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कथित हिन्दू विरोधी सम्राट औरंगजेब का एक हिन्दू लड़की से न्याय का एक अप्रतिम नमूना !

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शरद कुमार चौधरी

औरंगज़ेब काशी बनारस की एक ऐतिहासिक मस्जिद जिसे धनेडा की मस्जिद भी कहा जाता है,यह एक ऐसा इतिहास है जिसे पन्नों से तो हटा दिया गया है, लेकिन निष्पक्ष इन्सान और हक़ परस्त लोगों के दिलो से चाहे वो किसी भी धर्म के इन्सान हों,कभी भी मिटाया नहीं जा सकता,वह युगों-युगों तक अमर रहेगा !औरंगजेब आलमगीर की हुकूमत में काशी बनारस में एक पंडित की लड़की थी जिसका नाम शकुंतला था,
उस लड़की को एक मुसलमान जाहिल और विलासी सेनापति ने अपनी हवस का शिकार बनाना चाहा और उसके बाप को आदेश देते हुए कहा कि ‘तू अपनी बेटी को डोली में सजा कर मेरे महल में 7 दिन के अंदर-अंदर भेज देना ‘ पंडित बहुत डर गया और डरते-डरते ही यह बात उसने यह बात अपनी बेटी से कहा,इसपर उस पंडित की बेटी ने अपने पिता से कहा कि पिताजी आप उस सेनापति से एक महीने का वक़्त ले लो हो सकता है कोई न कोई रास्ता निकल ही जायेगा !
पंडित ने सेनापति से जाकर कहा कि, “मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं कि मैं 7 दिन में सजाकर अपनी लड़की को आपके महल में भेज सकूँ, इसलिए मुझे एक महीने का वक़्त दे दो । ” सेनापति ने कहा “ठीक है लेकिन एक महीने के बाद उसे जरूर भेज देना ” पंडित ने अपनी लड़की से जाकर कहा “वक़्त मिल गया है अब । ”लड़की ने मुग़ल शहजादे का लिबास पहना और अपनी सवारी को लेकर दिल्ली की तरफ़ निकल गई, कुछ दिनों के बाद वह दिल्ली पहुँची,जिस दिन वह दिल्ली पहुंची उस दिन जुमे का दिन था ।
औरंगजेब के शासन काल में यह एक नियम था की जुमे के दिन औरंगजेब आलमगीर नमाज़ अता करने के बाद जब मस्जिद से बाहर निकलते थे,तब लोग अपनी फरियाद एक चिट्ठी में लिख कर मस्जिद की सीढ़ियों के दोनों तरफ़ खड़े रहते और हज़रत औरंगजेब आलमगीर उनकी चिट्ठियाँ उनके हाथ से लेते जाते और फिर कुछ दिनों में इंसाफ फरमाते,बनारस से दिल्ली पहुंची वह लड़की शकुंतला भी इस क़तार में जाकर खड़ी हो गयी थी ।
उसके चहरे पर नकाब था और वह लड़के का ड्रेस पहनी हुई थी,जब उसके हाथ से चिट्ठी लेने की बारी आई तब हज़रत औरंगजेब आलमगीर ने अपने हाथ पर एक कपड़ा डालकर उसके हाथ से चिट्ठी ले ली,इसपर बनारस से पहुंची वह लड़की बोली ‘महाराज ! मेरे साथ यह नाइंसाफी क्यों ? सब लोगों से तो आपने सीधे तरीके से चिट्ठी ली और मेरी चिट्ठी लेते समय अपने हाथों पर कपड़ा रख कर लिए ? आखिर ऐसा क्यों ? ‘
औरंगजेब आलमगीर ने फ़रमाया के इस्लाम में ग़ैर मेहरम मतलब पराई औरतों को हाथ लगाना भी हराम है और मैं जानता हूँ तू लड़का नहीं लड़की है ‘शकुंतला बादशाह के साथ कुछ दिन तक दिल्ली में ठहरी और अपनी फरियाद सुनी,बादशाह हज़रत औरंगजेब आलमगीर ने उससे कहा “बेटी ! तू अब अपने घर को लौट जा तेरी डोली सेनापति के महल अपने वक़्त पर ही पहुँचेगी ! ” शकुंतला सोच में पड़ गयी कि यह क्या हो गया ?
जब वह बनारस अपने घर लौटी तब उसके बाप पंडित ने पूछा क्या हुआ बेटी ? तो वो बोली अब तो एक ही रास्ता बचा है ! मैं हिन्दोस्तान के बादशाह के पास गयी थी, लेकिन उन्होंने भी ऐसा ही कहा कि डोली तो उठेगी और सेनापति के घर वक्त पर ही पहुंचेगी ! लेकिन मेरे दिल में एक उम्मीद की किरण है, वो ये है कि मैं जितने दिन बादशाह के यहां रुकी बादशाह ने मुझे 15 बार बेटी कह कर पुकारा था ! और एक बाप अपनी बेटी की इज्ज़त नीलाम कभी नहीं होने देगा !’
फिर वह दिन आया जिस दिन शकुंतला की डोली सज-धज के उस सेनापति के महल की तरफ चल पड़ी,सेनापति ने डोली देख कर अपने भविष्य की अय्याशी की खुशियों में फकीरों को पैसे लुटाना शुरू कर किया…! जब वह विलासी और धूर्त मुगल सेनापति पैसे लुटा रहा था तब एक कम्बल-पोश फ़क़ीर जिसने अपने चेहरे पर कम्बल ओढ़ रखी थी,भी उपस्थित था उस फकीर ने उस सेनापति से मुखातिब होकर बोला “मैं कोई ऐसा-वैसा फकीर नहीं हूँ, मेरे हाथ में पैसे दे !”
जब सेनापति उस फकीर को उसके हाथ में पैसे दे रहा था उसी वक्त उस फकीर ने
अपने मुह से कम्बल हटा लिया तो उस फकीर की असलियत को देखकर वह सेनापति भी हक्का बक्का रह गया,उसके होश फाख्ता हो गए,क्योंकि उस कंबल में कोई ऐसा-वैसा फ़क़ीर नहीं बल्कि भारत के सम्राट औरंगजेब आलमगीर खुद थे ! उन्होंने उस वहशी सेनापति से मुखातिब होते हुए कहा कि तेरा एक पंडित की लड़की की इज्ज़त पे हाथ डालना मुगल हुकूमत पर बदनुमा दाग लगा सकता है और भारत के सम्राट औरंगजेब आलमगीर ने तुरंत इंसाफ फ़रमाया 4 हाथियों को वहां मंगवाकर उस बेहूदे और व्यभिचारी सेनापति के दोनों हाथ और दोनों पैर बाँध कर अलग -अलग दिशा में दो-दो हाथियों को दौड़ा दिया गया…!
और देखते ही देखते उस वहशी सेनापति को चीर दिया गया…! फिर भारत के सम्राट औरंगजेब आलमगीर ने उस लड़की के पंडित पिता के घर पर स्थित एक चबूतरे पर दो रकात नमाज़ नफिल शुक्राने की अदा की और दुआ की कि “ऐ अल्लाह ! मैं तेरा शुक्रगुजार हूँ, कि तूने मुझे एक ग़ैर इस्लामिक हिन्दू लड़की की इज्ज़त बचाने के लिए इंसाफ करने के लिए चुना…! फिर औरंगजेब आलमगीर ने कहा “मेरी बेटी ! मुझे बहुत ज्यादा प्यास लगी है मुझे तुरंत एक गिलास पानी पिलाओ !”
वह लड़की शकुन्तला पानी लेकर आई,तब भारत के सम्राट औरंगजेब आलमगीर ने फ़रमाया कि “मेरी बेटी ! जिस दिन दिल्ली में मैंने तेरी फरियाद सुनी थी उस दिन से मैंने क़सम खा ली थी कि जब तक तेरे साथ इंसाफ नहीं करूंगा,तब तक मैं पानी नहीं पिऊंगा…! ”तब शकुंतला के बाप पंडित जी और काशी बनारस के दूसरे हिन्दू भाइयों ने उस चबूतरे के पास एक मस्जिद तामीर की, जिसका नाम “धनेडा की मस्जिद ” रखा गया… और बनारस के सभी पंडितों ने ऐलान किया के ये बादशाह औरंगजेब आलमगीर के इंसाफ की ख़ुशी में हमारी तरफ़ से इनाम है…! और सेनापति को जो सजा दी गई। वो इंसाफ़ एक सोने की तख़्त पर लिखा गया जो आज भी धनेडा की मस्जिद में मौजूद है !

            प्रस्तुतकर्ता - श्री शरद कुमार चौधरी, एडवोकेट , संपर्क - 84003 33399

            संकलन  -निर्मल कुमार शर्मा 'गौरैया एवम् पर्यावरण संरक्षण तथा देश-विदेश के सुप्रतिष्ठित समाचार पत्र-पत्रिकाओं में वैज्ञानिक,सामाजिक,राजनैतिक, पर्यावरण आदि विषयों पर स्वतंत्र,निष्पक्ष,बेखौफ, आमजनहितैषी,न्यायोचित व समसामयिक लेखन,संपर्क-9910629632, ईमेल - nirmalkumarsharma3@madhav
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