मुनेश त्यागी
चांदनी चांद से आई है
रोशनी सूरज से आई है,
ये रौनक इन्हीं से छाई है
ये सूरत बहुत सुखदाई है।
इसी मिट्टी के लिए जिए हैं
इसी मिट्टी के लिए मरे हैं,
इस मिट्टी से ही तो उपजे हैं
फिर क्यों आपस में खाई है?
एक को मुसलमां से नफरत
दूसरे को है हिंदू से नफरत,
ये दोनों ही नफरत जीवी हैं
ये नफरत इन्हीं की माई है।
हिंदू मुस्लिम सिख इसाई
सब आपस में भाई भाई हैं,
यहीं रहेंगे सब ही मिलकर
ऐसी सूरत ही तो भायी है।
जनता जन धन की जननी है
क्यों आफ़त उस पर आयी है?
वो शोषण उत्पीड़न की मारी
क्यों बदहाली उस पर छायी है?
देखिए ना तो हिंदू गैर हैं
ना ही मुसलमान पराये हैं,
सबका खूं मिला है इस मिट्टी में
यह रौनक हम सभी से आई है।
एक कहे वे मुसलमां हैं
दूजा कहता वे हिन्दू हैं,
सच कहूं ये दोनों ही गलत
हम सब हिंदुस्तानी भाई भाई हैं।