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मौजूदा बीजेपी सरकार को किसी भी हालत में हराने का बहुजन संगठनों का आह्वान

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(लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया जारी है। और राजनीतिक दल और उसके नेता अपने पक्ष में मत हासिल करने के लिए जनता के बीच जा रहे हैं। लेकिन इस बीच देश और समाज में कार्यरत तमाम तरह के सामाजिक संगठन भी सक्रिय हैं और उन्होंने भी इस चुनाव में सक्रिय हस्तक्षेप करने का फैसला लिया है। इन्हीं कुछ संगठनों में सामाजिक न्याय आंदोलन (बिहार), बिहार फुले-अंबेडकर युवा मंच और बहुजन स्टूडेंट्स यूनियन (बिहार) जैसे कुछ नाम भी शामिल है। इन संगठनों ने जनता और उसमें भी खास कर बहुजन तबके के नाम एक अपील जारी की है। जिसमें उन्होंने मौजूदा बीजेपी सरकार को किसी भी हालत में हराने का आह्वान किया है। पेश है उनकी पूरी अपील-संपादक)

साथियों,

लोकसभा चुनाव-2024 कोई सामान्य चुनाव नहीं है।यह असाधारण परिस्थितियों में हो रहा असाधारण चुनाव है, इस चुनाव में संविधान व लोकतंत्र के ही भविष्य का फैसला होना है। भाजपा गठबंधन की जीत संविधान व लोकतंत्र के खत्म होने की गारंटी जैसी होगी। मोदी सरकार पिछले 10 वर्षों से संविधान व लोकतंत्र पर हमलावर रही है।

मनु विधान व तानाशाही थोपने की दिशा में बढ़ी है। वर्तमान लोकसभा चुनाव संविधान को बचाने और लोकतंत्र की पुनर्बहाली का चुनाव है और इसके लिए भाजपा गठबंधन को हराना प्राथमिक कार्यभार बन चुका है।चुनाव के दौर में भी भाजपा नेताओं की जबान से यह बात खुलकर सामने आ रही है कि संविधान बदलने के लिए एनडीए को 400 से ज्यादा सीटें चाहिए।

सड़क से संसद तक लोकतंत्र का गला घोंटने वाली मोदी सरकार ने चुनाव में भी विपक्ष की चुनौती को खत्म कर देने के लिए तमाम कोशिशें-साजिशें की है।भाजपा विरोधी गठबंधन की पार्टियों की राज्य सरकारों के मुख्यमंत्रियों तक को जेल में डाल दिया गया है।मोदी सरकार ने चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था को कठपुतली बना लिया है।

वह चुनाव परिणाम को अपने पक्ष में करने के लिए किसी हद तक जा सकती है।EVM पहले से ही सवालों के घेरे में है।स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव होने पर सवाल खड़ा है।भाजपा ने इलेक्टॉरल बांड के अवैधानिक व भ्रष्ट तरीके से अकूत धन इकट्ठा कर रखा है।मीडिया की ताकत भी उसके पक्ष में है।इस परिदृश्य में भाजपा व उसके सहयोगियों के खिलाफ चुनावी लड़ाई को विपक्षी पार्टियों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है।

संविधान व लोकतंत्र ने ही दलितों-आदिवासियों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों व महिलाओं के लिए सम्मान,हक-हिस्सा व बराबरी हासिल करने और आगे बढ़ने का रास्ता खोला है। हक-अधिकार के लिए संघर्ष करने की ताकत दी है।इस चुनाव में बहुजन समाज व मेहनतकश अवाम के लिए संविधान व लोकतंत्र बचाने के लिए भाजपा गठबंधन को हराना पहली जरूरत है।यह चुनाव भाजपा गठबंधन बनाम बहुजन समाज-मेहनतकश अवाम का है।बहुजन समाज व मेहनतकश अवाम को उठ खड़ा होना होगा, चुनाव को जन आंदोलन बना देना होगा।

मोदी सरकार के खिलाफ दस वर्षों से जो भी शक्तियां संघर्षरत रही हैं, उन्हें इस चुनाव में इकट्ठा होकर अधिकतम ताकत लगा देने की जरूरत है,ताकत को बिखरने से रोकने की जरूरत है।उत्पीड़ित समाज की ताकत पर खड़ी जो भी शक्तियां भाजपा का रास्ता बनाने में शामिल हैं,वे इतिहास के कूड़ेदान में होंगी ,उन्हें खारिज करना होगा।

विकास और विश्व की 5वीं बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के दावों के बीच मोदी राज में आर्थिक असमानता जबर्दस्त ढंग से बढ़ी है।अरबपति पूंजीपतियों की तादाद बढ़ी है तो दूसरी तरफ करोड़ों की आबादी गरीबी रेखा के नीचे जा चुकी है।आज के भारत में अंग्रेजी राज से भी ज्यादा आर्थिक असमानता है।ऊपर के 1प्रतिशत का देश की आय के 22 प्रतिशत और संपत्ति के 40 प्रतिशत पर कब्जा है।मोदी सरकार की अर्थनीति से पूंजीपतियों की तिजोरी उफनने के बीच महंगाई जानलेवा हो चुकी है, आम अवाम की आमदनी घटी है।वैश्विक भूख सूचकांक में भारत 125 देशों की सूची में 111वें स्थान पर चला गया है।80 करोड़ लोगों को प्रत्येक माह 5 किलो अनाज देने का ढोल पीटा जा रहा है।

वहीं, बेरोजगारी ने विस्फोटक आयाम ग्रहण कर लिया है।2019 में बेरोजगारी दर 45 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थी।भारत के बेरोजगारों में युवाओं की हिस्सेदारी 83% तक पहुंच गई है।उसमें भी माध्यमिक या उच्च शिक्षा प्राप्त बेरोजगारों की हिस्सेदारी 2000 में 35.2% से दोगुनी होकर 2022 में 65.7% हो गई है। युवा बेरोजगारी दर 40% से अधिक है,जबकि केन्द्र सरकार के विभागों-संस्थानों में 30 लाख से अधिक स्वीकृत सरकारी पद खाली पड़े हैं।बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी और आर्थिक असमानता की मार भी सबसे ज्यादा बहुजन समाज पर ही पड़ती है।

मोदी सरकार ने कॉरपोरेटों को आम अवाम के बैंकों में जमा गाढ़ी कमाई को बड़े पैमाने पर लूटने की छूट और कर्ज माफी व टैक्स रियायत दिया, लेकिन किसानों को एमएसपी की कानूनी गारंटी नहीं दी।मजदूरों को अधिकतम निचोड़कर पूंजीपतियों का मुनाफा बढ़ाने के लिए श्रम कानूनों को बदल दिया गया।मोदी राज में बड़े पैमाने पर सरकारी संपत्तियों व सार्वजनिक सेवाओं-सुविधाओं जैसे रेल-सड़कें-हवाई अड्डे,बैंक-बीमा,शिक्षा-स्वास्थ्य आदि को अंबानी-अडानी जैसे पूंजीपतियों के हवाले कर निजीकरण किया गया है।

इसके कारण अनुसूचित जाति-जनजाति व अतिपिछड़ों-पिछड़ों को रोजगार के अवसरों में हासिल आरक्षण भी खत्म हो रहा है क्योंकि निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू नहीं है।निजीकरण से जरूरी सेवाओं व सुविधाओं तक बहुजनों की पहुंच भी मुश्किल होती जा रही है।बहुजनों के लिए शिक्षा का दरवाजा बंद करने के लिए नई शिक्षा नीति-2020 को थोप दिया गया है। इस शिक्षा नीति में एससी, एसटी व ओबीसी के आरक्षण का जिक्र तक नहीं है। नई शिक्षा के तहत सरकारी स्कूल बंद किये जा रहे हैं। बड़े पैमाने पर कॉलेज बंद किए जाएंगे। अब पूंजीपतियों को स्कूल-कॉलेज-विश्वविद्यालय चलाने की खुली छूट मिल गयी है।

मोदी राज में सामाजिक अन्याय व असमानता ने भी नई ऊंचाई ग्रहण की है।एससी,एसटी व ओबीसी का आबादी के अनुपात में हर क्षेत्र में हिस्सेदारी के सवाल को हल करने के बजाय मोदी सरकार ने संविधान पर हमला करते हुए आर्थिक आधार पर सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण दे दिया।इस सवर्ण आरक्षण(EWS) के कारण एससी,एसटी व ओबीसी का आरक्षण प्रभावहीन होता जा रहा है।एससी,एसटी व ओबीसी के हिस्से पर सवर्णों का कब्जा बढ़ता जा रहा है।मोदी सरकार ने 33 प्रतिशत महिला आरक्षण बिल पारित किया है।जिसमें ओबीसी महिलाओं के लिए कोई अलग कोटा नहीं दिया गया है।

जबकि वर्तमान में भी 42 प्रतिशत से ज्यादा संसद सदस्य सवर्ण हैं। जातिवार जनगणना होता तो ओबीसी के लिए सामाजिक न्याय का बंद दरवाजा खुलता, ओबीसी के उप वर्गीकरण और आरक्षण के बंटवारे का भी ठोस व तर्कसंगत आधार मिलता।मोदी सरकार ने जातिवार जनगणना से इंकार कर बता दिया है कि वह पिछड़ों-अतिपिछड़ों का दुश्मन नं-1 है।भाजपा ने रोहिणी कमीशन के नाम पर अति पिछड़ों को छलने का ही काम किया है। आदिवासियों को जंगल-जमीन से खदेड़ा जा रहा है।आज भी बहुजनों का बड़ा हिस्सा भूमिहीन हैं। लेकिन जल,जंगल,जमीन को पूंजीपतियों के हवाले किया जा रहा है।

मोदी सरकार धर्मनिरपेक्षता के संवैधानिक मूल्यों पर हमलावर रही है।संविधान के धर्मनिरपेक्ष बुनियाद को तोड़ते हुए सीएए थोप दिया गया।अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा-अन्याय ने नई ऊंचाई ग्रहण की है।इस बीच नरेन्द्र मोदी पसमांदा मुसलमानों के लिए घड़ियाली आंसू भी बहाते रहे हैं।जबकि मॉब लिंचिंग और सरकारी बुल्डोजर के शिकार लोगों में 95 प्रतिशत पसमांदा समाज के ही हैं।मोदी सरकार ने दलित मुसलमानों-ईसाइयों को एससी का दर्जा नहीं देने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दो बार लिखकर दे दिया है।

ब्राह्मणवादी जातीय व पितृसत्तात्मक हिंसा भी काफी बढ़ी है।दलितों,आदिवासियों,अतिपिछड़े-पिछड़ों व महिलाओं के साथ हिंसा-उत्पीड़न व बलात्कार की घटनाओं की बाढ़ आ गयी है।न्याय का गला घोंटा जाता रहा है।

कुल मिलाकर,बहुजनों पर ब्राह्मणवादी-पूंजीवादी गुलामी का शिकंजा बढ़ा है।भाजपा-आरएसएस का एजेंडा ही है-अंतिम तौर पर संविधान और लोकतंत्र को खत्म कर मुल्क पर ब्राह्मणवादी-पूंजीवादी तानाशाही थोप देना।उसके हिंदू राष्ट्र बनाने का यही मतलब है।

मोदी सरकार के दस वर्षों में बहुजन समाज और मेहनतकश तबकों व छात्र-नौजवानों ने सड़कों पर लगातार संघर्ष किया है।

आइए,जातिवार जनगणना कराने,ओबीसी आरक्षण को आबादी के अनुपात में बढ़ाने,संविधान विरोधी ईडब्ल्यूएस आरक्षण को खत्म करने, एससी-एसटी व ओबीसी को आबादी के अनुपात में हर क्षेत्र, यथा हाई कोर्ट-सुप्रीम कोर्ट,निजी क्षेत्र में हिस्सेदारी देने,दलित मुसलमानों व ईसाइयों को एससी सूची में शामिल करने,शिक्षा-चिकित्सा पर सरकारी खर्च बढ़ाने,निजीकरण बंद करने,नई शिक्षा नीति-2020 की वापसी के साथ केजी से पीजी तक निःशुल्क व एकसमान शिक्षा लागू करने,महंगाई पर रोक लगाने के साथ जनवितरण प्रणाली के दायरे में सबको लाने और जरूरी खाद्य सामग्री की उपलब्धता की गारंटी करने,रोजगार को मौलिक अधिकार बनाने,तमाम रिक्त सरकारी पदों पर बहाली,रोजगार नहीं तो बेरोजगारी भत्ता देने,ठेका-मानदेय के बजाय स्थायी बहाली करने,सेना में बहाली के अग्निपथ योजना को खत्म करने,कृषि में सरकारी निवेश बढ़ाने और एमएसपी की कानूनी गारंटी करने,मजदूर विरोधी चारों श्रम कोड को वापस लेने सहित अन्य मुद्दों पर चुनाव में भी संघर्ष की धारावाहिकता को बनाए रखें,

बहुजन दावेदारी को बुलंद करें!

आइए,हम भाजपा-आरएसएस के खतरनाक मंसूबों को नाकामयाब बनाएं।

भाजपा गठबंधन को चुनाव में शिकस्त देने के लिए अधिकतम ताकत लगाएं!

बहुजन समाज और मेहनतकश अवाम को मोदी की गारंटी नहीं,संवैधानिक-लोकतांत्रिक हक की गारंटी चाहिए।

संविधान व लोकतंत्र चाहिए!

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