अग्नि आलोक
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बारिश

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( अख़बार कहता है कि मॉनसून हरियाणा में छा गया है और हमारे यहां एक बूंद भी नहीं बरसी। मित्र बारिश भेज रहे हैं और बारिश है कि हर बार रास्ता भटक जा रही है। फ़सल लगभग ख़त्म हो चुकी है। एक कविता पढ़िए..)

तुमने जो बारिश भेजी थी
घूमती भटकती पहुँच गई आख़िर
और पूछा मुझे कहाँ बरसना है ?
मैंने उसे सूखी प्यासी रेत दिखा दी
थोड़ी देर रुकी वह रेत को देखती हुई
और कहा ,’अभी तो मुझे जाना होगा
फिर कभी आती हूँ समय मिलते ही..! ‘
अब मैं इतना तो नादान नहीं कि
‘फिर कभी ‘ का मतलब न समझ सकूँ..!
बारिश डर गई थी तपती रेत देखकर
वापस पहुँच गई होगी अब तुम्हारे पास
ठीक समझो तो उसे समझाना कि
चेहरा हृदय का दर्पण हो ज़रूरी नहीं
रेत रुक्ष है पर उसमें स्नेह की कमी नहीं
रेत पत्थर सी निष्ठुर नहीं कि तोड़ कर छितरा दे
उन बारिश की बूँदों को जो मोह के आवेश में
झूमती गाती पत्थर पर बरसने चली आती हैं..!
रेत बूँदों को अपने दिल में बसा लेती है और
सँजो कर रखती है बेशक़ीमती रत्न की तरह
हो सके तो समझाना अल्हड़ बारिश को
कि रेत बारिश से बेपनाह मुहब्बत करती है..!

      साभार-हरभगवान चावला,सिरसा,हरियाणा,संपर्क-93545 45440
      संकलन-निर्मल कुमार शर्मा,गाजियाबाद, उप्र.,संपर्क-9910629632
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