सोनी तिवारी
समयकाल : ईसा के बाद की ग्यारहवीं सदी.
भारत अपनी पश्चिमोत्तर सीमा पर अभी-अभी ही राजा जयपाल की पराजय हुई थी. इस पराजय के तुरंत बाद अफगानिस्तान के एक शहर गजनी का एक बाज़ार.
ऊंचे से एक चबूतरे पर खड़ी कम उम्र की सैंकड़ों हिन्दु स्त्रियों की भीड. जिनके सामने हज़ारों वहशी से दीखते बदसूरत किस्म के लोगों का मज़मा. इनमें अधिकतर अधेड़ उम्र के मुल्ले अगले दौर में खड़े थे.
लड़कियो की स्थिति देखने से ही अत्यंत दयनीय प्रतीत हो रही थी. उनमें अधिकाँश के गालों पर आंसुओं की सूखी लकीरें खिंची हुई थी. मानो आसुओं को स्याही बना कर हाल ही में उनके द्वारा झेले गए भीषण दौर की कथा प्रारब्ध ने उनके कोमल गालों पर लिखने का प्रयास किया हो.
एक बात जो उन सब में समान थी वो ये थी कि किसी के भी शरीर पर वस्त्र का एक छोटा सा टुकड़ा नाम को भी नहीं था. सभी सम्पूर्ण निर्वसना.
सभी के पैरों में छाले थे. मानो सैंकड़ों मील की दूरी पैदल तय की हो.
सामने खड़े वहशियों की भीड़ अपनी वासनामयी आँखों से उनके अंगों की नाप-जोख कर रही थी. कुछ अल्लाह के बंदे आंखों के स्थान पर हाथों का प्रयोग भी कर रहे थे.
सूनी आँखों से अजनबी शहर और अनजान लोगों की भीड़ को निहारती उन स्त्रियों के समक्ष हाथ में चाबुक लिए क्रूर चेहरे वाला घिनौने व्यक्तित्व का एक गंजा व्यक्ति खड़ा था. मूंछ सफाचट. बेतरतीब दाढ़ी उसकी प्रकृतिजन्य कुटिलता को चार चाँद लगा रही थी.
दो दीनार….. दो दीनार..
. दो दीनार…
वो बोल रहा था : हिन्दुओं की खूबसूरत लड़कियां, स्त्रियां, शाही लड़कियां. कीमत सिर्फ दो दीनार..
ले जाओ.. ले जाओ.
एक लौंडी… सिर्फ दो दीनार..
दुख्तरे हिन्दोस्तां.. दो दीनार.. !
भारत की बेटी.. मोल सिर्फ दो दीनार.
उस स्थान पर मुसलमानों ने एक मीनार बना रखी है. इस पर आज भी लिखा है- ‘दुख्तरे हिन्दोस्तान. नीलामे दो दीनार..’
अर्थात ये वो स्थान है जहां हिन्दु स्त्रियां दो-दो दीनार में नीलाम हुईं.
महमूद गजनवी हिन्दुओं के मुंह पर अफगानी जूता मारने, उनको अपमानित करने के लिये अपने सत्रह हमलों में लगभग चार लाख हिन्दू स्त्रियों को पकड़ कर उठा ले गया. घोड़ों के पीछे रस्सी से बांध कर.
महमूद गजनवी जब इन औरतों को गजनी ले जा रहा था तो वे अपने पिता भाई और पतियों से बुला-बुला कर बिलख-बिलख कर रो रही थीं.
अपनी रक्षा के लिए पुकार कर रही थी. लेकिन करोडो हिन्दुओं के बीच से उनकी आँखों के सामने वो निरीह स्त्रियाँ मुठ्ठी भर मुसलमान सैनिकों द्वारा घसीट कर भेड़ बकरियों की तरह ले जाई गई.
रोती बिलखती इन लाखों हिन्दू नारियों को बचाने न उनके पिता बढे, न पति उठे, न भाई और न ही इस विशाल भारत के करोड़ो समान्य हिन्दू.
महमूद गजनी ने इन हिन्दू लड़कियों और औरतों को ले जा कर गजनवी के बाजार में समान की तरह बेच ड़ाला.