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चुनावी नतीजों के मायने… संभावना नहीं है कि आप देश में बीजेपी की मुख्य विरोधी पार्टी के रूप में उभरेगी

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नीलांजन मुखोपाध्याय


भारत जैसे देश में, जहां क्रिकेट इकलौता ऐसा धर्म है जो लोगों को बांटता नहीं, बीजेपी के मौजूदा चुनावी दबदबे की तुलना सत्तर और अस्सी के दशक की क्लाइव लॉयड की कप्तानी वाली वेस्टइंडीज टीम के दौर से करना मुनासिब होगा। जिस तरह से उस टीम के तूफानी गेंदबाजों या अपनी तरफ आती हर चीज को बाउंड्रीलाइन के पार पहुंचाने वाले बल्लेबाजों के डर से विरोधी टीम पहले ही धराशायी हो जाती थी, ठीक उसी तरह बीजेपी रेकॉर्ड तोड़ने की आदी होती जा रही है। वेस्टइंडीज के कप्तान की तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर मुकाबले में आगे रहकर लीड करते हैं और किसी भी स्थिति में अपनी टीम का मनोबल कम नहीं होने देते।

विरोधियों की चूक
इसी साल की शुरुआत में जब उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर विधानसभा चुनावों में कठिन लड़ाई के बाद मिली जीत का जश्न पूरा भी नहीं हुआ था कि अगले ही दिन मोदी ने अहमदाबाद एयरपोर्ट से गांधीनगर स्थित बीजेपी मुख्यालय तक रोडशो करते हुए चुनाव अभियान शुरू कर दिया। चुनाव-दर-चुनाव, मोदी और उनके विरोधियों के बीच का यह अंतर अधिकाधिक स्पष्ट होता गया है, हालांकि गुजरात में केजरीवाल ने पीएम मोदी की ऊर्जा और उनके अभियान से काफी हद तक टक्कर लेते दिखे। चुनावों में अपना सबकुछ झोंक देने की बीजेपी की आदत को आत्मविश्वास की कमी के रूप में देखा गया। लेकिन गुजरात में मामला ऐसा नहीं था। वहां पीएम का मकसद था 1985 में माधवसिंह सोलंकी के 149 सीटों के रेकॉर्ड को पीछे छोड़ना। चुनाव नतीजों ने बीजेपी को न केवल 2023 में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए बल्कि 2024 के ‘इंडिया कप’ के लिए भी एक लॉन्चपैड मुहैया करा दिया है। गुजरात में मिली शानदार जीत और दिल्ली नगर निगम चुनावों में अपेक्षा से बेहतर प्रदर्शन ने बीजेपी को हिमाचल प्रदेश में हुए नुकसान की काफी हद तक भरपाई कर दी। हार के बावजूद वहां के नतीजों में कुछ बातें गौर करने लायक हैं।

  •  हिमाचल में बीजेपी का वोट शेयर कांग्रेस के मुकाबले ज्यादा नीचे नहीं है, जिसका मतलब यह है कि हार के पीछे सत्ता विरोधी भावना से ज्यादा छोटे विधानसभा क्षेत्रों और कम मार्जिन की भूमिका थी।
  •  बागी प्रत्याशियों की भी अहम भूमिका रही इस हार के पीछे।
  •  हो सकता है आंतरिक बैठकों में पार्टी नेतृत्व यह स्वीकार कर ले कि हिमाचल प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन न करना उसकी भूल थी।
  •  गुजरात में पिछले साल ही भूपेंद्र पटेल को लाया गया। इतना ही नहीं, बीजेपी ने गुजरात में अभूतपूर्व अंदाज में मौजूदा विधायकों के टिकट काटे।
  • बहुत संभव है कि इस अनुभव के आधार पर पार्टी कर्नाटक में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर गंभीरता से विचार-विमर्श शुरू कर दे जहां अगले साल मार्च के अंत से लेकर मई की शुरुआत तक कभी भी चुनाव करवाए जा सकते हैं।

दूसरे नंबर की पार्टी
गुजरात में चुनाव प्रचार के दौरान कहा जा रहा था कि इस बात में शायद ही कोई शक है कि बीजेपी जीत रही है। बड़ा सवाल यह था कि रनर अप के रूप में कौन सी पार्टी उभरेगी, कांग्रेस या आम आदमी पार्टी? यह भी कि क्या गुजरात आमने सामने की सीधी लडाई वाले राज्य से तिकोनी लडाई वाले राज्य में तब्दील होने जा रहा है? आखिरकार, कांग्रेस ने दूसरे नंबर की अपनी पोजिशन बचा ली, लेकिन वह पहले के मुकाबले काफी कमजोर हो गई है क्योंकि इसके वोट शेयर का बड़ा हिस्सा बीजेपी और आप को गया। अभूतपूर्व जनादेश देने के मोदी के आह्वान ने बीजेपी विरोधी वोटों को दो हिस्सों में बांट दिया। इससे बीजेपी के लिए 2014 और 2019 लोकसभा चुनावों के जैसा प्रदर्शन करना आसान हो गया, जब उसने अभी की तरह लगभग सभी असेंबली सेग्मेंट में बढ़त बनाए रखी थी। इस बिंदु से खुद को दोबारा जीवित करके ऊपर उठाने की कांग्रेस की क्षमता और काफी हद तक कमजोर परफॉरमेंस देने वाली आप की लगातार प्रयास करते रहने में दिलचस्पी से ही यह तय होगा कि भविष्य में बीजेपी को किस तरह की चुनौतियां झेलनी पड़ेंगी।

आप का भविष्य
इन चुनावों में आप के प्रदर्शन से ही यह स्पष्ट होना था कि निकट भविष्य में पार्टी का दिल्ली और पंजाब के बाहर कोई भविष्य है या नहीं। नतीजों ने कुछ बातें साफ कर दी हैं।

  • राष्ट्रीय राजधानी के नगर निगम चुनावों में आप का प्रदर्शन निश्चय ही उम्मीद के अनुरूप नहीं रहा।
  •  गुजरात में पार्टी के दावों को जिस उत्साह के साथ लिया गया और इसके कारण जिस तरह का प्रचार हुआ, उसके पीछे मुखर वोटर समुदायों में विकल्प की चाह थी।
  •  हिमाचल प्रदेश में शुरुआती शोर के बावजूद पार्टी का प्रचार कभी शुरू ही नहीं हुआ।

ऐसे में इस बात की संभावना नहीं है कि आप तत्काल देश के अधिकतर हिस्सों में बीजेपी की मुख्य विरोधी पार्टी के रूप में उभरेगी। बीजेपी विरोधी स्पेस में कांग्रेस के पास अभी भी बचाने को बहुत कुछ है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में होने वाली सीधी चुनावी लड़ाई और कर्नाटक की तिकोनी लड़ाई के परिणाम इस लिहाज से अहम होंगे।

निर्विवाद विजेता
इस राउंड के निर्विवाद विजेता हैं नरेंद्र मोदी। ‘प्रत्याशी को नहीं, मुझे देखिए’ उनकी इस अपील का हिमाचल में कोई खास असर नहीं हुआ, लेकिन गुजरात में यह काम कर गई। 2014 में अबकी बार मोदी सरकार के नारे से शुरू हुए वैयक्तिक (पर्सनलाइज्ड) प्रचार के कुछ वर्ष बीतने के बाद हम राजनीतिक मूर्तिपूजा की इस प्रवृत्ति को और मजबूत होता देख रहे हैं। ये रिजल्ट बताते हैं – मिसाल के तौर पर मोरबी पुल हादसे के इलाके में- कि चुनाव गवर्नेंस, डिलिवरी और लोगों की आजीविका के आधार पर नहीं जीते जा रहे हैं। इसके बजाय सारे फैसले विरोधियों को दुष्ट मानकर और इस आधार पर लिए जा रहे हैं कि मोदी द्वारा तैयार किया गया नैरेटिव क्या कहता है।

(लेखक ने ‘नरेंद्र मोदी: द मैन, द टाइम्स डिजर्व टु सर्व’ पुस्तक लिखी है)

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