जिस चंपारण के लिये लड़े वहीं बापू की मूर्ति तोड़ दी गई।
डा. राकेश पाठक
बिहार के चंपारण (जिला मोतिहारी) में रविवार की रात अज्ञात लोगों ने चरखा पार्क में लगी राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की प्रतिमा तोड़ दी। असामाजिक तत्वों की तोड़फोड़ के बाद भी गाँधी के पांव पेडस्टल पर जमे रहे।
ये गोडसेवादी नहीं जानते कि गाँधी के पांव अब इस धरती से कभी नहीं उखड़ पाएंगे। जब तक ये दुनिया है तब तक गाँधी के पदचिन्ह धरती के हर कोने पर अमिट रहेंगे। जहां जहां सत्य,अहिंसा,स्वतंत्रता के लिये कोई एक भी क़दम उठाएगा उसका पहला क़दम गाँधी के रास्ते पर ही होगा।
#प्रसंगवश:ये वही चंपारण है जहां गाँधी जी क़रीब सौ बरस से भी पहले 1917 में नील की खेती करने वाले किसानों के लिये आंदोलन करने पहुंचे थे।
चंपारण के एक किसान राजकुमार शुक्ल ने गांधी जी को किसानों पर हो रहे अत्याचार के बारे में बताने पहले लखनऊ फिर कानपुर और अंत में अहमदाबाद तक पीछा किया। गाँधी ने लिखा है कि इससे पहले उन्होंने चंपारण का नाम भी नहीं सुना था।
शुक्ल जिद पर अड़े थे कि उन्हें चंपारण आकर किसानों का दर्द सुनना चाहिये। अंततः 1917 के अप्रेल महीने में गाँधी जी तैयार हो गए। गाँधी ने लिखा- ‘इस अगढ़, अनपढ़ लेकिन निश्चयी किसान ने मुझे जीत लिया।’ गाँधी जी ने कहा कि मैं कलकत्ता आ रहा हूँ मुझे लेने आ जाना।
राजकुमार शुक्ल गाँधी जी को लेने कलकत्ता पहुंच गए और दस अप्रेल 1917 को उन्हें लेकर पटना आये। गाँधी ने 15 अप्रेल को चंपारण में पहली बार क़दम रखा।
किसानों को साथ लेकर गाँधी ने आंदोलन छेड़ा और अंततः पहली बार अंग्रेज सरकार को झुकना पड़ा।
दक्षिण अफ्रीका से वापसी के बाद गाँधीजी का भारत में अहिंसा और सत्याग्रह का यह पहला प्रयोग था।
#नमन_बापू_प्रणाम_बापू