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*एक और बलात्कारी के बचाव में भाजपा*

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      ~ पुष्पा गुप्ता 

 गुजरात में सैकड़ों स्त्रियों को बेइज़्ज़त किया गया, सामूहिक बलात्कार का शिकार बनाया गया, गर्भ चीरकर भ्रूण त्रिशूलों पर लहराये गये, जिसकी पार्टी के लोगों ने कठुआ में 8 साल की बच्ची के बलात्कारियों के समर्थन में प्रदर्शन किये, जिसकी पार्टी और सरकार हर जगह — उन्नाव से लेकर हाथरस तक, हरियाणा से लेकर मणिपुर तक स्त्रियों के साथ बर्बर यौन हिंसा और उत्पीड़न करने वालों का बचाव करती रही है। 

चौदह अप्रैल को मोदी कर्नाटक में रेवन्ना के लिए रैली करके कह चुका है कि रेवन्ना को वोट देकर दरअसल जनता उसके हाथ मज़बूत करेगी! सबकुछ जानते हुए!! रेवन्ना की ये घिनौनी हरकतें पिछले दिसम्बर से ही सामने आने लग गयी थीं और केन्द्र और राज्य दोनों सरकारें उनसे बख़ूबी वाकिफ़ थीं। कोई हैरानी नहीं कि यह दरिन्दा अब भी जीतकर संसद में आये और बृजभूषण शरण सिंह आदि के साथ मिलकर मोदी के हाथ मज़बूत करे और घिनौने अपराधों का सिलसिला बेरोकटोक चलता रहे। 

     कर्नाटक की कांग्रेस सरकार भी अब तक आँख-कान मूँदे बैठी ही थी। हज़ारों वीडियो वायरल होने के बाद मजबूरन एसआईटी गठित करानी पड़ी। 

    नीचे सुदीप्ती की पोस्ट पढ़िए और सोचिए कि हम कैसे बीमार और सड़े हुए समाज में जी रहे हैं :

        प्रज्वल रेवन्ना के नाम पर मेन स्ट्रीम मीडिया में सन्नाटा है। अभी तक आपको पता चल ही गया होगा कि यह कोई सामान्य सी बात नहीं है। जेडीएस का एम पी, देश के पूर्व प्रधानमंत्री का पोता और वर्तमान सत्ताधारी पार्टी से जुड़ा नेता जो हज़ारों महिलाओं का न सिर्फ शोषण करता है बल्कि उस शोषण और हिंसा से भरे वीडियो का कारोबार चलाता है। चुनाव के दिनों में ऐसी बातों पर भूचाल आ जाना चाहिए पर सन्नाटा सा ही पसरा है।

   इस मुद्दे पर किसी ने एक बात कहीं जो इस प्रकार थी :

    “इस केस की एक पीड़िता जेडीएस की महिला नेता के पास शिकायत लेकर जाती है, वह नेता रोने लगती है और कहती है कि मैं भी पीड़ित हूँ। वे दोनों साथ में पुलिस स्टेशन जाते हैं, महिला पुलिसकर्मी रोने लगती है और कहती है कि वह भी पीड़ित है। वे सब एक टीवी न्यूज़ चैनल पर जाते हैं। एंकर रोने लगती है और कहती है कि वह भी पीड़ित है।”

मुझे लगा कौन असंवेदनशील है जो ऐसे मुद्दे पर जोक बना रहा है। पर नहीं! यह हुआ है। घटिया मज़ाक जैसी यह बात वास्तविकता है। बेटी बचाओ के दौर में यह कमज़ोर के साथ एमपावर्ड स्त्रियों के साथ घटित घटनाएं हैं। 

    इस वक़्त जो भी कहे कि सभी राजनीतिक दलों में ऐसे लोग होते हैं और राजनीति ही कीचड़ है। उसकी बातों में मत आइए। यह राजनीति नहीं अपराध है। अपराध और राजनीति की सांठ गांठ खूब है पर ऐसा हो जाने पर सीनाजोरी के साथ उसे ढांकना अब होने लगा है।

    उन स्त्रियों की सोचिए जिन सबकी पहचान पूरे राज्य में उजागर हो चुकी है। कई लोग लिख रहे हैं कि उन वीडिओज़ में भयानक हिंसा है। ऐसा कि जानकारी या खबर के लिए भी देखा नहीं जाता है। आई ए एस अफसर से लेकर कारपोरेट दुनिया की महिलाएँ हैं। क्या देश की आम महिलाएं इतनी कमज़ोर हो चुकी हैं। लड़ने से पहले हिम्मत हार चुकी हैं

उन औरतों की सोचिए जिनको एक्सप्लोइट भी किया गया और पहचान सामने आने के बाद भी उन्हें प्रताड़ना झेलनी पड़ेगी।

     इस मुद्दे पर सबसे अधिक त्रासद स्त्रियों का शोषण नहीं है, शोषण के बाद की चुप्पी है। हाल में कितनी प्रोपेगैंडा फिल्में बनी हैं जो धार्मिक आधार पर लड़कियों/स्त्रियों का शोषण दिखा रही हैं और लोग उनपर हत्थे से उखड़ रहे हैं। शोषण की फिल्मी कहानी पर भी उबलने वाला समाज असली शोषण पर इतना मूक कैसे है? इसमें धर्म का एंगल नहीं है इसीलिए? स्त्री कभी चुनावी ताकत या मुद्दा नहीं रही है। वे वोट का अधिकार रखते हुए भी बराबर की नागरिक बनती नहीं हैं इसीलिए चुनाव के समय भी उनके शोषण के मुद्दे को यूँ दबाया जा सकता है। 

     यूँ तो खीझ, आक्रोश, दुख और निराशा में जाने कितनी बातें दिमाग में घुमड़ रही है। पर फिलहाल इसी पर सोचिए कि बहू-बेटी-मां आदि की इज्ज़त की दुहाई देते समाज में ऐसी घटनाएं खून खौलाने वाली, सजा दिलवाने को कटिबद्ध समुदाय की न्याप्रियता से भरी क्यों नहीं होती?

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