-विवेक मेहता
परेशान हो उन्होंने एक बार फिर कक्षा में निगाह घुमाई। सब लड़के पेन थामे, शांति से बैठे नोट्स ले रहे थे। पिछली बेंच के लड़कों को भी तल्लीन होकर बोर्ड की ओर देखते पाकर उनकी परेशानी बढ़ गई। गर्दन घुमा कर वे पुनः बोर्ड पर फार्मूला सिद्ध करने लगे।
कुछ समय बाद उनकी निगाहें फिर घड़ी के कांटों पर अटक गई। उनकी क्लास 20 मिनट से चल रही और कक्षा में शांति ! सब लड़के ध्यान से पढ़ रहे ! उन्हें लगा शायद आप सूरज पश्चिम में उग आया हो या इस क्लास को वे, यानी कि पी.एल. तांम्बिया नहीं पढ़ा रहे हो। सूरज हमेशा की तरह उन्हें खिड़की के बाहर पूर्व में ही दिखाई पड़ा। अपने आप पर अविश्वास करने का उन्हें कोई कारण समझ में नहीं आया। फिर आज ऐसा क्यों हो रहा है! अचानक उन्हें पहले की बात का ध्यान आ गया।
गुरुवार को उनका लेक्चर लड़के मिस्टर खाबिया से अरेंज करवाना चाहते थे। इसके लिए उनके पास स्वीकृति लेने आए थे। उन्होंने खुशी-खुशी हां कर दी थी। वैसे भी गुरुवार के उनके दो लेक्चर में से लड़के मुश्किल से एक लेक्चर में ही पढ़ते थे/या वे पढ़ा पाते थे। इस कारण उन्होंने लड़कों से बोला था- “हम तो बनिए हैं। मूंग की दाल खाते हैं। छानकर पानी पीते हैं। हम में इतनी ताकत कहां जो दो लेक्चर पढ़ा दें। खाबियां साहब तो ताकत वाले हैं। वे ही आपको दो लेक्चर पढ़ा सकते हैं।”
इसके बाद मूंग की दाल और छना हुआ पानी उनकी पहचान बन गया था। अगले पीरियड में कक्षा के बोर्ड पर उनका कार्टून बना था। चांद से रोशनी आ रही है। उनके चांद से परावर्तित हो रही है। उस रोशनी में बैठा एक छात्र पढ़ रहा है। साथ ही बोर्ड पर मूंग की दाल और छने हुए पानी के बारे में विज्ञापन के रूप में एक टिप्पणी थी। जिसे देखकर वे बौखला गए थे। आधा घंटा उनका लेक्चर चला। उन्हें अपने सीधेपन पर गुस्सा आया था। वे बोले थे-“बलि हमेशा बकरे और मुर्गे की ही दी जाती है।शेर कि नहीं। क्योंकि शेर बलि देने वाले को ही खा जाता है। यह सब ठीक नहीं है भाई। पढ़ना लिखना चाहिए। छना हुआ पानी और मूंग दाल तो स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद हैं। यह आपको अभी पसंद नहीं आएगी। जब आप लोग हमारी उम्र में आएंगे तब आपको यही पसंद आएगी।”
तभी उन्हें फुसफुसाहट सुनाई पड़ी। शायद कोई लड़का बोला था- “देखो साला, 25 मिनट भी नहीं पढ़ा पाया। कितनी देर से चाक हाथ में लिए बोर्ड को ताक रहा हैं।”
यह आवाज़ उनका ध्यान कक्षा में ले आई। वे फार्मूला सिद्ध करने का प्रयास करने लगे। उन्होंने नजरें घुमा कर कक्षा में देखा। कुछ लड़कों को हंसते पाकर उन्हें शांति मिली। “सीईऊ..सीईऊ…”
सीटी की हल्की सी आवाज आई। मन प्रसन्न हो गया। वे पलट गए। चश्मे को नाक सिकुड़ कर ऊपर चढ़ाया गिराया। कक्षा को भरपूर निगाहों से देखा। अपने सूखते होठों पर जीभ घुमाई। सिर के चंद बालों को व्यवस्थित किया।
“लो अब तैयार हो गए उपदेश देने के लिए।” एक छात्र बोला।
“खाना ही हजम नहीं होता होगा बिना उपदेश दिए। इन्हें तो महात्मा बन जाना चाहिए।” दूसरे ने पहले का समर्थन किया।
उन्होंने इसे अनसुना कर दिया और बोले- “देखिए जिसे नहीं पढ़ना हो वह बाहर जा सकता हैं। कक्षा में अनुशासन बनाए रखना चाहिए। जो छात्र पढ़ना चाहते है उन्हें पढ़ने देना चाहिए।”
वे जानते थे कि जब भी वह उपदेश देने की मुद्रा में आते है, तो ऐसा ही होता हैं। उन्होंने घड़ी देखी। अभी भी समय बाकी था। समय काटने की गरज से वे बोले- “देखिए, यह अध्याय पानी का हैं। पानी के कारण बहुत से लोग मर जाते हैं। लड़के भी इस विषय में बहुत फेल होते हैं। फिर भी आप इस विषय को महत्व नहीं देते। अरे भाई , रहीम भी पानी के विषय में कह गए है- रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून। पानी गए न ऊबरे मोती, मानस, चून। आप इस विषय पर ध्यान दीजिए।”
ताम्बिया साहब जब यह बातें कर रहे थे उसी समय पिछली बेंच पर बैठे एक छात्र ने अपने पड़ोसी से पूछा- “यार, ताम्बिया सर पढ़ाते क्यों नहीं।”
“इनका प्रमोशन नहीं हो रहा है कई वर्षों से। हर वर्ष सी.आर. बिगड़ जाती हैं। ये रीडर नहीं बन पाते। इस कारण नहीं पढ़ाते।”
“यार सी.आर. बिगड़ती है इस कारण नहीं पढ़ाते या पढ़ाते नहीं इस कारण से सी.आर. बिगड़ती हैं!” पहला थोड़े जोर से बोला।
उसकी बात सुनकर आसपास बैठे लड़के भी हंसने लगे। बात तो ताम्बिया साहब ने भी सुन ली थी मगर कहते क्या। बात टालने की गरज से वे बोले-“देखिए, यह चैप्टर महत्वपूर्ण हैं। तीन प्रश्न आते है 20 नंबर के। फिर मत कहना बतलाया नहीं।”
“कौन से चैप्टर से सर।” एक लड़का उपहास करने के लिए बोला।
“अभी तक सो रहे थे क्या पांडे जी?”
कक्षा में फिर ठहाके गूंज उठे। थोड़ी देर बाद वे बोले- “आप लोग पढ़ना नहीं चाहते, मत पढ़िए। नुकसान आप लोगों का ही हैं। आपने कभी कुत्ते को हड्डी खाते देखा हैं? कुत्ता जब हड्डी खाता है तो उसे खून पीने का मजा आता हैं। वह बड़ा खुश होता हैं। उसे उस समय थोड़े ही मालूम रहता कि खून उसके मुंह से निकल रहा है जो हड्डी के कारण छिल गया। उसे मालूम तो तब पड़ता है जब मुंह में दर्द होता हैं।”
“देखो, सर को। अरस्तु बन रहे हैं। अरस्तु। सिकंदर के गुरु।” एक लड़का अपने पड़ोसी से बोला।
“यहां अरस्तु सिकंदर की खिचड़ी कैसे आई आ गई?” पड़ोसी छात्र ने प्रश्न किया।
“अरे यार, सिकंदर को भी अपने गुरु पर बहुत विश्वास था। जैसा कि कभी हमें इन पर था। किंतु एक दिन सिकंदर की प्रेमिका ने, सिकंदर की चुनौती पर अरस्तु को घोड़ा बना कर दिखा दिया। सिकंदर ने बड़ी मुश्किल से उसे अरस्तु की पीठ पर से उतारा। जानते हो अरस्तु ने क्या किया?”
“………..”
“सिकंदर से उस प्रेमिका का त्याग करने के लिए कहा।”
“क्यों?”
वे भी उत्सुक होकर उत्तर की प्रतीक्षा करने लगे।
“क्योंकि अरस्तु को उसे देखकर बार-बार अपनी हार और शर्म का एहसास होता था ।” -छात्र ने किस्सा समाप्त किया।
“सही है यार। ताम्बिया सर पढ़ाएंगे तो खुद नहीं। डांटेंगे हम लोगों को, कि पढ़ते नहीं।” दूसरे छात्र ने कहा।
“देखो, अब उपदेश समाप्त हो गया। कोई नया उदाहरण याद नहीं आ रहा हैं। अब बोलेंगे अटेंडेंस ले लेते हैं। यदि आप चाहें तो।”
उनके कानों में आवाज पहुंच गई। उनका हाथ शीघ्र ही रजिस्टर पर पहुंच गया। जेब से उन्होंने पेन निकाला अटेंडेंस लेना प्रारंभ कर दिया। वे सोचने लगे लड़कों ने उन्हें कितना जान लिया हैं। अटेंडेंस समाप्त कर उन्होंने रजिस्टर बंद किया ही था कि अगली बेंच से आवाज आई- “सर, यह फार्मूला तो सिद्ध कर दीजिए।”
“तुम लोग तो होशियार हो। पढ़ लेना घर पर ही।”
“सर यह प्रॉब्लम नहीं आती।”
“प्रयत्न करोगे तब आएगी। ट्राई अगेन एंड अगेन। फिर भी ना आए तब पूछना।”
उनके इस उत्तर को सुनकर कक्षा में हंसी का फव्वारा छूट गया। वह भी खिसियानी हंसी हंसते हुए बोले -“भाई पढ़ना तो आप ही लोगों को पड़ेगा। हमारे पढ़ाने से होता ही क्या हैं। यदि हमारे पढ़ाने से ही लड़के पास होते रहते तो फिर फेल कौन होता !” वाक्य समाप्त करने के साथ उन्होंने रजिस्टर, पुस्तक उठाई और शीघ्र कक्षा से बाहर निकल गए।
तभी उनके कानों में एक ऊंची आवाज आई -“देखो साला भविष्य बिगाड़ रहा है। इतने महत्वपूर्ण विषय को पानी सा फालतू समझ रखा है। फील्ड में सभी को नकारा सिद्ध करवा देंगे। पढ़ाएंगे तो खुद नहीं और कहेंगे आजकल के लड़कों को कुछ आता जाता नहीं।”
सुनकर उन्हें झटका सा लगा। अपने चेंबर में भी वे शांति से नहीं बैठ सके। उन्हें ऐसा लगा कि अंदर से कोई कचोट रहा हैं। सिर को हाथों से थामें वे कुछ देर बैठे रहे। फिर घंटी बजाकर चपरासी को बुलाया- “नारायण पानी लाओ।”
नारायण पानी लाया। वे दो गिलास पानी पी गए। नारायण खड़ा-खड़ा उनका मुंह देखता रहा। उसे आशा थी कि साहब कुछ बोलेंगे। साहब बुदबुदाए- “जाओ”
उन्होंने पीठ कुर्सी पर टिका दी। आंखें बंद कर सोचने लगे। क्या वे गुरु कहलाने लायक हैं? क्या वे छात्रों और देश का भविष्य तो नहीं बिगाड़ रहे हैं? न जाने कब अरस्तु का घोड़ा बना रूप उनके जेहन में तैर आया। वे खुद बोल पड़े- नहीं, नहीं मैं अरस्तु नहीं बनूंगा। नहीं बनूंगा। उन्होंने कागज पैन उठाया और त्याग पत्र लिखने लगे।
अचानक सायरन बज उठा। उन्हें ध्यान आया उनकी क्लास हैं। आंखें खोली। रजिस्टर, चाक-डस्टर उठाया और चल पड़े।
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