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विपक्ष से एक-एक करके उनके नायक को ‘छीन’ रही बीजेपी……गांधी, पटेल, आंबेडकर…और अब कर्पूरी ठाकुर

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 जननायक कर्पूरी ठाकुर की जयंती से ठीक एक दिन पहले मोदी सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से नवाजने का मास्टर स्ट्रोक चला है। बिहार के दो बार मुख्यमंत्री रहे प्रखर समाजवादी नेता ठाकुर को गरीबों का मसीहा माना जाता है। उन्हें सामाजिक न्याय का चैंपियन माना जाता है। आरजेडी के लालू प्रसाद यादव, जेडीयू के नीतीश कुमार जैसे नेता लोहिया-जेपी की परंपरा के खांटी समाजवादी कर्पूरी ठाकुर की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने का दावा करते रहे हैं। लेकिन ‘भारत रत्न’ वाले दांव से एक झटके में बीजेपी ने कर्पूरी ठाकुर की राजनीतिक विरासत पर अपना मजबूत दावा ठोक दिया है। महात्मा गांधी, सरदार बल्लभ भाई पटेल, बीआर आंबेडकर, सुभाष चंद्र बोस, चौधरी चरण सिंह जैसे दिग्गजों के बाद अब बीजेपी ने विपक्ष से कर्पूरी ठाकुर की विरासत भी छीनने जा रही है। बीजेपी की रणनीति विपक्ष से उनके ही नायकों को छीनकर उसे निहत्था करने की है।

क्यों है पीएम मोदी का मास्टरस्ट्रोक?
कर्पूरी ठाकुर की सादगी और ईमानदारी के बारे में तमाम किवदंतियां प्रचलित हैं। उनकी कथनी और करनी में अंतर नहीं रहा। वह आरक्षण के जबरदस्त हिमायती थे। वह दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे लेकिन दोनों मिलाकर उनका कुल कार्यकाल करीब ढाई वर्ष ही रहा। इतने अल्प कार्यकाल के बाद भी अगर उनकी सियासी विरासत के लिए जेडीयू, आरजेडी के साथ-साथ बीजेपी में होड़ मची हुई है तो उसकी वजह उनकी जननायक, गरीबों के मसीहा और सामाजिक न्याय के योद्धा की छवि ही है। केंद्र सरकार ने कर्पूरी ठाकुर को ‘भारत रत्न’ देने का ऐसे वक्त ऐलान किया है जब बिहार में कास्ट सेंसस की राजनीति चरम पर है। हालिया कास्ट सर्वे के मुताबिक, बिहार में सबसे अधिक 37 प्रतिशत आबादी अत्यंत पिछड़ा वर्ग की है। कर्पूरी ठाकुर नाई समुदाय से आते हैं जो अत्यंत पिछड़ा वर्ग का ही हिस्सा है। इस तरह मोदी सरकार ने उन्हें ‘भारत रत्न’ से नवाजकर अत्यंत पिछड़े वर्ग को साधने की कोशिश की है। कर्पूरी की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने का दावा करने वाले नीतीश कुमार या लालू प्रसाद यादव बीजेपी के इस दांव से भौचक्के हैं। बिहार के सीएम कुमार ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखे पोस्ट में कर्पूरी को भारत रत्न दिए जाने पर खुशी जताई लेकिन कहीं भी पीएम मोदी का जिक्र नहीं किया। हालांकि बाद में उन्होंने पोस्ट को डिलीट कर नया पोस्ट लिखा जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शुक्रिया कहा।

भौचक्के रह गए लालू, नीतीश
लालू प्रसाद यादव ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न तो बहुत पहले ही मिल जाना चाहिए था। उन्होंने इस फैसले के लिए मोदी सरकार की तारीफ के बजाय उसकी ये कहकर घेरेबंदी की कोशिश की कि उसने जातिगत जनगणना और आरक्षण का दायरा बढ़ने से डरकर ये फैसला लिया है। हालांकि, ये खुद का डर छिपाने के लिए विरोधी को डरा हुआ ठहराने की परंपरागत सियासी रणनीति का हिस्सा ज्यादा लगता है। इस बयान से साफ है कि लालू को भी कर्पूरी ठाकुर की विरासत के छिनने का डर सता रहा है। डॉक्टर मनमोहन सिंह की अगुआई में यूपीए की 10 साल तक चली सरकार के दौरान लालू प्रसाद यादव की तूती बोलती थी। सवाल तो उठेंगे ही केंद्र सरकार में रहते हुए उन्होंने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न क्यों नहीं दिलवाया?

वैसे ये पहली बार नहीं है जब बीजेपी ने विपक्ष से उसके दिग्गज नेताओं की विरासत को छीनने की कोशिश की है। दिलचस्प बात ये है कि आज बीजेपी ने जिस कर्पूरी ठाकुर की विरासत पर कब्जे की कोशिश की है, 1979 में उनकी सरकार गिरने लिए उसी के पूर्ववर्ती जनसंघ को ही जिम्मेदार माना जाता है। अब बीजेपी समाजवादी दलों से उन्हीं कर्पूरी ठाकुर की विरासत को छीनने की जबरदस्त कवायद की है। इसी तरह कभी आरएसएस पर बैन लगाने वाले सरदार बल्लभ भाई पटेल को उसने कांग्रेस से एक तरह से छीन ही लिया है। पटेल ने ही आजादी के बाद 550 से ज्यादा रियासतों का भारत में विलय कराया था। 2014 में केंद्र में सरकार बनते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 31 जनवरी को पटेल की जयंती को राष्ट्रीय एकता दिवस के तौर पर मनाने का ऐलान किया। इतना ही नहीं, मोदी सरकार ने गुजरात के केवडिया में पटेल की विशाल मूर्ति लगवाई जिसे स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का नाम दिया गया। 182 मीटर ऊंचे स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के नाम दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति होने का नाम है।

महापुरुषों पर बीजेपी की दावेदारी
पटेल की तरह ही बीजेपी ने विपक्ष से महात्मा गांधी और डॉक्टर बीआर आंबेडकर की विरासत को भी छीनने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। इसमें वह काफी हद तक सफल भी हुई है। विपक्षी दलों के महापुरुषों की विरासत पर कब्जे के जरिए पार्टी अपना वोट बैंक बढ़ाने की हर मुमकिन कोशिश करती रही है। बीजेपी दावा करती है कि इन महापुरुषों को हमेशा उपेक्षित रखा गया और वह उन्हें वाजिब सम्मान देने की कोशिश कर रही है। भगवान विरसा मुंडा, सावित्री बाई फुले, नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे महापुरुषों पर भी बीजेपी धीरे-धीरे अपना दावा करने में सफल रही है। मोदी सरकार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती यानी 23 जनवरी को पराक्रम दिवस के तौर पर मनाने की शुरुआत की है। इंडिया गेट पर उनकी प्रतिमा लगी हुई है।

कांग्रेस से कई महापुरुषों को ‘छीन’ लिया
कांग्रेस के महापुरुषों की विरासत पर अगर बीजेपी धीरे-धीरे कब्जा करती जा रही है तो उसके लिए कहीं न कहीं ग्रैंड ओल्ड पार्टी ही जिम्मेदार है। पार्टी पर दशकों से गांधी-नेहरू परिवार के कब्जे का असर ये हुआ कि ग्रैंड ओल्ड पार्टी इस परिवार से इतर देखना ही छोड़ दी। उनके लिए महापुरुष का मतलब ही रह गया- नेहरू, इंदिरा, राजीव…। उनसे इतर सिर्फ महात्मा गांधी। केंद्र या राज्य की सत्ता में रहते कोई योजना शुरू करनी हो या संस्थान, उनका नाम गांधी-नेहरू परिवार से इतर सोचना भी मुश्किल। इसी का फायदा बीजेपी ने उठाया। देश अगर आज वैश्विक आर्थिक ताकत के तौर पर उभरा है तो इसकी बुनियाद आर्थिक उदारीकरण में है जिसकी शुरुआत पीवी नरसिम्हा राव ने की थी। लेकिन कांग्रेस अपने ही दिग्गज नेता को वो सम्मान नहीं देती, जिसके वे हकदार थे। उनकी मौत के बाद पार्थिव शरीर को कांग्रेस मुख्यालय में आने तक नहीं दिया गया था। न ही उनकी समाधि के लिए दिल्ली में जगह मिल पाई। लेकिन मोदी सरकार जब पीएम मेमोरियल बनाती है तो उसमें राव और उनके कामकाज को भी जगह मिलती है। इसी तरह नरेंद्र मोदी सरकार ने कांग्रेस के ही दिग्गज नेता और पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न का दांव खेला था। इसके जरिए बीजेपी ने ये भी संदेश देने की कोशिश की कि महापुरुषों के सम्मान को वह राजनीतिक विचारधारा के आधार पर नहीं तौलती।

चौधरी चरण सिंह की विरासत को भी साधने की कोशिश
पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को किसानों का मसीहा कहा जाता है लेकिन बीजेपी धीरे-धीरे उनकी विरासत को भी अपना बनाने में कामयाब होती दिख रही है। पिछले महीने पार्टी ने उनकी जयंती को धूमधाम से मनाया। उनकी जयंती पर यूपी के मुरादाबाद में सीएम योगी आदित्यनाथ ने पूर्व प्रधानमंत्री की 51 फीट ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया। योगी सरकार पहले ही चरण सिंह जयंती को किसान दिवस घोषित कर रखी है और उस दिन अवकाश रखा है। बीजेपी का चौधरी चरण सिंह प्रेम पश्चिमी यूपी और हरियाणा में प्रभावशाली जाट वोटों को लुभाने की ही एक बड़ी कवायद है।

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