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उत्तर प्रदेश में ताश के पत्ते की तरह बिखरे भाजपा के अरमान? PDA के सहारे अखिलेश यादव ने किया खेल

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लोकसभा चुनाव 2024 के यूपी में आए अभी तक के परिणाम हैरान कर देने वाले हैं। इस परिणाम ने उत्तर प्रदेश में जहां समाजवादी पार्टी को एक बार फिर मजबूत स्थिति में स्थापित कर दिया है। वहीं भाजपा के लिए ये परिणाम विचारणाय हैं। समाजवादी पार्टी के नेता इस जीत के लिए अखिलेश यादव की रणनीति को श्रेय देते हैं।उनका दावा है कि सपा द्वारा बनाए गए सामाजिक समीकरण के चलते ही बसपा  शून्य पर आऊट हो गई। जिसका फायदा समाजवादी पार्टी को हुआ।

लोकसभा चुनाव 2024 का नतीजा भाजपा के लिए एक सदमे की तरह है तो विपक्ष के खेमें में खुशी की लहर है। वहीं, यूपी में समाजवादी पार्टी के दोनों हाथ में लड्डू। राहुल गांधी की जुबान पर उत्तर प्रदेश की जनता की राजनीतिक समझ की मुक्त कंठ से तारीफ। हालांकि समाजवादी पार्टी के नेता संजय लाठर इसका पूरा श्रेय अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को देते हैं। संजय लाठर कहते हैं कि अखिलेश यादव की राजनीतिक सूझबूझ, पार्टी को लक्ष्य के लिए प्रेरित करना और साहसिक निर्णय लेने के क्षमता की जितना तारीफ की जाए कम है। संजय लाठर का कहना है कि चुनाव नतीजे को लेकर भी समाजवादी पार्टी के नेता आश्वस्त थे। खुद संजय लाठर ने सामाजिक समीकरण, बूथ स्तर पर तैयारी और मतदान के रुझान को लेकर इंडिया गठबंधन के 46 सीट पर जीतने की बात कही थी। 

उत्तर प्रदेश में कैसे ताश के पत्ते की तरह बिखरे भाजपा के अरमान?
लाठर बताते हैं कि लोकसभा चुनाव के लिए प्रत्याशी के चयन का मसला बहुत आसान नहीं था। लेकिन अखिलेश यादव ने निर्णय लिया कि इस बार वह यादवों को टिकट नहीं देंगे। अल्पसंख्यक उम्मीदवार भी गिने-चुने होंगे। इस बार समाजवादी पार्टी पिछड़ा, दलित और अन्य का दांव खेलेगी। इसी के सहारे पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) को मजबूती दी जाएगी। इस लक्ष्य को हासिल करने के पीछे समाजवादी पार्टी की रणनीति थी कि भाजपा को पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक विरोधी साबित करने के लिए अधिक अधिक से टिकट मौर्या, कुर्मी, कोईरी, पटेल, पासी समाज, बिंद समाज और अन्य को दिए जाएं। वे बताते हैं इसकी सबसे बड़ी प्रयोगशाला फैजाबाद की सीट रही। समाजवादी पार्टी ने यहां भाजपा के लल्लू सिंह के मुकाबले में अवधेश प्रसाद को अपना उम्मीदवार बनाया। इसी तरह से जौनपुर की लोकसभा सीट पर बांदा के बाबू सिंह कुशवाहा को चुनाव में उतारने का फैसला किया। इसी तरह कैराना से इकरा हसन को भी चुनाव मैदान में उतारना कोई साधारण फैसला नहीं था। इकरा हसन ने प्रदीप चौधरी को हराया है।

5 यादव, 4 मुसलमान प्रत्याशी बाकी सब पीडीए
संजय लाठर कहते हैं कि पूरे उत्तर प्रदेश में लोग समाजवादी पार्टी को यादवों और अल्पसंख्यकों की पार्टी मानने लगे थे। इसके कारण कुछ अन्य पिछड़ा वर्ग के लोग, कुछ दलित समाज के लोग सपा का साथ छोडकर चले गए थे। जबकि कभी ये सब समाजवादी पार्टी का साथ देते थे। लाठर के अनुसार इस बार इसी रणनीति को केन्द्र में रखकर 80 लोकसभा सीटों पर इंडिया गठबंधन लड़ा। इनमें से 63 सीटों पर समाजवादी पार्टी ने प्रत्याशी उतारे। इनमें से केवल 5 यादव उम्मीदवार थे। गाजीपुर से अफजाल अंसारी, कैराना इकरा हसन को लेकर कुछ केवल 4 अल्पसंख्यक उतारे। शेष सभी उम्मीदवार पासी, कोईरी, कुर्मी, पटेल, कुशवाहा, चौहान समेत अन्य से थे। उन्होंने कहा कि बसपा को छोडकर सपा में आए नेताओं को हमने टिकट दिया और नतीजा सामने है।

कांग्रेस के साथ कंधा से कंधा मिलाकर लड़े चुनाव
अमेठी से चुनाव जीते किशोरी लाल शर्मा भी इसकी तारीफ करते हैं। बाराबंकी सीट पर तनुज पूनिया के प्रचार की कमान संभालने वाले उपेन्द्र सिंह कहते हैं कि दोनों दलों के वोट एक दूसरे के प्रत्याशियों के लिए पड़े। बनारस में अजय राय के प्रचार से बूथ प्रबंधन तक में डॉ. संजय सिंह ने बड़ी भूमिका निभाई। डॉ. संजय सिंह कहते हैं कि जिस तरह से समाजवादी पार्टी का मतदाता कांग्रेस के साथ खड़ा था और कांग्रेस का मतदाता समाजवादी पार्टी के साथ, वह इससे पहले के तालमेल में नहीं देखने को मिला। डॉ. अभय शंकर तिवारी कहते हैं कि कुछ तो बात है, तभी तो बनारस की सीट पर अजय राय ने इतिहास रच दिया। बनारस में कहां भाजपा और प्रधानमंत्री की पूरी टीम पांच लाख के अंतर से जीतने का दावा कर रही थी और कहां प्रधानमंत्री केवल 1 लाख 52 हजार 513 मतों के अंतर से ही जीत सके। अमेठी से टीएन त्रिपाठी भी यही दोहराते हैं। टीएन त्रिपाठी का कहना है कि अमेठी में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के मतदाता एक हो गए। इस सामाजिक समीकरण को तोड़ पाना भाजपा के लिए मुश्किल रहा।

चल गई प्रियंका-डिंपल, अखिलेश-राहुल की जोड़ी
डिंपल ने प्रियंका गांधी के साथ बनारस में रोड शो किया था। डिंपल और प्रियंका का साथ लोकसभा सीटों पर प्रचार में एकजुटकता का संदेश दे रहा था। इसी तरह से अखिलेश यादव और राहुल गांधी ने भी एक दूसरे का ख्याल रखा। धर्मेन्द्र यादव के प्रचार से लेकर अमेठी और राय बरेली के समीकरण को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ा। समाजवादी पार्टी के एक अन्य बड़े नेता का कहना है कि मीडिया में चाहे जो प्रचारित किया जाए, लेकिन सामाजिक समीकरण को साधने में शिवपाल सिंह यादव के अनुभव काफी काम आए। बताते हैं कि इसी का नतीजा है कि उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन आधे से अधिक (44) सीटों पर सफलता की तरफ बढ़ रहा है।

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