पहले अयोध्या धाम रेलवे स्टेशन की 20 मीटर लंबी दीवार ढहने की खबर सुर्खियां बनी, लेकिन अब तो हद ही हो गई है। सारे देश को पता है कि 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन को लेकर भारतीय जनता पार्टी और देश के प्रधान मंत्री ने कितने बड़े पैमाने पर भव्य आयोजन किया था। इस आयोजन को लेकर जो इंतजामात और फल की इच्छा की गई थी, उसके बारे में देश ही नहीं दुनिया सांसें थामे बैठी थी। नरेंद्र मोदी को अपेक्षित परिणाम तो नहीं ही मिल पाया, लेकिन अयोध्या नगरी और राम मंदिर को लेकर उनकी ओर से जो बड़े-बड़े दावे किये गये थे, उनकी पोल हालिया प्री-मानसून की बरसात ने ही खोलकर रख दी है।
खबर चर्चा में है कि राम मंदिर की छत टपक रही है। अर्थात जिस भगवान राम को टाट पर वर्षों तक भीगते और ठंड में सिकुड़ते नहीं देख सकते, के नाम पर हजारों करोड़ रूपये खर्च कर विशाल मंदिर का निर्माण कराया गया, वह पहली बरसात भी नहीं झेल सका? यह बात किसी और ने कही होती तो उसे अभी तक क्या-क्या न कहा जाता? केंद्र सरकार में आज भी ऐसे मंत्री मौजूद हैं जो छूटते ही आपको बगैर वीजा के ही पाकिस्तान भिजवा देने की ताकीद कर सकते हैं। लेकिन यह आरोप चूंकि मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने स्वंय लगाया है, इसलिए तुर्की-बतुर्की जवाब न देकर राम मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेन्द्र मिश्र को इस काम पर लगाया गया, जिनका कहना था कि राम मंदिर का काम अभी भी अधूरा है। दूसरे माले की छत का काम अभी निर्माणाधीन है, लिहाजा मंदिर के भीतर बरसात की बूंदें स्वाभाविक है।
चलिए मान लेते हैं कि अभी राम मंदिर का काम निर्माणाधीन है। लेकिन यही बात तो उद्घाटन के पहले देश के शंकराचार्य भी कह रहे थे? तब तो उस समय उनके इसी तर्क को काटने के लिए कहा जा रहा था कि उद्घाटन की यही तारीख निकली है। मतलब चुनाव से ठीक पहले सबसे शुभ मुहूर्त 22 जनवरी का ही निकला था। राम के नाम का इस्तेमाल आम चुनाव में करने की हड़बड़ी में सिर्फ मंदिर निर्माण होता तब भी गनीमत थी, यहां तो अब समूची अयोध्या के ही जलमग्न होने की खबरें आ रही हैं।
जी हां, मानसून पूर्व की बारिश ने अयोध्या की सड़कों, आम लोगों के घरों का बुरा हाल कर रखा है। मजे की बात तो यह है कि इन खबरों को सिर्फ वैकल्पिक मीडिया ही बढ़-चढ़कर नहीं दिखा रहा है, बल्कि जिन्हें देश गोदी मीडिया के नाम से जानता है वे भी अयोध्या की दुर्दशा को लेकर हैरान, परेशान हैं। उन्हें भी लगता है कि कम से कम अयोध्या को तो छोड़ देते।
अब इसे राम मन्दिर निर्माण ट्रस्ट, नेताओं, अधिकारियों, नगर निगम और नगर महापौर की लूट कहें, या 2024 लोकसभा चुनाव में अयोध्या की नई चमकदार तस्वीर दिखाकर वोट की लूट की हड़बड़ी को दोष देना चाहिए, असलियत यह है कि एक छोटी सी बरसात के चलते अयोध्या की बहुचर्चित मार्ग ‘राम पथ’ में जगह-जगह बड़े-बड़े गड्ढे आपके स्वागत की राह तक रहे हैं अयोध्या शहर के जीर्णोद्धार पर केंद्र और राज्य की योगी आदित्यनाथ ने कितना जमकर पैसा बहाया है, उसकी दूसरी मिसाल शायद ही कहीं देखने को मिले।
बता दें कि पिछले वर्ष 30 दिसंबर 2023 को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के कर कमलों से अयोध्या धाम जंक्शन का उद्घाटन किया गया था। इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, रेल मंत्री अश्वनी गोयल समेत उत्तर प्रदेश सरकार के सभी आला मंत्री पधारे हुए थे। अयोध्या में हर काम की व्यक्तिगत स्तर पर निगरानी करने के लिए योगी आदित्यनाथ के दौरे लगा करते थे। सभी जानते थे कि अयोध्या के कायाकल्प में ही भाजपा के लिए 2024 आम चुनाव की कुंजी छिपी है। देश ही नहीं दुनिया भर से अति-विशिष्ट मेहमानों के सामने अयोध्या की रूपांतरित छवि को पेश करना था और देशवासियों को सम्मोहित करना था।
आज जब रेलवे स्टेशन की बाउंड्री वाल धड़ाम हो चुकी है, तो उसने उस पार का नजारा भी रेल यात्रियों के सामने बेपर्दा कर दिया है, जहां गंदगी है, कच्ची बस्तियां हैं, गरीबी है। ऐसा जान पड़ता है कि अयोध्या से भूख, बदहाली और गंदगी दूर करने का तो कोई उपाय सोचा ही नहीं गया, अलबत्ता उसे कैसे आगंतुकों से छिपाना है उतना भर जतन किया गया था। लेकिन एक बरसात ने सब किये-कराए पर पानी फेर दिया है।
सोशल मीडिया पर राम पथ पर 9 किमी से बड़े-बड़े गड्ढों के नजारे वायरल हो रहे हैं। लोग चर्चा कर रहे हैं कि एक चंपत राय के वश का इतना कुछ हजम कर पाना संभव नहीं, हर काम को इसी बेतरतीब ढंग से संपन्न किया गया है। अब 27-28 जून को बारिश की संभावना है, तब न जाने क्या होगा और अयोध्या की तस्वीर कैसी नजर आने वाली है, इसे सोचकर ही स्थानीय निवासी घबरा रहे हैं।
असल में इस एक बरसात ने भाजपा की डबल इंजन सरकार के भव्य, दिव्य आयोजनों के माध्यम से देशवासियों को चकाचौंध कर देने की पोल ही खोलकर रख दी है। बरसाती पानी गंदे नाले में जाने के बजाय बस्तियों में घुस रहा है और सड़कों पर जमा हो रहा है। इसके कारण बड़ी संख्या में अयोध्या वासियों का एक ही बरसात में जीना मुहाल हो गया। टेलीविजन न्यूज़ चैनलों में देखा जा सकता है कि किस प्रकार राम मंदिर के दर्शन के लिए आने वाले दर्शनार्थियों को गंदे नाले से उफनकर सड़कों में जलभराव को किसी तरह पार कर चलना पड़ रहा था। राम जन्मभूमि पथ और राम पथ पर आधे फुट पानी में वाहनों के आवागमन को दिखाते वीडियो यहां की कहानी को खुद बयां कर रही थीं।
सआदतगंज से राम मंदिर तक जाने वाली सड़क रामपथ पर कुल 19 बड़े-बड़े गड्ढे देखे गये, जिसके निर्माण पर सरकार ने 845 करोड़ रूपये की राशि हाल ही में फूंकी थी। रिजर्व पुलिस लाइन के सामने की सड़क पर एक विशाल गड्ढे की तस्वीर तो सबसे ज्यादा वायरल है। कुछ स्थानों पर तो खड़े वाहनों के नीचे ही सड़क पर इतने लंबे चौड़े गड्ढे बन गये थे, कि उन्हें सुरक्षित निकालने के लिए स्थानीय लोगों को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। आनन-फानन में ऐसे गड्ढों को रेत बिछाकर किसी तरह चलने के लायक बना दिया गया है, लेकिन लोगों को आने वाले मानसून को लेकर अभी से चिंता सता रही है।
स्थानीय समाचार पत्रों में भी बरसात से अयोध्या की बिगड़ी सूरत का नजारा देखा जा सकता है। दैनिक जागरण जैसे अख़बार भी इस कड़वी सच्चाई को उजागर करने में पीछे नहीं रहे। अयोध्या जागरण पृष्ठ का शीर्षक ही “जरा सी बरसात नहीं झेल सका रामपथ” से शुरू होता है, जिसमें सात अलग-अलग तस्वीरों के माध्यम से दैनिक जागरण ने अयोध्या की बिगड़ी सूरत का दीदार कराया है। अखबार लिखता है कि सआदतगंज से लेकर नवाघाट के बीच करोड़ों रूपये की लगात से बना रामपथ पहली बरसात ही नहीं झेल सका। रामपथ की बनावट पर पहले ही लोगों ने सवालिया निशान खड़े किये थे, जिसे प्रशासन और लोक निर्माण विभाग ने हड़बड़ी में पूरी तरह से अनसुना कर दिया था। रामपथ के किनारे बने नाले में बरसाती पानी जाने के बजाय लोगों के घरों और दुकानों में घुस गया, गोद नहर का पूरवा की सर्विस लेन सहित कई सड़कें धंस गई हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या हजारों करोड़ रूपये सिर्फ तात्कालिक राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए ही तैयार की गई थीं? क्या अयोध्या और यहां के रहवासियों को सिर्फ एक चारे के तौर पर इस्तेमाल किया गया, जिसे अयोध्या की जनता और उत्तर प्रदेश की जनता ने बड़े पैमाने पर नकार दिया, लेकिन फिर भी एक तबके में इसका प्रभाव तो निश्चित रूप से गया होगा।
फैजाबाद लोकसभा सीट पर मिली हार के बाद से जिस प्रकार सोशल मीडिया पर धुर दक्षिणपंथी शक्तियों और ट्रोल आर्मी ने यहां के स्थानीय लोगों को निशाने पर लिया और उनके खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां की थीं, उसे सारे देश ने देखा है। क्या भाजपा के कथित विकास को अयोध्यावासी पहले ही भांप रहे थे, जिसे ये कथित रामभक्त अभी भी देख पाने में असमर्थ हैं? क्या वे अभी भी नहीं देख पा रहे कि अयोध्या नगरी के इस कायाकल्प के बहाने असल में हजारों स्थानीय लोगों को ही उनके घरों से बेदखल करने, सड़कों के चौड़ीकरण एवं सुंदरीकरण के नाम पर राज्य प्रशासन ने बेख़ौफ़ होकर बुलडोजर का उपयोग किया था। कई पीढ़ियों से सड़क किनारे अपनी रोजीरोटी चला रहे परिवारों की दुकानों को ध्वस्त कर उनके साथ हकमारी की गई।
अब सुनने में आ रहा है कि लोकसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद राज्य सरकार और प्रशासन अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने जा रही है। राज्य में भाजपा की योगी सरकार ने अयोध्या को लेकर अपनी बुलडोजर नीति में कुछ अहम बदलाव किया है। इसमें सबसे पहला है एयरो सिटी, जिसके आवासीय कालोनी के लिए 150 एकड़ जमीन का अधिग्रहण होना था। बीकापुर के 7-8 गांव में इस परियोजना का विरोध हो रहा था। हार के बाद 20 जून को अयोध्या विकास प्राधिकरण की बैठक में इस प्रस्ताव को स्थगित कर दिया गया है।
अयोध्या विकास प्राधिकरण का दूसरा फैसला काफी महत्वपूर्ण है। इसके तहत अब जिन लोगों को अयोध्या के सौंदर्यीकरण के नाम पर उनकी दुकानों से बेदखल कर दिया गया था, उन्हें दुकान की खरीद में 30% की छूट और विस्थापित 80 दुकानदारों को चाभी सौंपी गई है। इसी तरह आवास विकास प्राधिकरण 264 करोड़ रुपये की लागत से जो 6 किमी लंबा फ्लाईओवर बनाने जा रहा था, उसे रद्द कर अब 3 अंडरपास निर्मित करने का फैसला लिया गया है। उधर नगर निगम और अयोध्या पुलिस ने अयोध्या के वाहनों (यूपी 42) के प्रवेश पर राम मंदिर उद्घाटन पर जो रोक लगाई थी, उसे हटा लिया है।
हम तुम्हारा विकास करके रहेंगे, तुम लोगों को बड़े-बड़े धन्नासेठ और कॉर्पोरेट ही विकास के पथ पर ला सकते हैं। तुम सब मूढ़ हो और अयोध्या को चमचमा कर हम तुम्हारे और तुम्हारी अगली पीढ़ी का भविष्य संवार रहे हैं, या हमें पता है कि तुम्हारे भविष्य को कैसे संवारा जा सकता है। कुछ ऐसा ही नजरिया अयोध्या, वाराणसी, उज्जैन और उत्तराखंड सहित तमाम हिंदू धार्मिक स्थलों के लिए भाजपा के शीर्षस्थ नेतृत्व ने पिछले 10 वर्षों से तय किया हुआ था।
अयोध्या और वाराणसी संसदीय सीट पर उन्हें भूकंप के झटके महसूस हुए हैं। धर्म के नाम पर कुछ ऐतिहासिक नगरों को धार्मिक सर्किट बनाकर सरकारी खजाने से हजारों करोड़ रूपये लुटाकर असल में चंद कॉर्पोरेट समूह के धंधे को ही और फलने-फूलने का साधन बनाया जा रहा था, जिसके परिणाम स्थानीय निवासियों के लिए सुखद होने की जगह पर बेहद कष्टदायी साबित हुए हैं। देखना है कि क्या भाजपा/संघ अब भी इन नतीजों और सरकारी खजाने से हजारों करोड़ रुपये की बर्बादी के बाद भी कुछ सबक लेती है, या काशी, मथुरा बाकी है की अपनी रट को आगे बढ़ाती है?