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ग्वालियर में थी आजाद की बम फेक्टरी

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राम विद्रोही

झांसी से फरारी के बाद चन्द्र शेखर आजाद ग्वालियर में भगवान दास माहोर, सदाशिव मलकापुरकर और गजानन पोतदार के साथ मेहन्दी वाली गली जनक गंज वाले मकान में छिप कर रहे थे। इनके साथ कैलाशपति भी रहता था जो बाद में दिल्ली षडयंत्र केस में माफीखोर सरकारी गवाह बन गया था। गजानन पोतदार  ग्वालियर के विक्टोरिया कालेज में बीएससी फाइनल के छात्र थे। पोतदार के इस मकान में ही क्रांतिकारियों की बम फैक्टरी थी। इसी मकान में बम बनाते हुए एक ऐसी घटना हुई कि सभी साथी आजाद की तत्परता के कारण पकडे जाने से बाल बाल बचे। कं्रांतिकारी भगवान दास माहोर ने अपने एक संस्मरण में लिखा है कि एक दिन हम सभी साथी पोतदार के मकान में बम बना रहे थे, सांकल चढा कर दरबाजा अन्दर से बन्द कर दिया गया था। तभी कुछ बच्चे अचानक वहां आ गए। इन बच्चों में दो बच्चे तोतले भी थे और गाना भी गाते थे। इन बच्चों को पोतदार के घर से अक्सर कुछ मीठा खाने को मिल जाता था। अन्दर कमरे में हम सभी लोग कपडे उतार कर एक लंगोटी लगाए पल्मीनेट मरकरी बम बना रहे थे, कमरे में सारा सामान बिखरा पडा हुआ था। आग लगने से बचने के लिए हम सभी अपने कपडे उतार कर बम बनाने का काम कर रहे थे। बच्चों ने हमे सामान छिपाने का मौका ही नहीं दिया क्यों कि उन्होंने अपने छोटे छोटे हाथ बाहर से किबाड के अन्दर डाल कर सांकल खोल ली थी। इनके पीछेे ही बच्चों के पिता के आने की आवाज सुनाई दी। उसी समय तत्परता से आजाद ने तहमद बांध कर मटके का पानी आंगन में फैला दिया। आंगन कच्चा होने के कारण वहां कीचड हो गई थी। इससे बच्चे भी वहीं ठिठक कर खडे रह गए थे। इतने में हम लोगों ने फुर्ती से बम बनाने का सारा सामान वहां से हटा दिया। आजाद ने बडी आत्मीयता से बच्चों के पिता का स्वागत करते हुए कहा कि हम घर की साफ सफाई कर रहे थे कि कहीं सांप बिच्छू नहीं निकल आएं। आंगन गीला होने के कारण बच्चे और उनके पिता दरबाजे से ही लौट गए और अन्दर नहीं आए। इस असावधानी के लिए आजाद से सभी साथियों को कडी फटकार खानी पडी थी। दूसरे दिन दरबाजे की सांकल को ठोक पीट कर कडा कर दिया गया ताकि आगे से कोई दरबाजे में बाहर से हाथ डाल कर उसे खोल नहीं सके।

दरोगा जी बडे या हनुमान जी?

एक बार सातार नदी तट की कुटिया (ओरछा) में रहते हुए आजाद एक साथी के साथ झांसी से लौट रहे थे तभी दो सिपाहियों ने उन्हें रोका और थाने चलने के लिए कहा। असल में उस समय इलाके में डकैती की एक घटना हो गई थी जिस में बदमाशों ने  एक व्यक्ति की हत्या कर दी थी जिससे पूरे इलाके में पुलिस की गश्त तेज कर दी गई थी और संदिग्ध लोगों को थाने बुला कर कडी पूछताछ की जा रही थी। पुलिस के पास यह खुफिया सूचना भी थी कि आजाद की मौजूदगी झांसी के आसपास ही है। आजाद को गिरफ्तार करने के लिए ग्वालियर में भी पुलिस भाग दौड करने में लगी थी। सरकार ने आजाद पर हजारों रूपए का इनाम घोषित किया हुआ था। पुलिस के पास आजाद का कोई फोटो तो था नहीं पर मुखबिरों द्वारा बताए गए हुलिए की जानकारी ग्वालियर, झांसी एवं कानपुर जिलों के हर थाने तक पहुंचा दी गई थी। इनाम के लालच में पुलिस भी आजाद को पकड लेने के लिए सक्रिय रहती थी। सिपाहियों को आजाद का जो हुलिया बताया गया था उससे दोनों सिपाहियों को कुछ शक हुआ और पूछा क्या तू आजाद है? चन्द्र शेखर आजाद ने बडे इतमीनान से जवाब दिया- हां, हम आजाद तो हैं ही तभी घर द्वार छोड कर साधू हो गए साधु तो आजाद ही होते हैं। भगवान का भजन पूजन करते हैं। अब तो हम आजाद ही है क्यों कि भगवान की सेवा करने का काम करते हैं। आजाद ने सिपाहियों को टालने के लिए और भी बाते कहीं। बोले- हम तो  हनुमान जी को चोला चढाने जा रहे थे, अब देर हो गई हैं हम चलते हैं नहीं तो हनुमान जी नाराज हो जायेंगे। सिपाहियों को हनुमान जी का क्रोध भी बताया इससे सिपाही कुछ सहम तो गए पर आजाद को थाने ले जाने पर अड गए। आजाद ने सिपाहियों को टालने की बहुत कोशिश की पर वह बात मानने को तैयार ही नहीं थे। तब आजाद को गुस्सा आ गया और उन्होंने आंखें तरेर कर कहा- दरोगा बडा है या हनुमान जी? जाओ, हम नहीं जाते थाने। इतना कह कर आजाद आगे बढ गए और उन्हें रोकने की सिपाहियों में हिम्मत नहीं हुई। एक तो आजाद पूरी तरह पहलवान लग रहे थे और उनके साथ एक आदमी और भी था। सिपाही यह बात अच्छी तरह समझ गए थे कि यह दोनों उनके काबू में आने वाले नहीं हैं। आजाद हनुमान जी का चोला चढाने आगे बढ गए और सिपाही सहमे से वहीं खडे रहे, आजाद को रोकने उनमें कोई आगे नहीं बढा।

आज 27 फरवरी को आजाद की शहादत पर सादर नमन! ( पुस्तक-नई सुबह के संपादित अंश, लेखक-राम विद्रोही)

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