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ईसवीय सन्– संवत् की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

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पवन कुमार

  रोमवासियों के प्राग्-ऐतिहासिक काल में एक जंत्री प्रचलित थी। उस समय उसका नाम अलबन जंत्री था। यह अलबन जंत्री ही ईसवीय ख्रिस्तीय काल गणना का मूल स्रोत है। प्रारम्भ में अलबन जंत्री में १० मास का ही वर्ष होता था, और वह ३०४ दिन का ही था। वर्षारम्भ मार्च महीने से और वर्ष की समाप्ति दिसम्बर महीने की समाप्ति से होती थी।
  सितम्बर सातवाँ, अक्टूबर आठवाँ, नवम्बर नौवाँ और दिसम्बर १० वाँ महीना था। जैसा कि इनके नाम से ही स्पष्ट है। इसी प्रकार से वर्ष का पाँचवाँ महीना "क्यिंटिलियस" जिसका अर्थ रोम में पाँचवाँ और छठा महीना "सिक्सटिलिस" अर्थात् रोमी भाषा में छठा, यही नाम था। ई०पू० ७५३ वें वर्ष अर्थात् कलियुगाब्द २३४९वें वर्ष में रोम नगर का निर्माता प्रथम शासक राजा रोम्यूलस अलबन जंत्री के कतिपय मासों की दिन संख्या में कुछ जोड़-घटाव के द्वारा जंत्री के आधार पर नगर की स्थापना के संदर्भ में २१ अप्रैल को अलबन जंत्री से रोमीय जंत्री का प्रवर्तन किया।
   इस प्रकार उसके समय इस रोमीय जंत्री के नाम निम्नलिखित थे :

१. मार्च रोमवासियों के मुख्य देवता “मार्च” के नाम
२. एप्रैल- लैटिन भाषा के “एपरिर” से
३. मई- रोम की देवी “माईमा” के नाम पर से
४. जून- स्वर्ग की रानी “जूनो” के नाम पर
५. क्यिंटिलियस रोमन भाषा में “क्यिंटिलियस” का अर्थ पाँचवाँ होता है।
६. सिक्सटिलिस रोमन भाषा में “सिक्सटिलिस” का अर्थ छठाँ होता है।
७. सिप्टम्बर- रोमन भाषा में “सिप्टम्बर” का अर्थ सातवाँ होता है।
८. अक्टूबर- रोमीय भाषा में “अक्टूबर” का अर्थ आठवाँ होता है।
९. नवम्बर- रोमन भाषा नवम्बर का अर्थ नववाँ होता है।
१०. दिसम्बर- रोमन भाषा में दिसम्बर का अर्थ दसवाँ होता है।
इस प्रकार इस जंत्री में भी वर्ष के महीनों की संख्या १० और दिनों की संख्या ३०४ ही थी। उसके बाद रोम के द्वितीय राजा न्यूमा पाग्विलियास ने कलि युगाब्द २३८९ वर्ष में यूनानी जंत्री जो भारतीय चाँन्द्रमासों के आधार पर यूनान में प्रचलित थी, उसी के समान ३५४ दिन का चान्द्रवर्ष और १२ महीनों वाला चान्द्र मास बनाया। किन्तु उसने नाम अपने पुराने दस वही रखे और केवल दो महीने, जनवरी और फरवरी ११वें और १२वें महीने के रूप में उसमें जोड़ दिये।
उसके बाद कलियुगाब्द २६११ में उसी यूनानी जंत्री के प्रभाव में सौर वर्ष को आदर्श मानकर महीनों का ऋतु के अनुसार व्यवहार करने के लिए चान्द्रवर्ष में अधिक मास योजना को स्वीकार किया। यहाँ यह बात ध्यान में रखने वाली है कि, राजा न्यूमा पग्विल के समय से ही वर्ष का समापन दिसम्बर महीने के स्थान पर फरवरी महीने की समाप्ति से होने लगा। इस संशोधन के बाद भी रोम का धर्माचार्य संघ राजनीतिक उद्देश्य से आवश्यकता अनुसार वर्ष की संख्या कम या ज्यादा कर लेता था।
इस त्रुटि के कारण रोम के राजा जूलियस सीजर ने कलियुगाब्द २९५६ में देखा कि रोमीय जंत्री का वर्ष वास्तविक वर्ष से तीन महीने तक पीछे चल रहा है, और ऋतु व्यवस्था भ्रष्ट हो गयी है। इसलिए उसने अपने ज्योतिषी सोसीजेनिसेन के साथ परामर्श करके रोमीय वर्ष में ९० दिन जुड़वाकर वह वर्ष ३५५+९०=४४५ दिन का किया। उसी समय भविष्य में दोष निवारण के लिए उसने भविष्य के सभी वर्षों को ३६५ दिन ६ घंटे का किये जाने की व्यवस्था की।
जो प्रतीयमान सौर वर्ष के लगभग समकक्ष होता है। उसके लिए तीन वर्ष तक प्रत्येक वर्ष ३६५ दिन का मानकर चौथे वर्ष एक दिन जोड़कर ३६६ दिन का करने की व्यवस्था की गयी। इस चौथे वर्ष में एक दिन जोड़ने की व्यवस्था फरवरी महीने में की गयी। इस प्रकार से चौथा वर्ष अधिक दिवस वर्ष के रूप में हुआ। जूलियस सीजर का जन्म रोमीय जंत्री के पाँचवे महीने ‘क्यिंटिलियस’ में १२वें दिन हुआ था। इसलिए उसने इस महीने का नाम अपने नाम के १२८ ऊपर जुलाई रख दिया। इसी प्रकार से रोम का राजा अगस्टस छठे महीने “सिक्सटिलिस” को अपने लिए शुभ मानता था।
इसलिए उसने इसका नाम बदल कर अपने नाम के ऊपर अगस्ट रख दिया। राजा अगस्टस ने ३६५ दिन का सामान्य वर्ष और ३६६ दिन का अधिकाह वर्ष माना जो जूलियस सीजर द्वारा निर्धारित किया गया था। उसमें महीनों की दिन संख्या भी निश्चित करने के लिए अंतिम संशोधन किया। उनमें उसकी दृष्टि में जो सात विशिष्ट महीने थे उन्हें ३१ दिनों का किया गया। वे क्रमश: इस प्रकार है :
१. मार्च- वर्ष का प्रथम महीना जो रोमवासियों के मुख्य देवता मार्च के नाम से था, ३१ दिन का किया गया।
२. अप्रैल सामान्य ३० दिन
३. मई- रोमन देवी माईमा के नाम से होने के कारण ३१ दिन
४. जून- सामान्य ३० दिन
५. जुलाई- राजा जूलियस सीजर रोमीय जंत्री के संशोधक के नाम से होने के कारण ३१ दिन का
६. अगस्ट राजा अगस्टस के स्वयं अपने नाम से होने के कारण ३१ दिन का
७. सिप्टम्बर सामान्य ३० दिन
८. अक्टूबर- रोम के प्रथम धर्म सम्मेलन का महीना होने के कारण ३१ दिन
९. नवम्बर सामान्य ३० दिन
१०. दिसम्बर- अलबन जंत्री का अंतिम महीना होने से ३१ दिन
११. जनवरी- रोम के देवता जेनस के नाम पर रखे जाने के कारण ३१ दिन
१२. फरवरी- उक्त क्रम से ७ विशिष्ट महीने ३१ दिन करने के कारण ३६५ के स्थान पर ३६७ दिन का हो रहे वर्ष को व्यवस्थित करने के लिए अन्तिम मास फरवरी २८ दिन का किया। यही फरवरी चौथे अधिकाह वर्ष में २९ दिन किये जाने की व्यवस्था निश्चित कर दी गयी।
राजा अगस्टस के समय तक ही रोम जंत्री के महीनों में परिवर्तन दिखाई देता उसके बाद से वर्तमान तक महीनों के नामों में और दिनों में स्थिरता दिखाई देती है। १२९ ईसामसीह के जन्म से ५०० वर्ष बाद छठी शताब्दी में डायोनीसियस एक्सिग्यूअस नामक पादरी ने ही तत्कालीन ग्रन्थों के द्वारा मसीह क्राइस्ट के जन्मवर्ष की गणना करके बीते हुए काल को घटाकर ईसवीय वर्ष का जन्मदाता बना। इस प्रकार से नये बने इस ईसवीय वर्ष में भी जूलीय जंत्री के समान ३६५ दिन का वर्ष और चौथा एक अधिकार दिवस के साथ ३६६ दिन का वर्ष प्रचलित रहा। जैसा कि स्पष्ट किया गया कि, जूलीय जंत्री में ३६५ दिन ६ घण्टे का वर्ष स्वीकार किया गया है, किन्तु यह वर्ष आर्तव सौरवर्ष से ११ मिनट १४ सेकेण्ड अधिक है।
यह आधिक्य ४०० वर्षों में तीन दिनों से भी ज्यादा हो जाता है। इस दोष पर १३वें ग्रेगरी महोदय के द्वारा सूक्ष्मता से विचार किया गया। उसने ईसवीय सन् १५८२ में गणित करने पर पाया कि ३२५ ईसवीय वर्ष में सम्पन्न धर्म सम्मेलन से यह आधिक्य दस दिन का हो गया है। उसने गणना करके देखा कि जहाँ १५ अक्टूबर होना चाहिए वहाँ पाँच अक्टूबर का व्यवहार किया जा रहा है। इस प्रकार विमर्श करके उसने “एलायसियस लिलियस” नामक ज्योतिषी से परामर्श करके १५८२ ईसवीय वर्ष में ५ अक्टूबर के स्थान पर १५ अक्टूबर कर दिया। पुन: यह व्यवस्था भी निश्चित की कि जिस शताब्दी में ४०० संख्या का भाग पूर्ण रूप से न हो उस शताब्दी में अधिकाह वर्ष प्राप्त होने पर भी न किया जाय। ऐसा करने से ४०० वर्षों में १०० स्थलों में ९७ वर्ष ही अधिकाह वर्ष के रूप में स्वीकृत होंगे।
इस प्रकार से पोपग्रेगरी द्वारा संशोधित जंत्री की नवीन प्रथा ग्रेगरी जंत्री और ग्रेगोरियन कैलेण्डर के नाम से प्रचलित हुई। यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि १७५२ ईसवीय वर्ष से ही पहली जनवरी से नये वर्ष का आरम्भ किया गया। जैसा कि बतला चुके हैं कि, रोम जंत्री में वर्षारम्भ मार्च मास से होता था। ईसा मसीह के जन्म से ५०० वर्ष बाद छठी शताब्दी से डी ए पादरी महोदय ने अपनी गणना में मसीह का जन्म २५ दिसम्बर मानकर वहीं से ईसवीय सन् का प्रचार किया।
उसको मानकर ईसवीय सन् की सातवीं शताब्दी से तेरहवीं शताब्दी तक इंग्लैण्ड में वर्षारम्भ २५ दिसम्बर से माना जाता था। उसके बाद कुछ ईसाई गणितज्ञों ने गणना करके प्राप्त किया कि, मसीह का जन्म अप्रैल मास के चौथे दिनांक हो हुआ था। इसलिए चौदहवीं शताब्दी से पुनः इंग्लैण्ड देश में मार्च से वर्षारम्भ स्वीकार किया गया। यह मान्यता इंग्लैण्ड में १७५१ ईसवीय तक प्रचलित थी।
मसीह के जन्म के विषय में पुनः गणित के विषय में विविधता के कारण १७५२ ईसवीय वर्ष में ग्रेगोरियन प्रथा के प्रचार और प्रसार के कारण प्रथम जनवरी से वर्षारम्भ स्वीकार किया गया। यही व्यवस्था अब तक प्रचलित है। (चेतना विकास मिशन)

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