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कोरोना वैक्सीन लगवाने के बाद भी हो रहा है इन्फेक्शन; जानिए क्या कह रहे हैं एक्सपर्ट

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बिहार से खबर है कि पटना में कोविड-19 वैक्सीन की दोनों डोज ले चुके 187 हेल्थ वर्कर्स की रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। इन लोगों ने एक महीने पहले ही दूसरा डोज लिया था। दूसरे डोज के 14 दिन बाद एंटीबॉडी बन जानी चाहिए थी, इसके बावजूद ये लोग पॉजिटिव निकले। इस पर बिहार के स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने कहा कि वैक्सीन लेने के बाद भी इन्फेक्शन का खतरा बना रहता है।

देश में एक अप्रैल से सभी 45+ को वैक्सीन लगाई जा रही है। इसके बाद भी कोरोना की दूसरी लहर में इन्फेक्शन की संख्या बढ़ती जा रही है। बिहार में सामने आए नए मामलों ने चिंता बढ़ा दी है। ऐसे में कई सवाल भी उठ रहे हैं। जैसे- क्या वाकई में वैक्सीन इन्फेक्शन रोकने में कारगर नहीं है? वैक्सीन वायरस से प्रोटेक्शन आखिर कितने दिनों बाद दे रही है? क्या वैक्सीन लगवाने का कोई फायदा है? आइए ये सब, विशेषज्ञों से समझते हैं-

क्या वैक्सीनेशन के बाद कोरोना इन्फेक्शन होना संभव है?

  • हां। हर वैक्सीन की अपनी एफिकेसी होती है, जो हजारों लोगों के बीच कराए गए फेज-3 क्लीनिकल ट्रायल्स से पता चलती है। इसके आधार पर तय होता है कि कोई वैक्सीन वायरस से किस हद तक प्रोटेक्शन दे सकती है। भारत में इस्तेमाल हो रही कोवैक्सिन की एफिकेसी 81% है। यानी अगर किसी ने यह वैक्सीन लगवाई है तो उसे इन्फेक्शन होने की संभावना 81% तक कम हो जाती है। इसका मतलब यह नहीं है कि वैक्सीन लगने के बाद इन्फेक्शन होगा ही नहीं। इसी तरह कोवीशील्ड की एफिकेसी 62% से 80% तक है। यह दो डोज के अंतर पर निर्भर करती है।
  • वैक्सीन एक्सपर्ट डॉ. चंद्रकांत लहारिया के मुताबिक वैक्सीन लगने के बाद भी वायरस इन्फेक्ट कर सकता है। इससे यह साबित नहीं हो जाता कि वैक्सीन खराब है। अच्छी बात यह है कि जिसे वैक्सीन लगी हो, उसे गंभीर लक्षण नहीं होते। अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत भी नहीं होती। इन्फेक्शन आम सर्दी-जुकाम जैसा ही होता है। वैसे, बिहार के मामले में एक ही शहर में इतने पॉजिटिव केस सामने आना सामान्य नहीं है। हो सकता है कि वैक्सीन की कोल्ड चेन ब्रेक हुई हो, जिससे उसका असर कम हो गया हो। इसकी पड़ताल करनी होगी, तभी दावे के साथ कुछ कहा जा सकेगा।
  • बेंगलुरु के एस्टर सीएमआई हॉस्पिटल में इंटरनल मेडिसिन कंसल्टेंट डॉ. बृंदा का कहना है कि यह संभव है कि वैक्सीनेशन के बाद भी कोई कोरोना वायरस का शिकार हो जाए। इसी वजह से हम मेडिकल प्रोफेशनल्स को वैक्सीन लगाने के बाद भी लोगों को कोरोना से जुड़ी सावधानियां बरतने की सलाह दे रहे हैं।

आम तौर पर वैक्सीन का असर कितने दिनों में शुरू हो जाता है?

  • केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के FAQs के अनुसार वैक्सीन का असर दूसरे डोज के 14 दिन बाद प्रभावी होता है। यानी उसके बाद शरीर में इतने एंटीबॉडी होते हैं कि वह वायरस से लड़ सकें। कोवैक्सिन के दो डोज में 28 दिन का अंतर रखा जाता है, जबकि कोवीशील्ड के दो डोज में 6 से 8 हफ्ते का अंतर तय किया गया है।
  • सीधी-सी बात है कि अगर कोवैक्सिन के दो डोज 28 दिन के अंतर से लगवाए हैं तो 42वें दिन के बाद शरीर में वैक्सीन का असर शुरू होने की उम्मीद कर सकते हैं। वहीं, कोवीशील्ड को 42 से 56 दिन के अंतर से लगवाया तो 56 से 70 दिन बाद असर होने लगता है।
  • डॉ. लहारिया के मुताबिक कोवीशील्ड के दो डोज में अगर 12 हफ्ते का अंतर रखा जाता है तो उसकी इफेक्टिवनेस सबसे ज्यादा यानी 80% तक रहती है। इसी वजह से पिछले महीने सरकार ने तय किया कि कोवीशील्ड के दो डोज के बीच का अंतर बढ़ाया जाए। वर्ना, पहले तो यह वैक्सीन भी 28 दिनों के अंतर से ही लग रही थी।
  • डॉ. बृंदा कहती हैं कि पहला डोज लगने के बाद इम्युनिटी रिस्पॉन्स शुरू होता है और 2-3 हफ्तों में इम्युनिटी डेवलप होना शुरू होती है। कुछ हफ्तों बाद इम्युनिटी कमजोर होने लगती है, जिसे बूस्टर डोज लगाकर हम बढ़ाते हैं। इम्युनिटी मरीजों की सेहत पर भी निर्भर करती है। वैक्सीन की एफिकेसी 80% है तो भी 10 में से 2 लोगों को इन्फेक्शन होने का खतरा तो रहता ही है।

यह कैसे पता चलेगा कि वैक्सीन से शरीर में एंटीबॉडी बनी है या नहीं?

  • वास्तव में एंटीबॉडी एक तरह के प्रोटीन हैं, जो वायरस को पहचानते हैं और उससे लड़ने के लिए शरीर को तैयार करते हैं। अगर किसी को कोरोना इन्फेक्शन हुआ है तो उसके शरीर में एंटीबॉडी भी होगी। इसका स्तर अलग-अलग व्यक्ति में अलग-अलग हो सकता है। इंटरनेशनल स्टैंडर्ड्स के मुताबिक 10-1000 IU (इंटरनेशनल यूनिट) एंटीबॉडी को वायरस के खिलाफ अच्छा प्रोटेक्शन माना जाता है।
  • यह जरूरी नहीं कि हर वैक्सीन सभी लोगों पर एक-सा असर दिखाएं। जिस तरह पांचों उंगलियां एक-सी नहीं होती, वैसे ही सबके शरीर भी एक-से नहीं होते। वैज्ञानिकों के अनुसार ऐसा नहीं है कि वैक्सीन का डोज लिया और शरीर में वायरस से लड़ने के लिए एंटीबॉडी बन गए। इसमें समय लग सकता है।
  • वैसे, कोरोना इन्फेक्शन से रिकवर होने या वैक्सीन लगाने के बाद शरीर में एंटीबॉडी का स्तर कितना है, यह जांच एंटीबॉडी टेस्ट से हो सकती है। यह जांच पैथोलॉजी लैब्स में होती है, पर यह महंगी है। इस टेस्ट से पता चलता है कि शरीर में पर्याप्त एंटीबॉडी बनी है या नहीं।
  • कुछ लोगों में किसी जटिलता की वजह से एंटीबॉडी प्रोडक्शन में रुकावट आ सकती है। कुछ लोगों में जेनेटिक और क्रोमोसोमल मिसमैच की वजह से भी एंटीबॉडी प्रोडक्शन प्रभावित होता है। इसका मतलब यह नहीं है कि वैक्सीन आपके शरीर पर काम नहीं करेगी।

…तो क्या यह टेस्ट सबको कराना चाहिए?

  • कागजी बात करें तो एंटीबॉडी टेस्ट कराना अच्छा है। इससे पता चलता है कि वैक्सीनेशन के बाद उसका इम्यून रिस्पॉन्स शरीर पर कितना हुआ है। पर इसे कराने की कतई जरूरत नहीं है। अगर आपको डॉक्टर या किसी स्पेशलिस्ट ने जांच के लिए नहीं कहा है, तो इसकी जरूरत नहीं है।
  • इसके बाद भी अगर आप अपने स्तर पर एंटीबॉडी टेस्ट कराते हैं तो यह जानना जरूरी है कि यह टेस्ट फुलप्रूफ नहीं होते। कुछ एक्सपर्ट्स को इस बात की चिंता है कि मार्केट में उपलब्ध एंटीबॉडी टेस्ट सही तस्वीर सामने लाने में सक्षम नहीं है। अगर इसका इस्तेमाल बड़ी आबादी पर करना है तो वह एक महंगा काम होगा।
  • आपके लिए अच्छा यही होगा कि आप निर्धारित अंतर से दो डोज लें। आवश्यक सावधानियां बरतें और बुनियादी साफ-सफाई रखें। खतरनाक वायरस के खिलाफ आपको आवश्यक प्रोटेक्शन मिल जाएगा।
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