जिस पार्टी ने अभी अपना 10वां जन्मदिन भी नहीं मनाया, उसने पंजाब में 136 साल पुरानी पार्टी को मात दे दी। आम आदमी पार्टी ने पंजाब में सिर्फ कांग्रेस को चुनावी मात नहीं दी, बल्कि राष्ट्रीय फलक पर उसके बराबर आ खड़ी हुई है। देश की सबसे पुरानी पार्टी के पास अगर इस समय दो राज्यों (राजस्थान और छत्तीसगढ़) में सरकार है, तो आप भी दिल्ली और पंजाब, दो राज्यों में सरकार चलाने वाली पार्टी बन गई है। यह तर्क दिया जा रहा है कि दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है, लेकिन इस खिसियानी दलील का यहां कोई बड़ा अर्थ नहीं है।
दो राज्यों का तर्क इसलिए महत्वपूर्ण है कि भाजपा और कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दलों को छोड़ दें, तब भी देश के कई हिस्सों में बहुत मजबूत राजनीतिक दल हैं। पश्चिम बंगाल में अगर ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस की तूती बोल रही है, तो पड़ोसी राज्य ओडिशा में बीजू जनता दल की सत्ता किसी के हिलाने नहीं हिल रही। आंध्र में जगनमोहन रेड्डी की कांग्रेस और उसके पड़ोसी राज्य में तेलंगाना राज्य समिति अपनी तरह से जमे हुए हैं। तमिलनाडु में द्रमुक और अन्नाद्रमुक की मथुरा तो तीनों लोक से न्यारी है। यहां आप तेजस्वी यादव, नीतीश कुमार और अखिलेश यादव की पार्टियों के साथ ही केरल में पिछले दो चुनाव जीतने वाली माकपा को भी याद कर सकते हैं। इन सभी पार्टियों की जड़ें अपने भूगोल और इतिहास में काफी गहरी हैं, लेकिन एक साथ दो राज्यों की सत्ता पर काबिज होने का सेहरा किसी के भी माथे नहीं सजा है।
आम आदमी पार्टी ने पंजाब के चुनाव में जोरदार जीत ही नहीं हासिल की, राष्ट्रीय राजनीति में अपने लिए एक नई प्रासंगिकता भी खोज ली है। हाल-फिलहाल तक देश में विपक्षी एकता के जितने भी प्रयास होते थे, उसमें आप को बहुत गंभीरता से नहीं लिया जाता था। एकाध बार कुछ मंचों पर पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल विपक्षी नेताओं के साथ खड़े दिखाई भी दिए, लेकिन आप की छवि एक ऐसी पार्टी की बनी रही, जिसकी महत्वाकांक्षाएं उसके भौगोलिक प्रभाव क्षेत्र से कहीं ज्यादा बड़ी थीं। इसका एक कारण शायद यह भी रहा कि पार्टी दिल्ली विधानसभा के चुनावों में तो सबका सफाया कर रही थी, पर पिछले दो लोकसभा चुनाव में वह दिल्ली की सीटों पर कोई कमाल नहीं दिखा सकी थी। यह बात अलग है कि इन्हीं चुनावों में उसने पंजाब में अपनी क्षमता जरूर दिखाई थी। पिछले विधानसभा चुनाव में उसने अकाली दल को पछाड़ते हुए विपक्षी दल का स्थान कब्जाया था और इस बार तो स्थापित नेताओं की तीन पीढ़ियों का उसने सफाया कर दिया। 94 वर्ष के प्रकाश सिंह बादल और 78 साल के अमरिंदर सिंह से लेकर जीवन के 60 वसंत भी न देखने वाले चरनजीत सिंह चन्नी, सभी चुनाव हार गए।
अब यही आम आदमी पार्टी विपक्षी एकता के समीकरण तय करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी, साथ ही ऐसे एकता-प्रयासों के लिए नई उलझनें और नए धर्मसंकट भी पैदा करेगी। इसलिए भी कि पार्टी की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाएं एक बेचैनी की तरह हमेशा ही उससे छलकती रही हैं और उन क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के चेहरे पर हल्की ही सही, एक शिकन भी पैदा करती रही है, जो विपक्षी एकता के समीकरण तय करने में सबसे अहम भूमिका निभाते हैं। बड़ी सफलता उसे भले ही दिल्ली के बाद पंजाब के अलावा कहीं न मिली हो, लेकिन हर राज्य के चुनावी मैदान में वह कूदने की कोशिश जरूर करती रही है। पंजाब में चुनाव जीतने के बाद अब आप भारतीय जनता पार्टी का सिरदर्द तो बढ़ा ही सकती है, साथ ही अन्य राजनीतिक दलों के सामने यह उलझन भी खड़ी कर सकती है कि राजनीति की इस नवेली ताकत के साथ क्या सुलूक किया जाए?
हालांकि, यहां बाकी दलों के मुकाबले भाजपा के सिरदर्द के रूप में उसकी भूमिका ज्यादा उल्लेखनीय है। भाजपा जिस दिल्ली विधानसभा के लिए खुद को हमेशा से ही स्वाभाविक दावेदार मानती रही है, आम आदमी पार्टी ने उसी दिल्ली से भगवा ताकत को बहुत दूर कर दिया है। एक नहीं, लगातार तीन चुनावों में उसने भाजपा को करारी शिकस्त दी है। लेकिन आप सिरदर्द इसलिए है कि कई मामलों में यह भाजपा से बहुत सारी समानताएं रखती है।
एक तो आम आदमी पार्टी भारतीय राजनीति के उसी दौर की उपज है, जिसमें भाजपा ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय राजनीति पर एक नई छाप छोड़नी शुरू की थी। यह ठीक है कि नरेंद्र मोदी 1992 में ही गुजरात की राजनीति में एक बड़ी ताकत बन गए थे और राष्ट्रीय स्तर पर उनका एक कल्ट भी विकसित होना शुरू हो गया था, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर उसे असल ऊर्जा उसी अन्ना आंदोलन के दौरान मिली, जिसके गर्भ से आम आदमी पार्टी का जन्म हुआ। यानी, जब आप का जन्म हुआ, तकरीबन तभी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक नई भाजपा का पुनर्जन्म हुआ। बेशक भाजपा का यह पुनर्जन्म भारतीय राजनीति की ज्यादा बड़ी घटना बन गया, लेकिन दोनों की समानताओं का यहीं अंत नहीं है।
एक और समानता यह भी है कि दोनों ने कांग्रेस के कमजोर होते आधार से खाली हुई जमीन पर पूरी आक्रामकता से अपने पैर पसारे हैं। जो भाजपा ने राष्ट्रीय स्तर पर और फिर कई राज्यों में किया, वही आप ने पहले दिल्ली में और अब पंजाब में किया। भाजपा को इस बात का श्रेय है कि उसने हर राज्य में अलग-अलग ढंग से जातियों, धर्मों के स्थानीय समीकरणों और जमीन की नई जरूरतों से सामंजस्य बिठाते हुए अपने चाल और चरित्र को तब बदला, जब कांग्रेस ऐसे बदलाव में लगातार नाकाम साबित हो रही थी। पंजाब में आप भी यही काम करती हुई दिखाई देती है। कांग्रेस वहां भी नई हकीकत से तालमेल नहीं बिठा सकी।
जीव विज्ञान में यह माना जाता है कि वे जंतु ज्यादा सुरक्षित रहते हैं, जो अपने वातावरण के हिसाब से अपना रंग आसानी से बदल लेते हैं। कांग्रेस इसीलिए अपनी जमीन लगातार खोती जा रही है। बेशक, दोनों के आकार में बहुत बड़ा अंतर है, लेकिन भाजपा जिस तरह की राजनीति कर रही है, वहां उसी तरह की दूसरी स्पर्द्धी आम आदमी पार्टी ही है।