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*क्या सिर्फ़ कमाई के लिए संसाधनों वाले विभागों पर कुंडली जमाए बैठे हैं मुख्यमंत्री यादव?*

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*मुख्यमंत्री सरकार के आधे से अधिक विभागों के मंत्री बन बैठे**अनुभवी मंत्रियों के कामकाजों में अड़ंगा लगा रहे मोहन यादव**पहली बार किसी मुख्यमंत्री ने लिया जिले का प्रभार*

*विजया पाठक*

भारत के इतिहास में पहली बार किसी मुख्यमंत्री ने अपनी ही कैबिनेट में आधा दर्जन से ज़्यादा मन्त्रालय अपने पास रखे हैं। काम की समीक्षा करें तो इनके सारे विभागों का रिपोर्ट कार्ड नैगेटिव है। प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव अपने पास आधे दर्जन से अधिक विभाग रखे हुए हैं। जिनमें सब मंत्रालय महत्वपूर्ण हैं। गृह जैसा विभाग भी मुख्यमंत्री ने अपने पास रखा है। जिसके कारण प्रदेश में कानून व्यववस्था चरमरा गई है। चोरी, डकैती, हत्या, बलात्कार जैसी घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। अपनी व्यस्तयता के कारण मोहन यादव इस महत्वपूर्ण विभाग को समय ही नहीं दे पा रहे हैं और प्रदेश में नक्सली तक अपने पैर पसारने लगे हैं। पिछले महीने ही बालाघाट जिले में नक्सली मूवमेंट को देखा गया था। जहां तक जनसंपर्क विभाग की बात की जाये तो प्रदेश के इतिहास में यह पहला अवसर होगा जब जनसंपर्क विभाग में अव्यवस्थित तरीके से कामकाज चल रहा है। जो पत्रकार सरकार में पनपे भ्रष्टाचार के खिलाफ लिखते हैं या दिखाते हैं उनकी अधिमान्यता तक खत्म करने की ओछी हरकत करते हैं। 06-06 महीनों तक विज्ञापनों को पेमेंट नहीं हो रहा है। छोटे-छोटे अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं को साल में दो बार भी विज्ञापन नहीं मिल रहा है। विभाग में बैठे अधिकारी अपनी मनमर्जी चलाकर पत्रकारों को परेशान करने पर तुले हैं। विज्ञापनों पर करोड़ों रूपये फूंकने के बाद भी सरकार की छबि धूमिल हो रही है। क्योंकि ज्यादातर पत्रकार सरकार की नीति और नियत से परेशान हैं। विभाग के मुखिया मुख्यमंत्री इस ओर ध्यान ही नहीं दे रहे हैं। या कहे तो उन्हें ध्यान देने के लिए समय ही नही है। अन्य मलाईदार विभाग, जिनके मुखिया खुद मोहन यादव हैं उनकी बात करें तो कमोवेश यही स्थिति है। मुख्यमंत्री मलाई खाने के चक्कर में राजस्व का पलीता लगा रहे हैं। खनिज जैसे महत्‍वत्‍वपूर्ण विभाग, जिससे प्रदेश को काफी राजस्व प्राप्त होता है। लेकिन मुख्यमंत्री अपनी झोली भरने के चक्कर में खनिजों की लूट की खुली छूट दे रखे हैं। प्रदेश में बड़े स्‍तर पर अवैध उत्खनन का धंधा फल फूल रहा है। वैसे भी मोहन यादव पर बदनुमा दाग लगा है कि वह भोपाल से ज्यादा समय उज्जैन में बिताते हैं। आधे से ज्यादा समय उड़नखटोले में बिताते हैं। इसके उपर यह और है कि मोहन यादव महत्‍वपूर्ण विभागों के मुखिया बने बैठे हैं। विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि समय न होने के कारण मुख्यमंत्री अपने विभागों की समीक्षा महीनों तक नहीं करते हैं। जिसके कारण फाइलें मूव ही नही होती हैं। फाइलें मूव नही होती तो कामकाज बाधित होता है। यह प्रदेश के इतिहास में पहली बार है कि कोई मुख्यंमंत्री अपने पास इतने सारे और महत्वपूर्ण विभाग अपने पास रखे हुए हैं। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान अपने पास नीतिगत मामलों के विभाग, सामान्‍य प्रशासन और नर्मदा विकास प्राधिकरण जैसे विभाग ही रखते थे। लेकिन मोहन यादव एक ऐसे राज्य के प्रमुख हैं जो अपने पास गृह एवं खनिज, जेल, वन एवं पर्यावरण जैसे महत्वपूर्ण विभाग अपने पास रखे हुए हैं। मोहन यादव की नई परंपरा के कारण न तो सरकार का संचालन ठीक से हो रहा है और न ही मं‍त्रीमंडल के अपने साथियों के साथ बेहतर तालमेल हो पा रहा है। आज प्रदेश की स्थिति ऐसी हो गई है कि प्रशासन स्तर पर तालमेल ही नहीं बैठ रहा है। इसके अलावा मंत्रीमंडल के साथियों के साथ भी मोहन यादव बेहतर तालमेल नहीं बिठा पा रहे हैं। और उनके मंत्रालय के अधिकारों में भी अड़ंगा लगाकर माहौल को खराब करते हैं। कई अनुभवी मंत्री मुख्यमंत्री के बर्ताव से नाराज दिखाई देते हैं। विभाग के प्रमुखों के साथ भी मोहन यादव अभद्र व्यिवहार करते हैं। अन्य बीजेपी राज्यों की बात की जाये तो छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय, उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी, राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, हरियाणा के मुख्यमंत्री नायाब सिंह सैनी, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल ने भी अपने पास महत्वपूर्ण विभाग नही रखे हैं। 

*प्रदेश में पहली बार किसी मुख्यमंत्री ने लिया जिले का प्रभार*

राजनैतिक विश्लेषकों की मानें तो मध्यप्रदेश की स्थापना के बाद से लेकर अभी तक का इतिहास अगर देखा जाये तो यह पहला अवसर है जब मध्यप्रदेश के किसी मुख्यमंत्री ने जिले का प्रभार अपने पास रखा है। यही नहीं मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का यह निर्णय किस उद्देश्य के साथ लिया गया है यह भी जगजाहिर हो गया है। विशेषज्ञों के अनुसार मुख्यमंत्री पूरे प्रदेश का मुखिया होता है। ऐसे में किसी जिले का प्रभार लेना न तो नियमानुसार ठीक है और न ही संवैधानिक रूप से उचित है क्योंकि मुख्यमंत्री को पूरे समय प्रदेश के विकास और जनकल्याण की दिशा में कार्य़ करना होता है। ऐसे में जिले का प्रभार लेकर वे कैसे अन्य जिलों के साथ न्याय कर सकते हैं।

*हवाई खर्चों और प्लेन खरीदने में किया जा रहा है पैसा बर्बाद*

मध्यप्रदेश की वित्तीय स्थिति काफी दयनीय है, किन्तु वित्तीय व्यय को सीमित करने की जगह मुख्यमंत्री अपनी विलासिता के लिए खर्च कर रहे हैं। मुख्यमंत्री विमानन विभाग के मंत्री भी हैं। बड़ा सवाल यह है कि प्रदेश की इतनी बुरी माली हालत के बाद मुख्यमंत्री ने पिछले एक साल में फिजूलखर्ची कर जनता के पैसों में आग क्यों लगा रहे है। प्रदेश में भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर, उज्जैन, रीवा, खजुराहो और एक दो शहरों को छोड़कर मध्यप्रदेश सरकार द्वारा खरीदे गए 233 करोड़ के चैलेंजर-3500 बॉम्बार्डियर प्लेन, प्रदेश के ज्यादातर हवाई पट्टियों पर उतर ही नहीं पाएगा। टेक्निकली इन हवाई पट्टियों का आकार बॉम्बार्डियर प्लेन को लैंड कराने लायक ही नहीं है। मुख्यमंत्री ने एक साल में 486 से अधिक यात्राएं कर डाली हैं, इनमें से केवल उज्जैन-इंदौर के लिए 150 से अधिक बार हवाई यात्राएं की। इसका मतलब मुख्यमंत्री उज्जैन से भोपाल अप-डाउन करते थे।

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