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1200 करोड़ रुपए की बड़ी राशि खर्च करने के बाद भी साफ नहीं हुई कान्ह-सरस्वती,अब 600 करोड़ और खर्च होंगे

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इंदौर। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव लगातार क्षिप्रा में मिल रहे गंदे पानी को लेकर निर्देश जारी कर रहे हैं और उन्होंने दो टूक चेतावनी दी है कि आने वाले वर्षों में एक बूंद भी गंदा पानी नहीं मिलने देंगे। खासकर 2028 के सिंहस्थ से पहले क्षिप्रा नदी में स्वच्छ जल का प्रवाह होगा। इसके लिए इंदौर की कान्ह और सरस्वती नदी को भी स्वच्छ करना पड़ेगा। उस पर लगभग 1200 करोड़ रुपए की राशि विगत दो दशकों में खर्च की जा चुकी है। मगर जो एक हिस्सा शुद्ध किया था वह फिर से अशुद्ध हो गया और अब शासन के निर्देश पर प्रशासन ने लगभग 600 करोड़ रुपए का नया प्रोजेक्ट तैयार किया है, जिसमें एक दर्जन एसटीपी संयंत्र की स्थापना भी की जाएगी और 450 किलोमीटर लम्बी सीवरेज लाइन बिछाएंगे।

कान्ह और सरस्वती नदी को शुद्ध करने के लिए बीते कई वर्षों से उच्च स्तरीय प्रयास किए जाते रहे हैं। फिलहाल कबीटखेड़ी, नहरभंडारा, बिजलपुर, राधास्वामी मैदान, प्रतीक सेतु, पीपल्याहाना तालाब सहित अन्य जगह पर निगम ने एसटीपी प्लांट लगाए हैं। मगर अब नए सिरे से जो 600 करोड़ का प्रोजेक्ट बनाया गया है उसमें एक दर्जन और भी एसटीपी प्लांट लगाए जाना है, जो कि गारी पिपल्या, तरणपुक्षर, टिगरिया बादशाह, बड़ा बांगड़दा, बिलावली तालाब, मायाखेड़ी, चितावत रोड, कुमारखाड़ी, चोईथराम से लेकर लक्ष्मी मेमोरियल हॉस्पिटल तक अलग-अलग क्षमता के बनाए जाना है। 5 एमएलडी से लेकर 80 एमएलडी तक के येएसटीपी प्लांट बनेंगे और साथ ही 450 किलोमीटर लम्बी सीवरेज लाइन भी डलेगी। पिछले हफ्ते ही कलेक्टर आशीष सिंह ने इस मामले पर बैठक लेकर निगम, प्रदूषण मंडल को आवश्यक निर्देश दिए हैं।

साथ ही क्षेत्रीय एसडीएम को भी कहा कि वह एसटीपी प्लांट सहित अन्य कार्य के लिए जमीन आबंटन की प्रक्रिया भी करवाए। साथ ही स्टेट लेवल एक्सपर्ट से भी राय ली जाएगी। दरअसल पिछले दिनों उज्जैन के साधु-संतों ने एक बार फिर क्षिप्रा में मिल रहे गंदे पानी का मुद्दा उठाया और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भी इसे गंभीरता से लिया और अधिकारियों को भी निर्देश दिए कि क्षिप्रा शुद्धिकरण पर अब गंभीरता से काम हो और सिंहस्थ 2028 से पहले क्षिप्रा नदी पूरी तरह से गंदगी-प्रदूषण से मुक्त कर दी जाए। मगर इसके लिए कान्ह और सरस्वती को भी शुद्ध करना पड़ेगा, क्योंकि इसी का अतिरिक्त पानी बहकर क्षिप्रा में मिलता है। बीते दो दशकों में लगभग 1200 करोड़ रुपए की बड़ी राशि इनके शुद्धिकरण पर खर्च की जा चुकी है। मगर ना तो नदियों के किनारे के अतिक्रमण हटे और ना बहाव क्षेत्र को कचरे से मुक्ति मिली। अभी भी अवैध निर्माण लगातार हो रहे हैं। भागीरथपुरा से लेकर छावनी, गणगौर घाट, लोखंडे ब्रिज, पोलोग्राउंड, एमआर-10 के आसपास अत्यंत बुरी स्थिति है। नमामि गंगे और कान्ह शुद्धिकरण प्रोजेक्ट से जुड़े तमाम विशेषज्ञों का लगातार यह कहना रहा कि जब तक सीवरेज बंद नहीं होगा, तब तक नदी साफ नहीं हो सकेगी। पिछले दिनों प्रशासन ने एक दर्जन से अधिक उद्योगों पर भी कार्रवाई करवाई, जो कि अपना गंदा पानी बिना शुद्ध किए नदी में छोड़ रहे थे। इतना ही नहीं, जो सहायक नदियां हैं, उनका भी नेटवर्क तैयार करना होगा। पिलियाखाल नाला, भमोरी, भागीरथपुरा, नवलखा और खजराना के नालों का पानी जब तक साफ नहीं किया जाएगा तब तक कान्ह-सरस्वती भी लगातार गंदी होकर नाले में ही तब्दील रहेगी। पिछले दिनों प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 48 से अधिक आउटफॉल चिन्हित भी किए थे और जिन फैक्ट्रियों ने पानी शुद्ध करने के संयंत्र नहीं लगाए या जिनका पानी ईटीपी में नहीं जा रहा उन्हें बंद भी करवाया गया। अब देखना यह है कि 600 करोड़ रुपए और खर्च करने के बाद अगले दो साल में भी कान्ह-सरस्वती वाकई शुद्ध हो पाती है अथवा नहीं। 21 किलोमीटर कान्ह और 12 किलोमीटर सरस्वती नदी के किनारों को बगीचों और ग्रीन बेल्ट को विकसित भी किया जाएगा।

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