकृतक लोक के बीच महर्लोक स्थित है। कृतक त्रैलोक्य जब नष्ट हो जाता है, तब वह भस्म रूप में महर्लोक में स्थित हो जाता है। अकृतक त्रैलोक्य अर्थात ब्रह्म लोकादि, जो कभी नष्ट नहीं होते।

विस्तृत वर्गीकरण के मुताबिक 14 लोक हैं : 7 तो पृथ्वी से शुरू करते हुए ऊपर और 7 नीचे। ये हैं :
ऊपर वाले लोक हैं भूर्लोक, भुवर्लोक, स्वर्लोक, महर्लोक, जनलोक, तपोलोक और ब्रह्मलोक। नीचे वाले लोक हैं अतल, वितल, सतल, रसातल, तलातल , महातल और पाताल।

  1. कृतक त्रैलोक्य :
    कृतक त्रैलोक्य को त्रिभुवन भी कहते हैं. यह लोक नश्वर है। गीता के अनुसार यह परिवर्तनशील है। इसकी एक निश्‍चित आयु है। इस कृतक ‍त्रैलोक्य के 3 प्रकार है : भूलोक, भुवर्लोक, स्वर्लोक (स्वर्ग)।
    अ. भूलोक :
    जितनी दूर तक सूर्य, चंद्रमा आदि का प्रकाश जाता है, वह पृथ्वी लोक कहलाता है। हमारी पृथ्वी सहित और भी कई पृथ्वियां हैं। इसे भूलोक भी कहते हैं।
    ब. भुवर्लोक :
    पृथ्वी और सूर्य के बीच के स्थान को भुवर्लोक कहते हैं। इसमें सभी ग्रह-नक्षत्रों का मंडल है।
    स. स्वर्लोक :
    सूर्य और ध्रुव के बीच जो 14 लाख योजन का अंतर है, उसे स्वर्लोक या स्वर्गलोक कहते हैं। इसी के बीच में सप्तर्षि का मंडल है।

भूलोक की स्थिति :
भूलोक को कई भागों में विभक्त किया गया है। इसमें भी इंद्रलोक, पृथ्‍वी और पाताल की स्थिति का वर्णन है। हमारी इस धरती को भूलोक कहते हैं। संपूर्ण भूलोक को 7 द्वीपों में बांटा गया है- जम्बू, प्लक्ष, शाल्मली, कुश, क्रौंच, शाक एवं पुष्कर। जम्बूद्वीप सभी के बीचोबीच है।
सभी द्वीपों में पाताल की स्थिति का वर्णन मिलता है।

पाताल से जुड़े पौराणिक प्रसंग :
ग्रंथो में पाताल लोक से संबंधित असंख्य घटनाओं का वर्णन मिलता है। उदाहरणस्वरूप एक बार पार्वती के कान की बाली (मणि) यहां गिर गई थी और पानी में खो गई। खूब खोज-खबर की गई, लेकिन मणि नहीं मिली।
बाद में पता चला कि वह मणि पाताल लोक में शेषनाग के पास पहुंच गई है। जब शेषनाग को इसकी जानकारी हुई तो उसने पाताल लोक से ही जोरदार फुफकार मारी और धरती के अंदर से गरम जल फूट पड़ा। गरम जल के साथ ही मणि भी निकल पड़ी।
पाताल लोक के बारे में सबसे लोकप्रिय प्रसंग विष्णु के अवतार वामन और राजा बलि का माना जाता है। बलि ही पाताल लोक के राजा माने जाते थे।

रामायण में अहिरावण द्वारा राम-लक्ष्मण का हरण कर पाताल लोक ले जाने पर हनुमान के वहां जाकर अहिरावण का वध करने का प्रसंग आता है। इसके अलावा भी ब्रह्मांड के 3 लोकों में पाताल लोक का भी धार्मिक महत्व बताया गया है।

पातालगमन के पथ :
आपने धरती पर ऐसे कई स्थानों को देखा या उनके बारे में सुना होगा जिनके नाम के आगे पाताल लगा हुआ है, जैसे पातालकोट, पातालपानी, पातालद्वार, पाताल भैरवी, पाताल दुर्ग, देवलोक पाताल भुवनेश्वर आदि।
नर्मदा नदी को भी पाताल नदी कहा जाता है। नदी के भीतर भी ऐसे कई स्थान होते हैं, जहां से पाताल लोक जाया जा सकता है।
समुद्र में भी ऐसे कई रास्ते हैं, जहां से पाताल लोक पहुंचा जा सकता है। धरती के 75 प्रतिशत भाग पर तो जल ही है। पाताल लोक कोई कल्पना नहीं।

ऐसी कई गुफाएं हैं, जहां से पाताल लोक जाया जा सकता है। ऐसी गुफाओं का एक सिरा तो दिखता है लेकिन दूसरा कहां खत्म होता है, इसका किसी को पता नहीं।
जोधपुर के पास भी ऐसी गुफाएं हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि इनका दूसरा सिरा आज तक किसी ने नहीं खोजा।
पिथौरागढ़ में भी हैं पाताल भुवनेश्वर गुफाएं। यहां पर अंधेरी गुफा में देवी-देवताओं की सैकड़ों मूर्तियों के साथ ही एक ऐसा खंभा है, जो लगातार बढ़ रहा है।
बंगाल की खाड़ी के आसपास नागलोक होने का जिक्र है। यहां नाग संप्रदाय भी रहता था।

समुद्र तटीय और रेगिस्तानी इलाके भी थे पाताल :
समुद्र के तटवर्ती इलाके और रेगिस्तानी क्षेत्र को पाताल कहा जाता था। इतिहासकार मानते हैं कि वैदिक काल में धरती के तटवर्ती इलाके और खाड़ी देश को पाताल में माना जाता था। राजा बलि को जिस पाताल लोक का राजा बनाया गया था उसे आजकल सऊदी अरब का क्षेत्र कहा जाता है।
माना जाता है कि मक्का क्षे‍त्र का राजा बलि ही था और उसी ने शुक्राचार्य के साथ रहकर मक्का मंदिर बनाया था। हालांकि यह शोध का विषय है।
मिथक के अनुसार जब देवताओं ने दैत्यों का नाश कर अमृतपान किया था तब उन्होंने अमृत पीकर उसका अवशिष्ट भाग पाताल में ही रख दिया था. तभी से वहां जल का आहार करने वाली असुर अग्नि सदा उद्दीप्त रहती है। वह अग्नि अपने देवताओं से नियंत्रित रहती है और वह अग्नि अपने स्थान के आस-पास नहीं फैलती।
इसी कारण धरती के अंदर अग्नि है अर्थात अमृतमय सोम (जल) की हानि और वृद्धि निरंतर दिखाई पड़ती है। सूर्य की किरणों से मृतप्राय पाताल निवासी चन्द्रमा की अमृतमयी किरणों से पुन: जी उठते हैं।

पाताल के स्वरूप और पाताल भूमि :
पुराणों के अनुसार भू-लोक यानी पृथ्वी के नीचे 7 प्रकार के लोक हैं जिनमें पाताल लोक अंतिम है। पाताल लोक को नागलोक का मध्य भाग बताया गया है। पाताल लोकों की संख्या 7 बताई गई है।
विष्णु पुराण के अनुसार पूरे भू-मंडल का क्षेत्रफल 50 करोड़ योजन है। इसकी ऊंचाई 70 सहस्र योजन है। इसके नीचे ही 7 लोक हैं जिनमें क्रम अनुसार पाताल नगर अंतिम है।
सात पाताल लोकों के नाम हैं : 1. अतल, 2. वितल, 3. सुतल, 4. रसातल, 5. तलातल, 6. महातल और 7. पाताल।
जो अंतिम पाताल है वहां की भूमियां शुक्ल, कृष्ण, अरुण और पीत वर्ण की तथा शर्करामयी (कंकरीली), शैली (पथरीली) और सुवर्णमयी हैं। वहां दैत्य, दानव, यक्ष और बड़े-बड़े नागों और मत्स्य कन्याओं की जातियां वास करती हैं। वहां अरुणनयन हिमालय के समान एक ही पर्वत है। कुछ इसी प्रकार की भूमि रेगिस्तान की भी रहती है।

सातों पातालों के राजा :

  1. अतल :
    अतल में मय दानव का पुत्र असुर बल रहता है। उसने छियानवे प्रकार की माया रची है।
  2. वितल :
    उसके वितल लोक में भगवान हाटकेश्वर नामक महादेवजी अपने पार्षद भूतगणों सहित रहते हैं। वे प्रजापति की सृष्टि वृद्धि के लिए भवानी के साथ विहार करते रहते हैं। उन दोनों के प्रभाव से वहां हाट की नाम की एक सुंदर नदी बहती है।
  3. सुतल :
    वितल के नीचे सुतल लोक है। उसमें महायशश्वी पवित्रकीर्ति विरोचन के पुत्र बलि रहते हैं। वामन रूप में भगवान ने जिनसे तीनों लोक छीन लिए थे।
  4. तलातल :
    सुतल लोक से नीचे तलातल है। वहां त्रिपुराधिपति दानवराज मय रहता है। मयदानव विषयों का परम गुरु है।
    5.महातल :
    उसके नीचे महातल में कश्यप की पत्नी कद्रू से उत्पन्न हुए अनेक सिरों वाले सर्पों का ‘क्रोधवश’ नामक एक समुदाय रहता है। उनमें कहुक, तक्षक, कालिया और सुषेण आदि प्रधान नाग हैं। उनके बड़े-बड़े फन हैं।
  5. रसातल :
    इसके नीचे रसातल में पणि नाम के दैत्य और दानव रहते हैं। ये निवातकवच, कालेय और हिरण्यपुरवासी भी कहलाते हैं। इनका देवताओं से सदा विरोध रहता है।
  6. पाताल :
    रसातल के नीचे पाताल है। वहां शंड्‍ड, कुलिक, महाशंड्ड, श्वेत, धनंजय, धृतराष्ट्र, शंखचूड़, कम्बल, अक्षतर और देवदत्त आदि बड़े क्रोधी और बड़े-बड़े फनों वाले नाग रहते हैं। इनमें वासुकि प्रधान है। उनमें किसी के 5, किसी के 7, किसी के 10, किसी के 100 और किसी के 1000 सिर हैं।उनके फनों की दमकती हुई मणियां अपने प्रकाश से पाताल लोक का सारा अंधकार नष्ट कर देती हैं।
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