रश्मी त्रिपाठी
मर्दानी शब्द मुझे पसंद नही, मैं खुद स्त्री हूं और अपनी ताकत समझाने के लिये मुझे किसी और जेंडर का सहारा लेना पड़े तो क्या मतलब ??
मेरे लिये वो बस “इंदिरा” थीं।
शक्ति और समर्पण का एक अद्भुत रुप।
जो कि गांधी और नेहरू के साये में पली बढ़ी थीं।
बचपन से घर में सुना था कि उनकी नाक मोम से बनी है ,नकली है ,समझ नही आता था बाद में पता चला कि सन 1967 में जबकि इंदिरा जी तुरंत प्रधानमंत्री बनी हीं थीं उड़ीसा में एक चुनावी सभा में जैसे ही इंदिरा जी ने बोलना शुरू किया, उनके ऊपर वहाँ मौजूद भीड़ ने पत्थरों की बरसात शुरू कर दी.
स्थानीय नेताओं ने उनसे अपना भाषण तुरंत समाप्त करने का अनुरोध किया, लेकिन वे नही रुकीं उन्होंने बोलना जारी रखा ।
वो भीड़ से कह ही रही थीं, “क्या इसी तरह आप देश को बनाएंगे…?
तभी एक सनसनाता हुआ पत्थर उनकी नाक पर आ लगा जोर से चोट लगी और तुरंत ही खून बहने लगा.
उन्होंने अपने दोनों हाथों से बहते खून को पोंछा, नाक की हड्डी टूट गई थी।
लेकिन ये इंदिरा गांधी को विचलित न कर सका।
अगले कई दिनों तक उन्होंने चेहरे पर प्लास्टर लगा कर पूरे देश में चुनाव प्रचार किया।
अपनी “नाक” के लिए ही बहुत संवेदनशील रहने वाली इंदिरा गांधी ने बाद में मज़ाक भी किया कि अब उनकी शक्ल बिल्कुल ‘बैटमैन’ जैसी हो गई है।
“इससे पता चलता है कि उनके अंदर कितना जोश और लड़ने की कितनी क्षमता थी. काफ़ी ख़ून बह जाने के बावजूद वो बिल्कुल भी घबराईं नहीं और चुनाव प्रचार जारी रखा…
कभी कभी सोचती हूं कि क्या सच में उनकी हत्या ही हुई थी या थोड़ा ध्यान से समझा जाये तो ये आत्महत्या ही थी ।
आज के दौर में जब कि छोटे से छोटा टुटपुंजिया राजनेता अपनी राजनीति चमकाने के लिए धर्म का खुलेआम गलत इस्तेमाल करता है और धर्म के नाम पर जनता में जहर बोता है और फिर अपनी सुरक्षा में सैकड़ों जवान लिए घूमता है कि कहीं कोई उनको मार ना दे, तब तो इंदिरा जी बस एक मिसाल ही लगती हैं कि अपने मूल्यों के लिये उन्होंने अपनी जान तक की परवाह नहीं की.
हां उन्होंने आत्महत्या की थी, देश की एकता और अखंडता के लिए.
अन्यथा ये कोई सोच भी सकता है क्या ? कि एक विशाल देश के प्रधानमंत्री को उन्हीं की सुरक्षा में तैनात जवान 28-30 गोली मार के उनके जिस्म को छलनी-छलनी कर सकते है!
वो भी तब जब सैकड़ों सिक्युरिटी लेयर से गुजरने के बाद इन जवानों को प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की सुरक्षा में लगाया जाता है. और जबकि इंदिरा जी के लिए बहुत आसान था कि ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद वो सिख सुरक्षाकर्मियों को अपनी सिक्योरिटी से हटा सकती थीं ।वो भी तब जबकि इस बाबत खुफिया रिपोर्ट भी उन्हें मिल चुकी थी।
और आगे की कहानी भी जान लीजिए जब कि खून से लथपथ प्रधानमंत्री को एम्स ले जाया जा रहा है और उनका सिर सोनिया जी अपनी गोद में लेकर बैठीं थीं और उनका पूरा गाउन इंदिरा के खून से सनकर लाल हो चुका है. उस दृश्य को जी रही सोनिया के दिलोदिमाग पर क्या असर पड़ा होगा, ये अंदाजा लगाना ही बहुत मुश्किल भरा काम है मेरे लिये !😢
और लगभग मृतप्राय इंदिरा जी को लेकर उनकी कार एम्स पहुंची तो पता चला कि देश के प्रधानमंत्री को गोलियों से छलनी करने की खबर किसी ने एम्स को दी ही नही थी, ताकि स्टैंड बाई में उनके लिए डॉक्टर और इमरजेंसी सेवाएं खड़ी रहतीं. सिर्फ गेट खुलवाने में 3-4 मिनट का कीमती समय बर्बाद हो गया था ।
जबकि वो देश की सबसे ताकतवर और लोकप्रिय प्रधानमंत्री थीं, जिसने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए. कोई मजाक नहीं था। और जब वो जिंदगी मौत से जूझ रही थीं तो देश की राजधानी में उन तक इमरजेंसी मेडिकल सर्विस भी वक्त तक नहीं पहुंची ।
आज के हालातों में ये बातें कल्पना करना भी मुश्किल है।
ये पीढ़ी समझ ही नही सकती ,पर उसका दोष भी नही है ,जिस पीढ़ी ने ये देखा था ,वो ही झूठी निकल गई जब ….