भोपाल
मप्र में गेहूं खरीदी की पूरी प्रक्रिया के दौरान बड़ा फर्जीवाड़ा उजागर हुआ है। पंजीयन में जिन किसानों ने अपनी जमीन पर गेहूं बोना बताया है, उस जमीन पर गेहूं की फसल थी ही नहीं। वहां चना या दूसरी फसलें मिलीं। कुछ जगहों पर घर, कहीं नदी-नाले तो कहीं पहाड़ मिले।
दरअसल, खाद्य विभाग ने 9 लाख 85 हजार 19 किसानों की 33.69 लाख हेक्टेयर जमीन की मौके पर एसडीएम और तहसीलदार से पड़ताल कराई तो पता चला कि 56 हजार 123 हेक्टेयर जमीन में गेहूं की फर्जी खेती हो रही थी। बड़ी बात यह है कि आमतौर पर एक हेक्टेयर में औसतन 23 से 25 क्विंटल गेहूं पैदा होता है।
जिस 56 हजार हेक्टेयर में गेहूं की बुवाई में गड़बड़ी निकली है, इसी रकबे को आधार बनाकर बिचौलिए अथवा व्यापारी अपना माल खपा देते थे। हर सीजन में यह धंधा 280 करोड़ से अधिक का होता रहा। किसान गेहूं की बुवाई का जो रकबा सरकार को बताता है, उसी आधार पर सरकार अनुमान लगाती है कि इस सीजन में गेहूं की कितनी पैदावार होगी, लेकिन हाल ही में हुई पड़ताल के नतीजे देखकर गणित गड़बड़ा गया है। यह स्थिति तब है जब 50% किसानों की जमीन ही जांच के दायरे में है।
भोपाल में 34 और इंदौर में 14 हेक्टेयर का अंतर
भोपाल में 19 हजार 294 पंजीकृत किसानों की पड़ताल की गई, जिसमें सिर्फ 34 हेक्टेयर जमीन का अंतर मिला। इंदौर में 14354 किसानों के वैरिफिकेशन के बाद 14 हेक्टेयर जमीन का अंतर मिला। उज्जैन में 49944 किसानों के वैरिफिकेशन में 131 हेक्टेयर जमीन की गड़बड़ी मिली। देवास में कुछ किसानों ने पहाड़ी क्षेत्र, नाले की जमीन पर गेहूं की बुवाई करना बता दिया।
सिर्फ पांच जिलों में नहीं निकली गड़बड़ी
प्रदेश के सभी 52 जिलों में से सिर्फ 5 ही ऐसे हैं, जहां वेरिफिकेशन में पंजीयन के मुताबिक रकबा निकला है। इसमें आलीराजपुर, नीमच, बड़वानी, बालाघाट और बुरहानपुर शामिल हैं।
अब सभी फसलों की खरीदी से पहले सत्यापन होगा, आधार नंबर का खसरे से मिलान करेंगे
कुल पंजीयन 19 लाख के करीब हैं। एसडीएम और तहसीलदार ने एमपी किसान एप पर हुए पंजीयन से पड़ताल की है। इसमें दो हेक्टेयर से अधिक और सिकमी (बटाईदार) किसानों को शामिल किया गया है। सूत्रों का कहना है कि अब सभी फसलों की खरीदी से पहले सत्यापन होगा। आधार नंबर का खसरे से मिलान होगा और बैंक खातों को आधार से लिंक किया जाएगा।