इंदौर। इंदौर सहित पूरे जिले और सम्भाग के जंगलों में मौजूद जंगली नीलगाय हर साल किसानों के खेतों की सैकड़ों एकड़ की फसलें एक रात में चट करती आ रही है, मगर कानून होने के बावजूद प्रशासन न तो उन्हें मारने की अनुमति देता है और न ही खुद इस समस्या का हल निकाल रहा है।
वन विभाग के अनुसार इंदौर जिले और सम्भाग में कई जंगल की सीमा से लगे गांवों महू, मानपुर, चोरल के पास वाले खेतों में खड़ी फसलें एक रात में चट करके जंगली जानवर नीलगाय और जंगली सूअर किसानों की सालभर की मेहनत बर्बाद करते आ रहे हैं। अधिकांश किसानों की रोजी-रोटी और जीवन-यापन का जरिया खेतीबाड़ी ही है। किसानों के खून-पसीने की मेहनत से तैयार फसल जब पकने को तैयार होती है कि अचानक सैकड़ों की तादाद में नीलगाय के झुंड रात में खेतों में घुसकर चंद घंटो में फसल चट कर जाते हैं।
किसान का भविष्य और उसकी फसल वैसे भी प्रकृति और मौसम के ऊपर ही निर्भर है, पर इसके अलावा किसानों को हर साल दोहरी मार से जूझना पड़ता है। एक तरफ नीलगाय तो दूसरी ओर जंगली सूअर के हमले भी झेलना पड़ते हैं। जंगली सूअर भी नीलगाय की तरह उनकी फसल को खाने के साथ-साथ तहस-नहस कर चौपट कर देते हैं। जंगली नीलगाय को मारने की अनुमति देने के मामले में अधिकारी हमेशा इसलिए कतराते हैं कि कहीं लोग नीलगाय को गोवंश समझकर उनके खिलाफ न हो जाएं। फसाद और बवाल न हो, इसलिए कोई भी अधिकारी इस मामले में हाथ नहीं डालता। जबकि वन विभाग के नस्लीय रिकार्ड अनुसार नीलगाय मृग नस्ल मतलब मृग प्रजाति का जानवर है। जंगली नीलगाय को घोड़ा राज भी कहते हैं।
जंगल में सैकड़ों नीलगाय और जंगली सूअर
वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि फसल नष्ट करने पर नीलगाय और जंगली सूअर की समस्या हल करने और नष्ट फसल का मुआवजा देने के अधिकार पहले उनके विभाग के पास थे । अब यह सारे अधिकार सम्भाग अथवा जिला प्रसाशन के पास है। प्रशासन चाहे तो फसल नष्ट करने पर कानूनन जंगली नीलगाय और जंगली सूअर को मारने के आदेश दे सकता है।
इस धारा में है इन्हें मारने की अनुमति
वन्य संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 11 उपधारा 1 खंड (ख ) के अंतर्गत किसानों की फसल नष्ट करने पर नीलगाय और जंगली सूअरों को मारने के लिए किसानों को अनुमति देने के अधिकार हैं। इंदौर जिले और सम्भाग के वन क्षेत्रों में सैकड़ों की संख्या में ये जानवर मौजूद हैं। हर साल यह सैकड़ों एकड़ की फसलें खत्म कर देते हैं। जंगलों में लगातार नीलगाय और जंगली सूअरों की संख्या बढ़ती ही जा रही है।
फसलों को नष्ट करने वाली नीलगाय और जंगली सूअर को मारने की मंजूरी देने वाला कानून तो है, मगर इसका प्रशासनिक स्तर पर इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। – असीम श्रीवास्तव, हेड ऑफ फारेस्ट फोर्स, भोपाल