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शिव-प्रतीकों का निहितार्थ*

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          ~दिव्यांशी मिश्रा, भोपाल 

शिव-चित्रण के अहम पहलुओं का एक विश्लेषण :


1. गंगा का सिर से बहना :
इसका अर्थ है; किसी भी व्यक्ति, जिसका शुद्ध विचार 365 दिनों के लिए एक सहज निर्बाध ढंग से व्यक्त किया जा रहा है; और जो कोई इस तरह के प्रवाह में एक डुबकी लेता है, दैवीय शुद्ध हो जाता है।
2. माथे पर आधा चाँद :
मन और अनंत शांति के साथ चित्त-संतुलन।
3. तीसरा नेत्र :
अमोघ अंतर्ज्ञान की शक्ति के अधिकारी और भौंहों के मध्य से ब्रह्मांड को अनुभव-दर्शन करने की क्षमता से युक्त।
4. गले में नाग :
एकाग्रता की शक्ति और सांप की तीव्रता के साथ ध्यान में तल्लीन।
5. शरीर पर राख :
किसी भी क्षण में मृत्यु के आगमन के बारे में मनुष्य को भूलना नहीं चाहिए।
6. त्रिशूल :
ब्रह्मांड सर्वव्यापी परमात्मा् की शक्ति द्वारा आयोजित किया जाता है और यह ब्रह्मांड मौलिक तीन क्षेत्रों (भौतिक, सूक्ष्म और कारण) में विभाजित है; जो अस्तित्व के आयाम हैं।
7. डमरू त्रिशूल से आबद्ध :
स्पंदन इस पूरे ब्रह्मांड की प्रकृति में है और सब कुछ आवृत्तियों में भिन्नता से बना है; सभी तीन क्षेत्र विभिन्न आवृत्तियों के बने होते हैं और ब्रह्मांडीय चेतना द्वारा प्रकट, एक साथ बंधे हैं।
8.ऋषियों-राक्षसों का साथ :
निरपेक्ष चेतना या परमात्मा सभी आत्माओं का एकमात्र स्रोत है, इस प्रकार, अपने सभी बच्चों को प्यार करता है। हमारे कर्म हमें असुर या देवता बना रहे हैं।
9. नशा :
शिव (कूटस्थ चेतना) के साथ एक आत्मा के मिलन के समय में चमत्कारिक नशा, शराब की बोतलों के कई लाख से अधिक है।
10 कैलाश वास :
शांत वातावरण में आध्यात्मिकता का घर है। शिव हिंदुओं के लिए ही नहीं हैं, मानवमात्र के लिए हैं।
11. पार्वती पत्नी :
प्रकृति और ब्रह्मांडीय चेतना सदा एक दूसरे से विवाहित हैं। दोनों एक दूसरे से सदा अविभाज्य हैं। प्रकृति और परमात्मा का नृत्य एक साथ, क्योंकि, पूर्ण निरंतर चेतना (परम सत्य) ब्रह्मांडीय चक्र की शुरुआत में द्वंद्व पैदा करते हैं।
12. योगीरूप :
समाविष्ट आत्मा ( जीव), योग के विज्ञान के माध्यम से ब्रह्मांडीय चेतना के साथ एकता को प्राप्त करने के लिए है। योग ही उसका सिद्धांत है।
13. ज्योतिर्लिंग :
लिंग एक संस्कृत शब्द है और इसका अर्थ “प्रतीक” होता है। ब्रह्मांडीय चेतना भौंहों के मध्य में गोलाकार प्रकाश के रूप में प्रकट होती है।
यह आत्मबोध या आत्मज्ञान के रूप में कहा जाता है। समाविष्ट आत्मा प्रकृति के द्वंद्व और सापेक्षता की बाधाओं को पार करती है और मुक्ति को प्राप्त होती है।
14. शिवलिंग पर दूध :
सर्वशक्तिमान भगवान से प्रार्थना करना ; भौंहों के मध्य में, मेरे अंधकार को दूधिया प्रकाश में बदलना।शिवलिंग आमतौर पर काला इसलिए होता है क्योंकि साधारण मनुष्य के भ्रूमध्य में अन्धकार होता है जिसको दूधिया प्रकाश में बदलना ही मानव का वेदानुमत सर्वोत्तम कर्म है। इसका गीता में भी उल्लेख है।
15.धतूरा प्रसाद :
भगवान से प्रार्थना, आध्यात्मिक नशा करने के लिए अनुदान।
16. महेश्वर :
शिव परमेश्वर ( पारब्रह्म ) नहीं है, क्योंकि परम चेतना अंतिम वास्तविकता है जो सभी कंपन से परे है। कूटस्थ चैतन्य एक कदम पहले है।
17. नंदी :
सांड धर्म का प्रतीक है। इस जानवर में लंबे समय तक के लिए बेचैनी के बिना शांति के साथ स्थिर खड़े़े रहने की अद्वितीय और महत्वपूर्ण विशेषता है। स्थिरता – आध्यात्मिकता का वाहन है।
18. बाघ की छाल :
प्राणिक प्रवाह का भूमि में निर्वहन रोकना आवश्यक।
19. राम- कृष्ण भक्त :
राम, कृष्ण शिव को उपासते हैं और शिव इन्हें. जब आकार में निराकार अवतरित होता है, मनुष्य के लिए अपनी असली पहचान स्थापित करता है। इसलिए सभी एक दूसरे में सत्य ही देखते हैं, परस्पर उपासते हैं.

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