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समान नागरिक कानून चाय के प्याले में तूफान लाने जैसा

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-डॉ हिदायत अहमद खान

कहते हैं कि बगिया में रंग-बिरंगे फूल हों तो वह खूबसूरत ज्यादा लगती है और यदि एक ही किस्म के फूलों से बाग भर दिया जाए तो एक समय के बाद उसकी रंगत ही नहीं बल्कि महक भी लोगों को आकर्षित करने में सफल नहीं रहती है। ऐसे में कुछ समय के लिए एकरुपता अच्छी हो सकती है, लेकिन दीर्घकाल के लिए इसे सही नहीं ठहराया जा सकता है। यह बात रही रंग-रुप और बाग-बगीचे की, लेकिन यहां हम बात कर रहे देश के नागरिकों के लिए समान नागरिक कानून की, क्योंकि दो राज्यों में इस विषय को लेकर चाय के प्याले में तूफान लाने जैसा कुछ किया जा रहा है।

दरअसल भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली उत्तराखंड सरकार ने कैबिनेट में समान नागरिक संहिता मसौदे को मंजूरी प्रदान कर दी है, दूसरी तरफ असम सरकार आगामी विधानसभा सत्र में बहुविवाह प्रतिबंध विधेयक को पेश करने की तैयारी कर चर्चा में ले आई है। इन दोनों ही राज्यों के इस फैसले पर न सिर्फ देश में चर्चा हो रही है बल्कि अब विरोध के स्वर भी सामने आने लग गए हैं। सवाल यह है कि आखिर इन दो राज्यों को इस तरह समान नागरिक कानून मसौदा लाने और जनता के बीच इसे चर्चित करने की आवश्यकता क्यों आन पड़ी है? आखिर क्या वजह है कि इस पर केंद्र खामोश है और राज्य जल्दबाजी करते दिख रहे हैं?

इस मामले में विरोधियों का कहना है कि भाजपा नेतृत्व वाली राज्य सरकारें इस समय वही कर रही हैं जो केंद्र चाह रहा है। असल में इसके जरिये आगामी लोकसभा चुनाव 2024 को मथने और साधने के लिए बहुसंख्यक मतदाताओं को लुभाने का काम किया जा रहा है। केंद्र ने इन मुद्दों को अपने नेतृत्व वाली राज्य सरकारों के पाले में डालकर बड़ा खेल-खेला है। सच तो यह है कि यदि यह फार्मूला सफल होता है तो इसे लेकर अन्य राज्यों का भी रुख किया जा सकेगा और यदि विरोध के कारण फेल हो जाता है तो फिर इसे यहीं यह कहते हुए बस्ते में बंद कर दिया जाएगा कि यह समय उचित नहीं है इसे लागू करने के लिए या इस पर कदम आगे बढ़ाने के लिए। ऐसे में लोगों को समझना होगा कि आखिर समान नागरिक कानून किनके लिए और क्यों लाया जा रहा है, क्योंकि हर बात का विरोध करते हुए सड़कों पर उतर आना किसी समस्या का हल नहीं हो सकता है। इस पूरे मामले को लेकर एआईयूडीएफ के विधायक रफीकुल इस्लाम ने केंद्र पर निशाना साधा और कहा है कि भाजपा के पास पूरे देश में समान नागरिक कानून लागू करने का साहस ही नहीं है।

बकौल रफीकुल इस्लाम भाजपा जानती है कि पूरे देश में यूसीसी लागू करना लगभग असंभव है क्योंकि यहां कई धर्म, जातियां और समुदाय हैं। इसलिए यह चुनाव से पहले भाजपा की महज जुमलेबाजी है।

यह बहुत हद तक सही बात है कि उत्तराखंड में जिस समान नागरिक कानून के नाम पर लागू किया जा सकता है उसे ही पूर्वोत्तर के राज्यों में लागू नहीं किया जा सकता है। वहीं जो कानून उत्तर प्रदेश में आसानी से लागू किए जा सकते हैं, उन्हें गोवा या अन्य दक्षिणी राज्यों में लागू नहीं किए जा सकते हैं। ऐसे में जनता को भ्रमित करने का काम खुद भ्रमित सरकारें करती हैं और वही काम इस समय वो समान नागरिक कानून मसौदे को आगे बढ़ाकर कर रही हैं। यदि ऐसा नहीं है तो फिर क्या कारण है कि उत्तराखंड सरकार बहुविवाह प्रतिबंध लागू तो करना चाहती है, लेकिन दूसरी तरफ अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों को इसकी परिधि से बाहर भी रखना चाहती है। ऐसे में समानता की बात कैसे हो सकती है, जो भी हो वो सभी के लिए एक-सा ही हो, तभी समान नागरिक कानून की बात हो सकती है, लेकिन वाकई यह संभव नहीं प्रतीत होता है, इसलिए इस पर गंभीरता से चर्चा करने और तमाम पहलुओं पर विचार करने की आवश्यकता है, न कि आरोप-प्रत्यारोप की झड़ी लगाकर राजनीति को गर्माने की। यह समय चुनाव का है अत: सत्ता पक्ष को भी अपने कदम फूंक-फूंक कर आगे बढ़ाने होंगे, क्योंकि एक भी गलत कदम बड़े वोट बैंक को दूसरे पाले में खिसका भी सकता है।

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