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अवधेशानंद जी !चलें दिव्य जीवन की ओर पर कमाल का विजन और वक्तव्य पेश किया

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चंद्रशेखर शर्मा

कल शाम खेल प्रशाल में स्वामी संत अवधेशानंद जी को सुना। विषय था ‘चलें दिव्य जीवन की ओर !’

स्वामी जी विद्वान वक्ता हैं। उनको सुनने पूरा प्रशाल खचाखच था। इंदौर का सौभाग्य है कि वो इस विषय पर यहां बोले। उन्होंने कहा कि इंदौर उन्हें बहुत पसंद है ! इसके कारण भी उन्होंने बताए और इस शहर की उत्सवप्रियता का खास उल्लेख किया। अलावा इसके उनका करीब एक घण्टे का व्याख्यान बहुत प्रभावी था। हालांकि देश- दुनिया के शीर्ष कथावाचकों की तरह वो भी हिंदी के प्रकांड विद्वान हैं, लेकिन बीच-बीच में वो इंग्लिश में भी बोले। इसमें कोई बुराई नहीं, बल्कि इस दौर में यह बहुत जरूरी है कि दुनिया में हिंदी दीपक है तो इंग्लिश सूर्य। 

बहरहाल चलें दिव्य जीवन की ओर पर उन्होंने कमाल का विजन और वक्तव्य पेश किया। उन्होंने कहा कि दिव्यता का मतलब है आपका स्वभाव, आपकी निजता और आपका मूल। सो दिव्यता की ओर चलना यानी अपने स्वभाव, अपनी निजता और अपने मूल में लौटना ! असल में यह बहुत गहरी और ठीक से समझने की तथा स्वयं को पहचानने की तथा उस अनुरूप आचरण करने की बात है और केवल इतना भर करने से हमारे देश का पूरी दुनिया में डंका बजना तय है। स्वामीजी का मकसद भी यही था।

उन्होंने इसे विस्तार से समझाया भी। कहा कि हम सभी अपने वंश वृक्ष का स्मरण करें। हमारे पिता, पिता के पिता, फिर उनके पिता। इस तरह स्मरण में पीछे लौटते चलें तो आप पाएंगे कि आप (हम हिन्दू और भारतीय) कोई साधारण मनुष्य नहीं, बल्कि हम ऋषि-मुनियों और देवताओं की संतानें हैं ! सत्य भी तो यही है। उन्होंने कहा कि फिर हमारी सनातन वैदिक संस्कृति बहुत वैज्ञानिक संस्कृति है। अंग्रेजों या विदेशियों ने कभी कहा था कि भारत के लोग दिखते जरूर मनुष्य जैसे हैं, लेकिन हैं पशु। बाद में उन्होंने पूरी मानव जाति को सोशल एनिमल भी कहा यानी सामाजिक पशु। स्वामीजी ने कहा कि लेकिन जब यह अंग्रेज और विदेशी इस धरती पर पैदा भी नहीं हुए थे, तभी हमने दशमलव से लेकर आत्मा और परमात्मा तक से जगत को परिचित करा दिया था ! ये तो मानव में पशु देख रहे थे और तब हमने पशुओं में परमात्मा के दर्शन कर लिए थे। सो हम भारतीय और हिंदू तो देवों की संतानें हैं। हमारी संस्कृति परमात्मा का बेटा पैदा नहीं करती, बल्कि खुद परमात्मा को पैदा करती है। भारत भूमि तो अवतारों की भूमि और जननी है। खास बात यह कि यह सब हमारे शास्त्रों में सदियों से दर्ज है। 

स्वामीजी ने कहा हम नचिकेता और सावित्री के वंशज हैं, जिसने यमराज से संवाद किया था और अपने पति को मृत्यु के मुख से लौटा लायी थी। हमारे भरत शेर के दांत गिनते थे और उन्हीं के नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा। गोया दुनिया की दूसरी कोई भी संस्कृति और समाज क्या खाकर हमारे सामने टिकेगा या टिक सकता है ? हमारे ज्यादातर डर हमारी किसी चीज को खोने को लेकर होते हैं, लेकिन ज्ञान हमें निर्भय बनाता है। ज्ञान यह सिखाता है कि आपका कभी कुछ न खो सकता है और न घट सकता है। ज्ञान शांति और सफलता की ओर ले जाता है और ज्ञान ही असल आल्हादकारी है। सो ज्ञान प्राप्त करो और खुद को जानो। शास्त्रों में कहा गया है कि गुरु किसी को चेला नहीं बनाता, बल्कि गुरु गुरु ही बनाता है। इसी तरह जो परमात्मा को जान लेता है, वो खुद परमात्मा हो जाता है !

स्वामीजी को सुनने खेल प्रशाल में बड़ी तादाद में स्कूल-कॉलेज के स्टूडेंट्स भी जमा थे। स्वामीजी ने उनसे कहा कि पॉवरफुल बनना उतना अहम नहीं है जितना कि सामर्थ्यवान बनना, इसलिए पॉवरफुल तो बनो ही लेकिन सामर्थ्यवान भी जरूर बनो। यदि आपको परमात्मा या ईश्वर कहीं दिखेगा-मिलेगा तो वो निर्धन और निर्बल में या उनके पास ही मिलेगा, इसलिए निर्धन और निर्बल को सशक्त, मजबूत और सबल करने की हरचंद कोशिश करो और फिर देखो हमारा देश कैसे नये-नये शिखर छूता है। 

स्वामीजी ने एक जानकारी यह दी कि कुछ समय पहले कुछ विदेशी विश्वविद्यालयों ने एक शोध किया। यह जानने के लिए कि कौनसी जीवनशैली पूरे संसार में छा गयी है ? वो भी बिना किसी पॉवरफुल राजनीति, कूटनीति यानी बिना किसी छल प्रपंच और अस्त्र-शस्त्र के ? नतीजा जानकर आप हैरान और खुश होंगे कि वह है सनातन वैदिक हिन्दू संस्कृति वाली जीवनशैली ! इस शोध के नतीजों ने संसार के सारे सजग विचारकों को चौंका दिया है। हमारे प्रधानमंत्री जिस सॉफ्ट पावर का जिक्र करते हैं, उसका आशय हमारे योग शास्त्र और आयुर्वेद आदि से है, जिनका दुनियाभर में विस्तार हुआ है। सो हमारी सनातन संस्कृति बहुत वैज्ञानिक संस्कृति है और सबसे खास बात यह कि यह हमारे मूल में है और हमारा मूल स्वभाव है। हमें बस इसी को ठीक से समझना, पहचानना और उस पर अमल करने या अपने इस मूल में लौटने की जरूरतभर है और बस दिव्यता हमें हमारा वरण करती मिलेगी ! इसके लिए सिर्फ हमारे युवाओं को आगे आने की जरूरत है। युवा जब भी आगे आते हैं तो एक नयी क्रांति घटती है और उससे देश आगे बढ़ता है। दरअसल स्वामीजी ने अपने प्रबोधन में ऐसी और भी अत्यंत प्रेरक बातें कहीं। कहने दीजिये कि किसी ऐसे संत की दस दिनी कथा से ज्यादा देश के दस अलग-अलग शहरों में ऐसे एक-एक घण्टे के दस प्रबोधन देश और समाज के लिए बहुत ज्यादा कल्याणकारी साबित हो सकते हैं। असल में देश के नेतृत्व के लिए हमारे संत समाज को ऐसे ही मार्गदर्शन करना होगा। 

शुरू में आयोजक प्रभु प्रेमी संघ के अध्यक्ष सुरेश बेनीवाला और राजसिंह गौड़ ने स्वामीजी की अगवानी की। कैलाश विजयवर्गीय ने दीप प्रज्ज्वलन किया और स्वामीजी को केसरिया शाल ओढ़ाकर उनका अभिनन्दन किया। तमाम दर्शक श्रोताओं की ओर से छात्रा मिहिका सिंह ने स्वामीजी को पुष्प गुच्छ भेंट कर उनका स्वागत किया। कार्यक्रम में श्रीमती सुमित्रा महाजन, तुलसी सिलावट, विधायक रमेश मेंदोला, श्रीमती मालिनी सिंह गौड़, अग्रवाल ग्रुप के पुरुषोत्तम अग्रवाल और बेशुमार समाजसेवी संस्थाओं के पदाधिकारी और गणमान्यजन उपस्थित थे। कार्यक्रम वाकई शानदार था और स्वामी जी का प्रबोधन तो हर सूरत सुनने लायक था। 

हां, योग को लेकर एक संक्षिप्त किस्सा। दरअसल मैं अभी एवीएन नामक कूल्हे की हड्डियों से जुड़ी बीमारी का शिकार हूँ। इसी सिलसिले में इंदौर प्रेस क्लब के अध्यक्ष माननीय अरविंद तिवारी जी ने खजराना मंदिर के पास गणेश कॉलोनी में योग क्लास चलाने वाली योगाचार्य सुश्री निशा जोशी जी से मिलवाया। निशा मैम का व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावशाली है। अपन अनेक सुंदर अभिनेत्रियों और महिलाओं से रूबरू मिले हैं, लेकिन कहने दीजिये कि निशा जोशी की सुंदरता और उनके व्यक्तित्व में जो आभा और ओज मुझे दिखा, वो किसी और में नहीं मिला। क्या यह योग का चमत्कार है ? पता नहीं। अलबत्ता वो कई बच्चियों को योग गुरु बना चुकी हैं और पता चला है कि नगर निगम के साथ मिलकर वो शहर के हर वार्ड में एक योग केंद्र शुरू करने जा रही हैं। उन्हें बहुत बधाई और शुभकामनाएं। बेशक इस तरह वो इंदौर के लोगों के जीवन को दिव्यता की ओर लेकर जाएंगी !

चंद्रशेखर शर्मा

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