अग्नि आलोक
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हम उनके हर वार पर मुस्कुराते रहे

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मुनेश त्यागी

ज़ालिम राहों में कांटे बिछाते रहे,
हम खुदा की कसम मुस्कुराते रहे।

हमने दुश्मनों को भी हरा ही दिया
हम उनके हर वार पर मुस्कुराते रहे।

मक्कारियां तो उसने बहुत कीं मगर
हम साजिशों को उसकी हराते रहे।

हम भी पैरों को जमाकर खड़े ही रहे
ना चाहकर भी वो लड़खड़ाते रहे।

बचना तो उसने बहुत चाहा था मगर
हम भी जान पूछ कर टकराते रहे।

मौका तो उनको दिया था बहुत
संभल ना सके वो हड़बड़ाते रहे।

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