विजय विनीत
उत्तर प्रदेश का बनारस बारिश का एक झटका भी नहीं झेल पाया और लोग बिलबिला उठे। बनारस कोई मामूली शहर नहीं है, ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है, जिसे जापान का क्योटो बनाने के लिए बनारसियों को सब्जबाग दिखाया था। बनारस के कई नेताओं और अफसरों को क्योटो भेजा गया, लेकिन नतीजा वही निकला-ढाक के तीन पात। झमाझम बारिश के चलते बनारस शहर की सड़कें भी धंस रही हैं। शहर का कोई भी ऐसा कोना नहीं बचा है, जहां जलप्लावन की स्थिति पैदा नहीं हुई हो। बारिश से वंचित तबके के लोग ज्यादा भयभीत हैं, क्योंकि विकास योजनाओं के लिए उजाड़े गए हजारों लोगों के पास कोई छत नहीं है। कोई पालिथीन डालकर गुजारा कर रहा है तो कोई खुले आसमाने के नीचे।
बनारस में बारिश के चलते जलजमाव की स्थिति उन इलाकों में ज्यादा है, जिन्हें अनियोजित तरीके से बसाया गया है। इस शहर में सैड़कों इलाके हैं जहां अवैध रूप से पहले कालोनियां बसाई गईं और बाद में गगनचुंबी इमारतें तान दी गईं। दो-तीन दिनों की बारिश से बजरडीहा और सरैया के राज भंडार और निबुरिया मुहल्ले में बारिश का काफी पानी जमा हो गया है। इसके अलावा पुलिस लाइन, पुलिस आवास, पुलिस ग्राउंड, पुलिस क्लब आवास, ज़िला प्रतिसार कार्यालय, जिला बेसिक अधिकारी कार्यालय सहित अन्य दफ्तरों में बारिश का पानी पानी लबालब भर गया, जिसके चलते सरकारी कामकाज पर भी असर पड़ रहा है।
बनारस शहर के मंडुवाडीह, गोदौलिया, महमूरगंज, पीठीकोठी, नदसेर, लहुराबीर समेत कई इलाकों में जलभराव से लोग परेशान हैं। लोगों का कहना है कि बारिश के बाद पानी का दबाव होने से प्लास्टिक की थैलियां मुख्य नालों और नालियों के मुख्य मार्ग में फंस जा रही है। शनिवार की शाम करीब तीन घंटे से ज्यादा समय तक हुई बारिश से कई इलाकों में बाढ़ जैसा नजारा दिखाई देने लगा। विश्वनाथ मंदिर के लिए जाने वाले गौदौलिया चौराहे पर कमर तक पानी लग गया। नई सड़क और गुरुबाग की कई दुकानों में पानी घुस गया। मैदागिन व मच्छोदरी पर भी ऐसी ही स्थिति रही।
अंधरापुल, तेलियाबाग, बेनियाबाग, बड़ी पियरी, पिपलानी कटरा में भी पानी भरा रहा। वहीं, बारिश से फुलवरिया फोरलेन जाने वाले मार्ग से पहले बौलिया पर सड़क धंस गई है। इसमें पानी भी जमा हो गया है। कई जगहों पर गिट्टियां उखड़कर बिखर गई हैं। सड़कों पर गड्ढों की संख्या इतनी अधिक हो चुकी है कि इससे चोटिल होने का खतरा है। लोगों को पैदल आवागमन में भी परेशानी हो रही है।
दुकानों में घुस रहा पानी
जल निकासी की सही व्यववस्था नहीं होने से लोगों के घरों और दुकानों में पानी घुसने लगा है। बड़ी गैबी, जक्खा, मोतीझील, सीस नगवा, चपरहिया पोखरी, मकदूम बाबा, देव पोखरी, अम्बा पोखरी, अहमदनगर, जक्खा कब्रिस्तान, आकाशवाणी मोड़, शिवपुरवा का हनुमान मंदिर मैदान, शायरा माता मंदिर, जेपी नगर मलिन बस्ती, निराला नगर लेन नंबर तीन, सरैया पोखरी, सरैया फकीरिया टोला, कोनिया धोबीघाट, जलालीपुरा, अमरोहिया, सरैया मुस्लिम बस्ती, कोनिया मोहन कटरा, अमरपुर मढहिया, सरैया निगोरिया, रमरेपुर, मवईया यादव बस्ती, शेखनगर बैरीवन में जलप्लावन के चलते स्थिति गंभीर होती जा रही है।
नगर निगम की ओर से जलभराव से बचने के लिए कोई स्थायी समाधान नहीं किया गया। जलभराव की समस्या को लेकर कई वार्डों के पार्षदों ने शिकायतें दर्ज कराईं, लेकिन जलभराव की समस्या का समाधान नहीं हुआ। नाला सफाई के साथ ड्रेनेज सिस्टम को दुरुस्त करने के लिए के लिए बेहतर प्रबंध नहीं किया गया। पियरी क्षेत्र में एक सप्ताह से सौ साल पुरानी पाइपलाइन टूटी है। इसके चलते दूषित जलापूर्ति हो रही है। साथ ही गली में लगे पत्थर का ढक्कन भी धंस गया है। क्षेत्र की जनता पेयजल संकट से जूझ रही है। पियरी इलाके के नागरिक राजू सिंह ने कहते हैं कि आए दिन दूषित जलापूर्ति के चलते संक्रामक रोगों का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। शिकायत के बावजूद जलकल महकमा इस समस्या का स्थायी हर नहीं निकाल पा रहा है।
आदि विश्वेश्वर वार्ड के पार्षद इंद्रेश सिंह कहते हैं, “बनारस में सौ बरस पुरानी पाइप लाइन लीकेज होने से सीवर का पानी पेयजल लाइन में मिल जा रहा है। इसके लोगों के घरों में गंदे पानी की सप्लाई हो रही है।” हालांकि जलकल विभाग के महाप्रबंधक विजय नारायण मौर्य कहते हैं, “हम स्थिति पर नजर रखे हुए हैं। दूषित जलापूर्ति की समस्या को प्राथमिकता से हल किया जा रहा है।”
वाराणसी शहर के दोनों रेल मंडलों की एक दर्जन से ज्यादा कॉलोनियों में रेलकर्मी और उनके परिजन पिछले साल की तरह इस बार भी घरों में कैद होते जा रहा हैं। उत्तर रेलवे की एईएन कॉलोनी की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है। जल निकासी का पुख्ता इंतजाम न होने से टुल्लू से पानी निकालने की दिन-रात कवायद चल रही है।
बारिश से बुनकर बेहाल
कोनिया, सामने घाट, डोमरी, नगवा, रमना, बनपुरवा, शूलटंकेश्वर के कुछ गांव, फुलवरिया, सुअरबड़वा, नक्खीघाट, सरैया समेत कई इलाकों में बारिश का पानी कहर बरपा रहा है। इनमें ज्यादातर वो इलाके हैं जहां के दस्तकार विश्व प्रसिद्ध बनारसी साड़ियां बुनते हैं। सरैया, नक्खी घाट और बजरडीहा में बारिश का पानी घुसने से कई कारखानों में बनारसी साड़ियों की बिनकारी बंद हो गई है। आफत की बारिश ने बुनकरों की कमर तोड़नी शुरू कर दी है। हजारों बुनकरों की आजीविका पर असर पड़ा है, क्योंकि बारिश का पानी बुनकरों के करघों में घुसने लगा है।
सरैया के बुनकर नेता बदरुद्दीन अंसारी कहते हैं, “हर साल हल्की मामूली बारिश सरैया, राज भंडार, पीलीकोठी, मजूरूलूम, आजाद पार्क, जियाउल उलूम, बजरडीहा आफत बनकर आती है। ऐसा नहीं है कि बहुत बारिश हो तभी ऐसा होता है। केवल घंटे भर की बारिश सभी जगह पानी-पानी हो जाता है। पानी निकासी की व्यवस्था नहीं होने की वजह से सीवर जाम हो जाता है। यह तो बनारस का पुराना मर्ज है। लेकिन जिस तरह से पिछले सात सालों में इस शहर में पानी की तरह पैसा बहाया गया, उसका कोई सार्थक नतीजा नहीं निकला। न तो ड्रेनेज सिस्टम सुधारा जा सका और न ही मुकम्मल तौर पर नालों की सफाई की जा सकी। सीवर और नाले जाम होने की वजह से पानी इकट्ठा हो जाता है।”
बुनकर जियाउद्दीन अंसारी कहते हैं, ” बुनकर बस्तियों में ड्रेनेज सिस्टम बहुत ही ज्यादा खराब है। थोड़ा भी पानी बरसता है तो ओवरफ्लो हो जाता है। बुनाई का काम बंद हो जाता है। जब बारिश होती है तो पानी घर में आ जाता है, जिसकी वजह से काम बंद हो जाता है। बारिश के बाद कई महीने तक लोगों को अपना काम से सेट करने में कई महीने लग जाते हैं।”
भारी पड़ रहा नया विकास
‘विकास’ की मार झेल रहे बनारस में पिछले एक दशक से लगातार बनारस में खुदाई हो रही है। इसके कारण कई जगह सड़कें भी अक्सर धंस जाती हैं। विभिन्न विभागों के बीच आपस में कोई तालमेल नहीं है, जिसका खामियाजा यहां के लोग अब भुगत रहे हैं। अभी तो साल 2024 के मानसून की शुरुआत हुई है।
बनारस में देश का सबसे पुराना ड्रेनेज सिस्टम शाही नाले के नाम से आज भी मशहूर है। इसे हाथी नाला भी कहा जाता है। सरकारी मशीनरी के पास इन नाले के नक्शा तक नहीं है। सिर्फ अंदाज से नाले की मरम्मत कराई गई। नतीजा यह निकला कि शाही नाले की और दुर्गति हो गई। ईस्ट इंडिया कंपनी ने बनारस के टकसाल अधिकारी जेम्स प्रिंसेप ने 1827 में ड्रेनेज सिस्टम को दुरुस्त करने के लिए शाही नाले का निर्माण कराया था। नाला इतना बड़ा है कि उसके अंदर हाथी भी दौड़ सकता था।
नरेंद्र मोदी जब बनारस के सांसद बने तो साल 2016 में इस नाले की सफाई का काम जापान की कंपनी जायका को दिया गया। जायका ने पड़ताल की तो पता चला कि वाराणसी नगर निगम के पास तो शाही नाले का नक्शा ही नहीं है। तब रोबोटिक कैमरे से नाले के भीतर की जानकारी ली गई। बीते चार साल से नाले की सफाई हो रही है जो अब तक पूरी नहीं हो सकी है।
जल निगम के इंजीनियर और आर्किटेक्ट हैरान हैं कि जब यह नाला बनाया गया, तब बनारस की आबादी महज एक लाख 80 हजार थी। आज 30 लाख के पार है। शहर विस्तार लेता जा रहा है, लेकिन वाटर ड्रेनेज को दुरुस्त करने का काम आज तक नहीं हो सका है। साल 2015 में नए स्टार्म वाटर सिस्टम का दिवाला पिट जाने के साथ ही सरकारी मशीनरी की कलई खुल गई। ढोल बहुत पीटे गए, पर स्थिति जस की तस है।
सालों में भी नहीं हुई नाले की सफाई
अस्सी से कोनिया तक करीब सात किमी लंबी असि नदी अब भी अस्तित्व में है, लेकिन उसकी भौतिक स्थिति के बारे में किसी के पास सटीक जानकारी नहीं है। पुरनियों के मुताबिक यह नाला अस्सी, भेलूपुर, कमच्छा, गुरुबाग, गिरिजाघर, बेनियाबाग, चौक, पक्का महाल, मछोदरी होते हुए कोनिया तक गया है। पिछले कई सालों से इसकी सफाई हो रही है। बताया जा रहा है कि अब सिर्फ 681 मीटर शाही नाला साफ किया जाना बाकी है। मजदूर भाग गए हैं। साल के आखिर तक यह काम पूरा हो पाएगा, यह कह पाना कठिन है।
काशी पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप कुमार कहते हैं, “बनारस में दो सौ साल बाद भी ड्रेनेज व सीवेज व्यवस्था उसी जेम्स प्रिंसेप के शाही नाले के भरोसे है। आज तक उस नाले की सही मायने में सुध-बुध तक नहीं ली गई। दुर्भाग्य की बात यह है ड्रेनेज सिस्टम के साथ खिलवाड़ का खामियाजा समूचा बनारस भुगत रहा है। 17 जून 2021 को यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ बनारस आए और शहर में जलप्लावन की स्थिति देखने के बाद अफसरों को कड़ी फटकार लगाई। हर बार की तरह इस बार भी जल निगम के अफसरों को चेतावनी देकर लौट गए।”
“शहर में जलजमाव का एक बड़ा कारण यह है कि भूमाफिया, नौकरशाही और जनप्रतिनिधियों की तिकड़ी ने मिलकर शहर की ड्रेनज प्रणाली को तहस-नहस कर दिया है। कुंडों और तालाबों को पाटकर कालोनियां बना दी गई हैं। चाहे वो नदेसर तालाब हो, या फिर सुकुलपुरा तालाब व सगरा तालाब। असि नदी का अस्तित्व भी मिटता जा रहा है।”
बनारस शहर में कई नाले, तालाब और झीलें थीं, जिससे बरसात का पानी उसमें बहकर चला जाता था। अब उसे पाटकर कालोनियां बना दी गई हैं। महमूरगंज के पास एक मोतीझील थी, उसे पाटा जा चुका है। झील अब एक छोटे से तालाब में सिमट गई है। बनारस में रानी भवानी ने कई तालाब बनवाए थे। ब्रिटिश काल में उन तालाबों में कछुआ छोड़े गए थे, ताकि पानी की सफाई होती रहे। खोजवां में शंकुलधारा तालाब, सोनिया तालाब, अस्सी-भदैनी के पास पांच-छह तालाब हैं। ये तालाब अस्तित्व में हैं, लेकिन उसके किनारों को पाटकर कब्जा किया जा चुका है।
झील -तालाबों का शहर था बनारस
वरिष्ठ पत्रकार राजीव मौर्य बताते हैं, “बेनियाबाग में भी एक बड़ी झील थी, जो अब लगभग खत्म हो गई है। लहुराबीर, नईसड़क बेनिया व आसपास के मुहल्लों का पानी गलियों से बहता हुआ पहले इसी झील में आता था। यही कारण है कि अधिक बारिश होने पर भी एक-दो घंटे में पानी निकल जाता था। बनारस की बनावट ऐसी है कि यहां की गलियां व सड़के जो गंगा की तरफ जाती हैं, उससे भी बरसात का पानी निकलता था। अब वह व्यवस्था लगभग चरमरा गई है। यह सिर्फ मंदिरों का ही नहीं बल्कि कभी तालाब व झीलों का भी शहर था। इसीलिए इसे काननवन भी कहा जाता है। जंगल तो अब हैं नहीं। झील खत्म हो गई। तालाब भी मर रहे हैं।”
राजीव यह भी कहते हैं, “विकास करते हुए हम इतना आगे निकल चुके हैं कि अब पीछे लौटना मुश्किल है। मसलन गोदौलिया से दशाश्वमेध घाट जाने वाले मार्ग को खोदकर उस पर पत्थर की पटिया लगा दी गई है। पहले जो फुटपाथ था, उसे खोद दिया गया और पुन: नया फुटपाथ बना है। फुटपाथ का पानी किधर जाएगा, इस पर ध्यान नहीं दिया गया। मामूली बारिश में विश्वनाथ मंदिर का इलाका जब ताल-तलैया में तब्दील हो जाता है। तब बनारस लोग इस बूढ़े शहर को क्योटो कहना शुरू कर देते हैं। “
बनारस के शहर के सबसे व्यस्त जगह में से एक गोदौलिया इलाके के समाजसेवी गणेश शंकर पांडेय कहते हैं, “चुनावी रैली के दौरान पीएम मोदी लंका से यहां तक (लंका से गोदौलिया) आए थे। हमारी इच्छा है कि एक बार फिर हमारे माननीय सांसद नरेंद्र मोदी लंका से यहां तक आएं, जब वो एक बार इस पानी में सफर करेंगे तब उनको समझ आएगा वाकई में असल समस्या क्या है। उन्हें सड़क की भी समस्या समझ आएगी, उन्हें पानी की भी समस्या समझ आएगी और पानी निकासी की भी समस्या समझ आ जाएगी।”
पांडेय यह भी कहते हैं, “नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बाद में हैं, पहले हमारे यहां के सांसद हैं। एक सांसद होने के नाते उन्हें हमारी मुश्किलें समझनी चाहिए। उन्हें यह भी समझना चाहिए कि भले ही बारिश दो दिन होती हो, लेकिन हमारा नुक़सान तो कई दिन का होता है।”
समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता मनोज राय धूपचंडी कहते हैं, “भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने बनारस को एक प्रयोगशाला बना दिया है। स्मार्ट सिटी योजना के तहत दीवारों पर पेंट के अलावा और कोई काम नहीं हुआ है। अगर काम हुआ होता तो आज बरसात की पानी इकट्ठा नहीं होता। लोगों को पीने के लिए साफ पानी मिलता। बनारस में सिर्फ रंग-रोगन है और बदहाली है। देश-विदेश से यहां जो भी आता है, बनारस शहर को कोसते हुए लौटता है। यह हाल उस शहर का है जिसके माथे पर क्योटो और स्मार्ट सिटी का तमगा चस्पा है।”
“भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने बनारस को एक प्रयोगशाला बना दिया है। हमेशा से बनारस के साथ एक्सपेरिमेंट करते रहते हैं। कभी क्योटो बना देते हैं, कभी स्मार्ट सिटी बना देते हैं लेकिन धरातल पर ऐसा कुछ नहीं हुआ है जिससे स्मार्टनेस दिखाई दे और बनारस में कुछ परिवर्तन दिखाई दे। करीब 32 बरस से बनारस (नगर निगम) में बीजेपी की ही सरकार रही है। इसलिए शहरी व्यवस्था के लिए चाहे वो पानी निकासी की व्यवस्था हो, पीने की पानी हो या, स्ट्रेट लाइट का हो ये सब इन्हीं की ज़िम्मेदारी थी। स्मार्ट सिटी में दीवारों पर पेंट के अलावा और कोई काम नहीं हुआ है। अगर काम हुआ होता तो आज बरसात की पानी इकट्ठा नहीं होता। लोगों को साफ पानी मिलता।”
दूर नहीं हुई खामियां
वाराणसी शहर में जलनिकासी के लिए स्टार्म वाटर ड्रेनेज सिस्टम योजना बेहद परियोजना महत्वपूर्ण है। इस लिहाज से टेकओवर से पहले पाइप लाइन की सफाई के साथ ही जल निकासी सिस्टम की खामियों को दूर करने के लिए 15वें वित्त से 14 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, लेकिन कई स्थानों पर सिस्टम की पाइप का आपस में कनेक्शन ही नहीं किया गया। वहीं, रही सही कसर पीडब्ल्यूडी, गेल, आइपीडीएस समेत अन्य विभागों ने पूरी कर दी है। सड़क चौड़ीकरण व भूमिगत पाइपों को बिछाने में स्टार्म वाटर ड्रेनेज सिस्टम को क्षतिग्रस्त कर दिया है। पीडब्ल्यूडी ने तो सिस्टम में लगे ढक्कन ही तारकोल व गिट्टी के नीचे दबा दिए। परिणाम, ढक्कन पर बने 16 छेद जिससे बारिश का पानी पाइप लाइन में चला जाता वह रुक गया और सड़कें बारिश के पानी से लबालब हो गईं। रोड साइड ड्रेन का कनेक्शन भी नहीं किया।
जल निकासी के लिए साल 2009 में स्टार्म वाटर ड्रेनेज सिस्टम की योजना बनाई गई। 253 करोड़ रुपये की इस योजना में शहर भर में करीब 76 किलोमीटर पाइप लाइन बिछाई गई। जल निकासी की यह योजना साल 2015 में ही पूरी हो गई है, लेकिन कारगर नहीं हुई। खास यह की योजना पूर्ण हुए छह वर्ष हो गए लेकिन नगर निगम को इसे अभी तक जल निगम ने हैंडओवर नहीं किया है। ड्रेनेज सिस्टम का जगह-जगह बनाए गए कैकपिट और जालियों को लोक निर्माण विभाग और नगर निगम द्वारा सड़क बनाए जाने के दौरान पाट दिया गया है। इससे स्टार्म वाटर ड्रेनेज सिस्टम पूरी तरह क्रियाशील नहीं हो सका। बंद जालियों के अलावा कैकपिट को खुलवाने के लिए गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई ने तीन करोड़ का डीपीआर तैयार कराया है, लेकिन इस योजना को अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका। सूबे के राज्यमंत्री डॉ. नीलकंठ तिवारी ने दो साल पहले अफसरों को स्टार्म वाटर ड्रेनेज सिस्टम को दुरुस्त करने का निर्देश दिया था, लेकिन हालात नहीं बदले।
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और विधान परिषद सदस्य अशुतोष सिन्हा बताते हैं, “साल 2006 में बनाए गए वाराणसी सिटी डेवलपमेंट प्लान में जल निकासी के लिए 300 करोड़ रुपये खर्च कर दिए गए, कई सालों तक खुदाई हुई, लोगों को परेशानी हुई लेकिन कोई हल नहीं हुआ। जल निकासी पाइन लाइन, सीवर पाइप लाइन, पेयजल पाइप लाइन के लिए सड़कें तो खोद दी गईं लेकिन इसके लिए कोई नक्शा नहीं बनाया गया।”
पिछले एक हफ्ते में हुई बारिश के चलते शहर में करीब दो दर्जन स्थानों पर सड़कें धंस गईं। बिदुमाधव वार्ड के दुर्गाघाट मोहल्ले में ब्रह्मचारिणी मंदिर के आसपास बारिश के चलते सीवर ओवरफ्लो होने से दर्जनभर मकानों में दरारें पड़ गई हैं। तीन-चार मकान धंस रहे हैं। अस्सी, जद्दूमंडी, हनुमान फाटक, पीलीकोठी, कतुआपुरा, राजमंदिर, टेढ़ीनीम में भी कई मकानों में दरारें आ चुकी हैं। जलकल विभाग ने इन भवनों में रहने वाले परिवारों को जल्द मकान खाली करने की एडवाइजरी जारी की है। जिन इलाकों में सड़कों के धंसने की सूचना है उनमें भोजूबीर सब्जी मंडी, मीरापुर बसही, नवलपुर, पंचक्रोशी मार्ग, अर्दली बाजार, महावीर मंदिर, सोनारपुरा, हरिश्चंद्र, जवाहर नगर, शंकुलधारा, साकेत नगर, संकट मोचन, भेलूपुर, मंडुवाडीह, महमूरगंज, औरंगाबाद, लहंगपुरा, चेतगंज आदि इलाके शामिल हैं। सिगरा चौराहे से सिद्धगिरीबाग जाने वाले मार्ग पर चार जगहों पर सड़क धंस गई थी। कई जगहों पर बड़े-बड़े गड्ढे भी हो गए हैं।
बारिश के चलते मंडुवाडीह से ककरमत्ता , बजरडीहा, जोल्हा, जक्खा, खोजवां, सोनिया, सिगरा, सिंधोरा, भोजूबीर मार्ग पर भी सड़कें धंस गई हैं। पीडब्ल्यूडी और नगर निगम ने अधिकतर जगहों पर सड़कों को भर दिया है। जलकल विभाग से सचिव ओपी सिंह कहते हैं, “भारी बारिश के चलते क्षेत्र में कई जगहों पर जलभराव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिस हिसाब से शहर में सड़क धंसने की घटना बढ़ रही है, उससे लोगों का डरना स्वाभाविक है। ऐसी स्थिति में जलभराव वाले रास्ते पर जाने से बचना चाहिए।” दूसरी ओर लोक निर्माण विभाग के अवकाशप्राप्त अधिशासी अभियंता सुग्रीम राम कहते हैं, “भीषण गर्मी की वजह से सड़कों के नीचे की परत पूरी तरह से सूख जाती है। नमी खत्म होने के कारण मिट्टी के रूप में मौजूद नीचे की परतों में गैप हो जाता है। अचानक भारी बारिश के चलते गैप में पानी भरने से मिट्टी गिली हो जाती है और सड़क धंस जाती है। इसके अलावा सड़क बनने के दौरान मानकों की अनदेखी की वजह से भी सड़क धंसने की घटनाएं होती हैं।”
बनारसः एक नज़र में
* शहर का क्षेत्रफल : 112.26 वर्ग किमी
* नदियां : गंगा, वरुणा, असि, गोमती, बेसुही, नाद
* शहर में वार्ड : 90
* शहर में मुहल्ले : 434
* शहर में आवास : 192786
* शामिल हुए नए गांव : 86
* छोटे व बड़े कुल 113 नाले।
* नगवां-अस्सी नाला, नरोखर नाला, अक्था नाला, सिकरौल नाला, बघवा नाला मुख्य प्राकृतिक नाले।
* अंग्रेजों के जमाने में 24 किमी का शाही नाला।
* एक दशक पूर्व बना 76 किमी का स्टार्म वाटर ड्रेनेज सिस्टम।
* दो सौ वर्ष पूर्व जब शाही नाले के रूप में पहला ड्रेनेज बना था तो शहर की आबादी 1.80 लाख थी और क्षेत्रफल 30 वर्ग किमी था।
* चार सौ करोड़ का ट्रांस वरुणा सीवेज सिस्टम।
* तीन सौ करोड़ का सिस वरुणा सीवेज सिस्टम।
* एक सौ 72 करोड़ का रमना सीवेज सिस्टम।
(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)