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आधारभूत चिंतन : समय यात्रा

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        डॉ. विकास मानव

आधुनिक वैज्ञानिकों ने समय को लेकर अद्भुत तथ्यों का आविष्कार किया। वे मानने लगे हैं कि समय का सम्बन्ध चौथे आयाम से है। हम लोग त्रिआयामी विश्व के उत्पाद या विषय हैं। लम्बाई, चौड़ाई व गहराई या ऊँचाई तीन आयाम हैं, परन्तु आयामों की संख्या बहुत अधिक हो सकती है।

     वैज्ञानिक जगत चौथे तथा पाँचवें समय आयाम (Time Space) पर कार्य कर रहा है। नवीन धारणाओं के अनुसार समय का विस्तार हो सकता है, वह धीमी या तेज गति का हो सकता है, उसमें समय अन्तराल या अंतरिक्ष अंतराल हो सकता है, उसमें छिद्र हो सकते हैं इत्यादि-इत्यादि।

      इस लेख में इन सब के बारे में हम सरल शब्दावली में चर्चा करेंगे। उससे पहले हम श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम की पत्नी रेवती के विवाह के लिए की गई कोशिश पर दृष्टिपात करेंगे. इसलिए कि इसके माध्यम से हमें पता चलेगा कि ऋषियों को समय के इस गुण का ज्ञान था। रैवन्तक ऋषि ने पृथ्वी लोक से ब्रह्म लोक तक पहुँचने में चौथे आयाम के गुण व गति का प्रयोग किया था।

      सूर्यवंश में आनर्त नाम के राजा के एक पुत्र हुआ, जिसका नाम रैवत था। रैवत ने कुशस्थली पुरी का निर्माण करके वहाँ शासन किया। उनके 100 पुत्र हुए और रेवती नाम की कन्या। रैवत ने अपनी पुत्री रेवती के विवाह की इच्छा से एक बार उसे अपने रथ पर आरूढ़ किया और भूमण्डल की परिक्रमा करने लगे। उचित वर ना मिलने पर वे योग बल से ब्रह्म लोक में चले गये और ब्रह्मा से अपनी इच्छा प्रकट की।

     ब्रह्मा ने राजा रैवत से हँसते हुए कहा कि राजन् ! जब से तुम पृथ्वी से आए हो तब से काल बड़ी तेजी के साथ बीत चुका है। पृथ्वी पर 27 चतुर्युग बीत चुके हैं। तुम्हारे पुत्र-पौत्र और भाई- बंधु अब उस लोक में नहीं मिलेंगे। उनके गोत्र तक विलुप्त हो चुके हैं। अब तुम पुनः पृथ्वी पर जाओ जहाँ इस युग में भगवान कृष्ण और उनके भ्राता बलराम ने पृथ्वी के उद्धार के लिए अवतार लिया है। तुम्हारी पुत्री रेवती का प्रस्ताव बलराम से करो। उन्हीं से रेवती का विवाह होना है।

     यदुकुल के आचार्य गर्ग ने गर्गसंहिता में इस कथानक का उल्लेख किया है। इस कथानक से स्पष्ट होता है कि कई भुवनों या लोकों की धारणा, समय या अधिक आयामों वाली सृष्टि पर आधारित है और ऋषियों को उसका ज्ञान था।

    उन्हें यह भी ज्ञान था कि जब हम मर्त्यलोक से इतर अन्य लोकों की यात्रा करते हैं तो यह यात्रा त्रिआयाम से ऊपर के किसी अन्य आयाम में होती है और समय की गति व उसके समग्र गुण या लक्षण बदल जाते हैं।

   आधुनिक वैज्ञानिकों ने समय या चतुर्थ आयाम को लेकर जो गवेषणा की है, अब उसके बारे में हम कुछ जान लेते हैं :

    स्टीफन हॉकिंग व अन्य वैज्ञानिकों ने समय को लेकर काफी कुछ कहा है। आधुनिक भौतिक विज्ञान के अनुसार अंतरिक्ष में चेत विवर या वर्म होल (Worm Hole) होते हैं। आइंसटीन ने भी कहा है कि ऐसे वर्म होल अंतरिक्ष और समय को 2 जगहों से जोड़ता है। वर्म हॉल की कल्पना के लिए निम्न(नीचे संलग्न है) ब्रह्माण्ड में कुछ भी सपाट या ठोस नहीं होता। यदि किसी भी कण का विस्तार करेंगे या बहुत शक्तिशाली माइक्रोस्कोप से देखेंगे तो उसमें छोटे-छोटे छेद, दरार और झुर्रियाँ दिखेंगी।

     यह बात चौथे आयाम में भी नजर आएगी। परमाणुओं से भी अतिसूक्ष्म सत्ताओं में, जिसे क्वांटम (Quamtum) अवस्था कहते हैं, इसमें भी श्वेत विवर या वर्म होल उपस्थित हैं। विवर का अर्थ छिद्र के समानार्थक है। कोई भी भौतिक कण वर्म होल से नहीं गुजर सकता, क्योंकि वर्म होल किसी भी कण से असंख्य गुणा सूक्ष्म है।

     आइंसटीन ने 100 वर्ष पहले यह कल्पना की थी कि समय कहीं पर तेज और कहीं पर बहुत धीमी गति से चलता है। ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS-Global Positioning System) वाले कृत्रिम अंतरिक्ष यानों द्वारा किये गये अनुभव से पता चला है कि पृथ्वी की तुलना में समय अंतरिक्ष में तेज गति से चलता है।

     परमाणु घड़ियों के बाद भी एक दिन में पृथ्वी और अंतरिक्ष के समय में 3/1000000000 सेकण्ड का अंतर आ जाता है और घड़ियों में संशोधन करना पड़ता है। अगर यह संशोधन नहीं किया जाए तो प्रतिदिन हर GPS System में 9 किमी. से अधिक का अन्तर आ जायेगा।

    इसका कारण भौतिक सत्ताएँ हैं, जैसे कि सूर्य, चन्द्र, बुध, शुक्र, पृथ्वी आदि। पृथ्वी का द्रव्यमान समय का विस्तार कर देता है, जिसके कारण समय की गति धीमी हो जाती है। पृथ्वी की सतह से पृथ्वी के केन्द्र तक समय विस्तार (Time Dialation) की गणना वैज्ञानिकों ने की है।

     Nature पत्रिका में प्रकाशित शोध पत्र के अनुसार पृथ्वी की सतह की अपेक्षा उसके केन्द्र की आयु ढाई वर्ष कम है। समय विस्तार का कारण पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण है। आइंसटीन के सापेक्षतावाद के सिद्धान्त के अनुसार जब कोई गति प्रकाश गति के आसपास पहुँचती है, तो समय की गति धीमी हो जाती है। ऐसा तब भी होता है, जब गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव हो।

    भौतिक सत्ता जितनी अधिक विरल या कम घनत्व की होती चली जायेगी, समय संकुचित होता चला जाएगा और इसी कारण से उसकी गति बहुत तीव्र हो जायेगी। अन्य लोकों की यदि यात्रा करनी हो तो अंतरिक्ष में द्रव्यमान ना होने के कारण प्रकाश की गति से बहुत तीव्र गति प्राप्त की जा सकती है।

      सौरमण्डल के अन्दर-अन्दर तो प्रकाश गति से अधिक गति प्राप्त करना मुश्किल होता है परन्तु बाहर इस गति सीमा को लांघा जा सकता है। इस गति को ईश्वर, देवता या नारद जैसे ऋषि लांघ सकते थे। यदि वे प्रकाश गति से यात्रा करते तो एक ब्रह्माण्ड से दूसरे ब्रह्माण्ड तक यात्रा करने में असंख्य वर्ष लग सकते थे, परन्तु समय के संकुचन के कारण वे यह यात्राएँ अकल्पनीय गति से कर सकते थे और अत्यंत अल्प समय में, अर्थात् 1 सेकण्ड के एक अरबवें हिस्से से भी कम समय में एक ब्रह्माण्ड से दूसरे ब्रह्माण्ड में यात्रा कर सकते थे।

     इसलिए देवता अतिअल्प समय में जब किसी लोक या पृथ्वी पर पहुँचते थे, तो ऐसा लगता था कि वे प्रकट हो रहे हैं। जिन ऋषियों ने शरीर धारण किया हुआ था, वे योग बल से या अपने सूक्ष्म अंश से यह यात्राएँ करने में समर्थ हुए थे, इसके प्रमाण भारतीय वाङ्गमय में उपलब्ध हैं। राजा रैवत की कथा इसका एक प्रमाण है।

      इस अकल्पनीय गति को प्राप्त करने के लिए हमें करोड़ों किलोमीटर प्रति सेकण्ड की गति प्राप्त करनी होगी, तब वह समय यात्रा में बदल पाएगी। सम्भवतः इसीलिए पृथ्वीलोक के प्राणी सशरीर यात्रा नहीं कर सकते, क्योंकि उनके दव्यमान के कारण समय का अत्यधिक विस्तार हो जाता है, परन्तु सौर प्राण या जीव या आत्मा उस द्रव्यमान के कारण अत्यंत तीव्र गति को प्राप्त कर सकते हैं।

     परन्तु उसके लिए भी उसे अपने कर्मों का संग्रह नष्ट करना होगा, क्योंकि कर्म भी समय यात्रा में और ईश्वरलोक तक पहुँचने में बाधक हैं।

    जीव के ऊर्ध्वगमन के लिए शतपथ ब्राह्मण में वर्णन के आधार पर इस यात्रा को समझने की चेष्टा करें।

     भगवान कृष्ण गीता में कहते हैं कि ब्रह्मलोक तक सब कुछ पुनरावर्ती है अर्थात् ब्रह्मलोक तक गमन किया हुआ कोई भी जीव पुनरावर्ती है और पुनः मृत्युलोक तक आ सकता है, परन्तु ब्रह्मलोक को पार किया हुआ जीव पुनः जन्म नहीं लेता। हाँ, अवतार ले सकता है।

    अर्थात् भगवान कृष्ण का कहना है कि जीव के साथ कर्म का समुच्चय ब्रह्मलोक तक ही सम्भव है। उसके पश्चात् कर्म शेष नहीं रहते। आधुनिक विद्वान ब्रह्म लोक का समीकरण सूर्यलोक से भी करते हैं। प्राचीन भारतीय वाङ्गमय में यह वर्णन है कि एक सम्पूर्ण प्रलय में ब्रह्मा का भी विलय हो जाता है और समय आने पर सृष्टि पुनः शून्य से ही प्रकट होने लगती है।

    तब समस्त लोक एवं ब्रह्माण्ड पुनः जन्म लेते हैं और सृष्टिचक्र प्रारम्भ हो जाता है। Big Bang या महाविस्फोट का समय 13.8 अरब वर्ष पहले माना गया है, जब हमारे ब्रह्माण्ड का जन्म हुआ। गर्ग संहिता में उल्लेख है कि ब्रह्माण्ड बहुत सारे हैं। प्रत्येक ब्रह्माण्ड की अलग सत्ताएँ हैं।

*समय के गुण- धर्म :*

   स्टीफन हॉकिंग ने कल्पना की थी कि यदि भूतकाल में या भविष्यकाल में जाने की आवश्यकता हो तो प्रकृति के सामान्य नियमों से यह सम्भव नहीं है। हम तीन आयामी विश्व में समय यात्रा नहीं कर सकते। हमें चौथे आयाम में जाना ही होगा। अन्यथा समय का विस्तार या संक्षिप्तीकरण हम समझ ही नहीं पाएंगे और ना यात्रा कर पाएंगे। समय की लम्बाई होती है।

    एक मनुष्य औसतन 80 वर्ष तक जीवित रहता है, परन्तु पत्थर सैकड़ों और हजारों वर्षों से मौजूद हैं। सौर मण्डल और नक्षत्र मण्डल अरबों वर्षों तक अस्तित्व में रहेगा। यह सब समय की लम्बाई के साथ अंतरिक्ष में उपस्थित रहेगा। इस अंतरिक्ष को समझने और उस तक पहुँचने के लिए हमें चौथे आयाम की आवश्यकता पड़ेगी, जिसकी क्षमताएँ तीन आयामी विश्व से कहीं बहुत अधिक हैं।

     इसी संदर्भ में वैज्ञानिकों ने वर्महोल (Wormhole) नाम दिया है। यह एक सुरंग या छोटा रास्ता है। कल्पना करें कि रेशम का कीड़ा अपने लोक से बाहर आने के लिए एक छिद्र करता है और दूसरी दुनिया में आ जाता है। आइंसटीन के सापेक्ष सिद्धान्त में भी यह कहा गया है कि वर्महोल (Wormhole) समय और अंतरिक्ष को दो जगह से जोड़ता है।

     उन्होंने समय में उपस्थित छोटे दरार, छेद और झुरियों की भी कल्पना की है। उन्होंने अणुओं और परमाणुओं से भी छोटी सत्ता, जिसे क्वांटम अवस्था कहते हैं, में भी वर्महोल की कल्पना की थी। यह उत्पन्न और नष्ट होते रहते हैं। चाय के प्याले में भी उपस्थित असंख्य क्वांटम में भी वर्महोल होते हैं, जो उत्पन्न और नष्ट होते हैं।

    स्टीफन हॉकिंग का मानना है कि चौथे आयाम में यात्रा करने के लिए कम से कम 50000000 (पांच करोड़) किमी. प्रतिघंटा की गति चाहिए।

    भारतीय वाङ्गमय में देवताओं या नारद को एक लोक से दूसरे लोक में जाते हुए और क्षणमात्र में पहुँचते हुए बताया गया है। निश्चित रूप से उनकी गति बहुत अधिक है और वे हमारे त्रिआयामी विश्व से कहीं बहुत ऊँचे चौथे या पाँचवें या अन्य उच्च आयाम की सत्ताएँ हैं।

    आधुनिक विज्ञान ने स्ट्रिंग सिद्धान्त प्रस्तुत किया है, जिसकी मान्यता है कि आयामों की संख्या 11 से 26 तक हो सकती है। हम इन कल्पनाओं को निरर्थक नहीं मानते, क्योंकि प्राचीन भारतीय वाङ्गमय में इस तरह के विवरण मिलते रहे हैं।

    समय की कल्पना एक नदी की भाँति की जा सकती है, जिसकी गति हर स्थान पर अलग-अलग हो सकती है। अल्बर्ट आइंस्टीन की इस कल्पना के अनुसार पृथ्वी और पृथ्वी से बाहर सौर मण्डल और सौर मण्डल से भी बाहर समय की गति अलग-अलग है। Globel Positioning System (GPS) में इस नियम का उपयोग किया गया है।

     प्रत्येक अंतरिक्ष यान में परमाणु घड़ी होती है, जिसमें सेकण्ड के अरबों छोटे अंतर को संशोधित किया जाता है। हर क्षण अंतरिक्ष के कारण समय में आए अंतर को संशोधित किया जाता है। एक छोटा सा अंतर यदि मौजूद रह जाए, तो पूरे सिस्टम को खराब कर सकता है। जरा सा अंतर पृथ्वी पर उपस्थित दूरी को या जगह को कई किलोमीटर दूर बता सकता है।

    यह घड़ियों की गलती के कारण नहीं बल्कि पृथ्वी की अपेक्षा अंतरिक्ष में समय की गति बदल जाने के कारण होता है। पृथ्वी के द्रव्यमान के कारण समय फैल जाता है और समय की गति धीमी हो जाती है।

*ऋषियों का तपस्याकाल और विज्ञान :*

    प्रायः पुराणों में उदाहरण मिलते हैं कि ऋषियों ने कई-कई हजार वर्ष तपस्या की तथा कई हजार वर्षों तक जीवित रहे। भारतीय वाङ्गमय में सप्त चिरंजीवियों का विवरण मिलता है। हनुमान जी उनमें से एक हैं। क्या यह सम्भव है ?

    आइंस्टीन ने इसका जवाब दिया है और अब इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि चौथा आयाम ‘समय’ बहुत अद्भुत है और इसका विस्तार सम्भव है। गुरुत्वाकर्षण के प्रभावों से दूर जाने पर समय का विस्तार हो जाता है। यदि हम एक समय यात्रा करें और चौथे आयाम में यात्रा के लिए वांछित गति प्राप्त कर लें तो हम समय गति से यात्रा कर सकते हैं। दूर अंतरिक्ष में जो यात्री जाकर आए हैं, वे समय यात्रा करके आये हैं।

     प्रसिद्ध वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने समय यात्रा पर एक परिकल्पना प्रस्तुत की है। उन्होंने एक उदाहरण दिया है कि यदि प्रकाश गति के समकक्ष एक ट्रेन पृथ्वी की परिक्रमा करे और उसमें यात्री हों तो वे पृथ्वी की 7 परिक्रमा एक सेकण्ड में कर लेंगे।

    वे जब एक सप्ताह की ट्रेन यात्रा कर लेंगे और पुनः पृथ्वी पर उतरेंगे तो वहाँ 100 वर्ष बीत चुके होंगे। लगभग 3 लाख किमी./प्रति सेकण्ड प्रकाश गति है और किसी भी द्रव्यमान सहित वस्तु को इतनी गति प्राप्त करना लगभग असंभव है।

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