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अमृत-आयु : क्या था हज़ारों वर्ष जीने का फार्मूला

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डॉ. विकास मानव

राम ने 11,000 (ग्यारह हजार) वर्षों तक शासन किया.
हत्वा क्रूरं दुराधर्षं देव ऋषीणां भयावहम्।
दश वर्ष सहस्राणि दश वर्ष शतानि च ॥२९॥
वत्स्यामि मानुषे लोके पालयन् पृथिवीमिमाम्।
~वाल्मीकि रामायण (बालकाण्ड, सर्ग 15)
बाह्य केवल कुंभक प्राणायाम से, खेचरी मुद्रा से, सुषुम्ना नाड़ी और अनाहत चक्र/सहस्रार जाग्रत कर, आयु बढ़ाई जा सकती है।
घेरण्ड संहिता का कथन‌ है, मनुष्य 21,600 (इक्कीस हजार छ: सौ) श्वास प्रतिदिन लेता है। अर्थात् 900 श्वास प्रतिघंटा अथवा 15 श्वास प्रतिमिनट।
घेरण्ड संहिता कहती है :
हङ्कारेण बहिर्याति सकारेण विशेत् पुनः।
षट्शतानि दिवारात्रौ सहस्त्राण्येक विंशति:।
अजपां नाम गायत्रीं जीवो जपति सर्वदा ॥84॥

शुक्ल यजुर्वेद संहिता, अध्याय 24, मंत्र 36, में ‌मनुष्य की आयु सौ वर्षों की मानी गई है, सामान्य रूप से, “जीवेम शरद: शतम्”। लेकिन इसी मंत्र में अंत में कहा गया है, “भूयश्च शरद: शतात्”, अर्थात् सौ वर्षों के उपरांत भी :
“तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्रमुच्चरत् ।
पश्येम शरदः शतं
‌‌ जीवेम शरदः शतं
श्रुणुयाम शरदः शतं
प्रब्रवाम शरदः शतमदीनाः
स्याम शरदः शतं
भूयश्च शरदः शतात्॥

यदि 24 घंटों में श्वास की संख्या 21,600 से इसके 10 प्रतिशत ‌तक कम कर दी जाए, 2,160 तक, तो आयु इसी अनुपात से 100 वर्षों से बढ़ कर 1,000 वर्ष हो सकती है।

श्वास यदि 216 तक अहोरात्र में सीमित कर दी जाए, तो आयु 10,000 वर्ष तक भी संभव है।
इसका प्रमाण कुत्ते और कछुए की आयु और श्वास संख्या से सहज में ही समझा जा सकता है। कुत्ता तीव्र गति से श्वास लेता है, लगभग दश गुणा अधिक मनुष्य की अपेक्षा। कुत्ते की सामान्य दश वर्षों की‌ आयु मान्य है। कछुआ लगभग दश गुणा धीमी गति से श्वास लेता है मनुष्य की तुलना में और एक हजार वर्षों तक जी सकता है।

कोई आश्चर्य नहीं कि त्रेतायुग में हैहयवंशी चक्रवर्ती सम्राट सहस्रबाहु कार्तवीर्य अर्जुन ने 85,000 वर्षों तक शासन किया हो। उसकी औसत श्वास संख्या लगभग 21.6 रही होगी प्रतिदिन अथवा 0.9 श्वास प्रति घंटा।
ब्रह्मविद्या उपनिषद् का कथन है कि यदि योगी-साधक अपने सूक्ष्म प्राण/चेतना को सुषुम्ना नाड़ी में, अनाहत चक्र / सहस्रार में, स्थित करता है, तो यमराज भी उसका बाल बांका नहीं कर सकते, जब तक सुषुम्ना जाग्रत है।
जरामरणरोगादि न तस्य भुवि विद्यते।
एवं दिने दिने कुर्यात् अणिमादि विभूतये।
ऐसा ध्यान-योगी वृद्धावस्था, मृत्यु और रोग को जीत‌ लेता है, आत्मबोध के साथ।‌ यह विशिष्ट योगी अष्ट महासिद्धियों, अणिमा, लघिमा, महिमा, गरिमा, प्राप्ति, ईशित्व, वशित्व, प्राकम्य का भी अधिकारी हो जाता है।

सुषुम्ना नाड़ी में जीवभाव त्याग कर चैतन्य आत्मा प्रकट होता है ध्यान में।
इस स्वात्मा को ही पुरुष व सर्वात्मा को ब्रह्म कहा गया है। यह आत्मा जन्म-मृत्यु से सर्वथा मुक्त होता है। इन सब उपलब्धियों का बेस प्राणायाम और ध्यान है.

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