अग्नि आलोक
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ना ही देश के, ना ही राम के …..!

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, मुनेश त्यागी

जो कर रहे हैं अलग, राम को सियाराम से
जो छोड़कर सियाराम को, भज रहे हैं श्रीराम को
वे हो सकते हैं ना देश के, ना पुरुषोत्तम राम के।

जिन्होंने हथिया ली है सत्ता, मर्यादा को छोड़कर
और हो गये हैं पक्के पूंजीपतियों के पिछलग्गू
वे हो सकते हैं ना मजदूर के, ना ही किसान के।

जो बेच रहे हैं देश को निसंकोच,गद्दी पर बैठकर
जो फैला रहे हैं धर्मांधता, हर दिन और हर रात
वे हो सकते हैं ना जनता के, ना ही जवान के।

जो बो रहे हैं हिंसा और नफ़रत, पूरे दिन पूरी रात
जो ठग रहे हैं हिंदुओं को, मुसलमानों के नाम पर
वे हो सकते हैं ना जनता के,ना ही गरीब नवाज के।

जिनको चिंता नहीं है, मंहगाई की, बेरोजगारी की
जिन्हें चिंता सता रही बस, पैसों की और गद्दी की
वे हो सकते हैं ना देश के और ना ही अवाम के।

महंगाई निगल रही सबको, सब मारे भ्रष्टाचार के
ढूंढते ढूंढते थक गये हैं, दर्शन दुर्लभ हुए रोजगार के
मैं कैसे कहूं भला ये ही हैं, सच्चे अनुयाई राम के।

नीति नियम सब तोड़ दिए कहीं दर्शन ना संविधान के
शंकराचार्य सब छोड़ दिए, परखच्चे उड़ाये विधान के
मंदिर निर्माण बना दिया मज़ाक,ये देश के ना राम के।

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