अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

खेतों के बीच झूठ की झंडी दिखाता हुआ दौड़ रहा है भाजपा का “डबल-इंजन

Share

जीतू पटवारी


मध्य प्रदेश में बीती 10 सितंबर से किसान आंदोलनरत हैं। किसानों का गुस्सा केंद्र और राज्‍य की भाजपा सरकारों के प्रति है। कांग्रेस की किसान न्याय यात्रा का नेतृत्व करते हुए मैं प्रदेश के कई जिलों में हजारों किसानों से प्रत्यक्ष मिल चुका हूं। आक्रोश के ये स्‍वर मध्‍य प्रदेश सरकार की नीतियों के विरोध में हैं। सोयाबीन के सबसे बड़े उत्पादक राज्यों में शामिल मध्य प्रदेश में इस साल किसानों को औसत कीमत वही मिल रही है, जो दस साल पहले थी। केंद्र और राज्य सरकार के “डबल इंजन” ने आंशिक मूल्‍य वृद्धि का खेल जरूर खेला, लेकिन उससे भी किसानों को कोई फायदा नहीं हुआ। आज भी किसानों का सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब खेती की लागत 4,000 रुपए प्रति क्विंटल के करीब है, तब फसल का मूल्य 3,800 रुपए क्‍यों दिया जा रहा है? मध्य प्रदेश में सोयाबीन की नई फसल फिर सबूत के रूप में सामने है कि किसानों की आय दोगुनी करने का बीजेपी का वादा झूठा है।
मध्‍यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किसानों की आय दोगुना करने का सरकारी वचन बार-बार, लगातार दोहराया है। बीजेपी ने गेहूं एवं धान के लिए क्रमशः 2,700 रुपए और 3,100 रुपए एमएसपी देने का वादा किया था, लेकिन यह सिर्फ किसानों से झूठ बोलकर, उनके वोट लेने की नौटंकी थी। झूठ दावों और वादों का यह “डबल इंजन” केंद्र और राज्‍य की सरकारों में कुर्सी पर बैठे भाजपा के नेता मिलकर दौड़ा रहे हैं। 2014 से 2024 के बीच मोदीजी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी सरकार ने किसानों की स्थिति सुधारने के जितने दावे किए, किसानों की बदहाली उतनी ही बढ़ती गई। देश का मेहनतकश किसान यह जानता है कि प्रधानमंत्री ने 2014 में सत्ता में आते ही दोगुनी किसान आय का लक्ष्य रखा। 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की योजना को राष्ट्रीय एजेंडा बताया। लेकिन, किसी भी कोशिश और योजना का सीधा लाभ किसानों को नहीं मिला। कृषि उपज के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर भी सवाल उठते रहे, इसलिए कई बार किसानों को अपनी उपज औने-पौने दामों पर बेचना पड़ी।

किसानों के आंदोलन ने बताया खेती का सच!
2017 और 2020 के दौरान हुए बड़े किसान आंदोलन भाजपा सरकारों के खिलाफ थे। 2017 में महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में किसान आंदोलन हुए, जहां किसानों ने कर्ज माफी और उचित दाम की मांग की। 2020 में तीन कृषि कानूनों को लेकर हुए किसानों के आंदोलन ने देश को हिला कर रख दिया। इन कानूनों के तहत कृषि बाजार में निजी कंपनियों की भागीदारी बढ़ाने की बात थी। लेकिन, किसानों ने आशंका जताई कि इससे एमएसपी प्रणाली खत्म हो जाएगी और उनकी फसल का उचित मूल्य नहीं मिलेगा। इस आंदोलन के दौरान हजारों किसान दिल्ली की सीमाओं पर डटे रहे, जिसके चलते सरकार को अंततः कानूनों को वापस लेना पड़ा। 2019 में नरेंद्र मोदी सरकार ने किसानों की आय में सुधार के लिए पीएम-किसान योजना की शुरुआत की। किसानों ने तर्क के साथ कहा कि यह राशि पर्याप्त नहीं है। इतने कम धन में किसानों की वास्तविक समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता।

कर्ज का संकट, न्यूनतम समर्थन मूल्य का झूठ
2014 से 2024 के बीच किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या कर्ज की थी। भाजपा शासित राज्‍यों में कर्ज माफी का सही तरीके से क्रियान्वयन नहीं हो सका। इससे किसान आत्महत्याओं की घटनाएं बढ़ीं। कर्ज का पुराना बोझ भी किसानों को परेशान करता रहा। 2018 में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, 2014 से 2018 के बीच हर साल औसतन 10,000 से अधिक किसान आत्महत्याएं हुईं। किसान संगठनों ने सरकार पर आरोप लगाया कि उनकी नीतियां छोटे और सीमांत किसानों के बजाय बड़े व्यापारियों और कंपनियों को लाभ पहुंचाती हैं। एमएसपी में बढ़ोतरी का दावा तो सरकार द्वारा किया गया, लेकिन किसानों की शिकायत रही कि फसलें एमएसपी पर बिकने के बजाय व्यापारियों द्वारा कम कीमतों पर खरीदी जाती रहीं। विशेष रूप से गेहूं, चावल, दाल और गन्ने जैसी प्रमुख फसलों की उचित कीमत न मिलने की शिकायत किसान लगातार करते रहे, लेकिन भाजपा सरकारों ने सुनवाई नहीं की।

फसल बीमा योजना की चुनौतियां
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का उद्देश्य किसानों को प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा देना था। परंतु, इसके क्रियान्वयन में गंभीर समस्याएं सामने आईं। बीमा कंपनियों ने किसानों को मुआवजा देने में देरी की। किसानों को नुकसान के बावजूद सही मुआवजा नहीं मिल पाया। इससे योजना के प्रति किसानों का विश्वास घट गया। मोदी सरकार ने 2014 से 2024 के बीच ग्रामीण सड़कों, बिजली और सिंचाई व्यवस्था में सुधार के कई दावे किए। मीडिया को झूठे प्रमाण देकर बताया गया कि प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना और सौभाग्य योजना से गांवों में बिजली और सड़कों का विस्तार हुआ। परंतु, इनका प्रभाव कृषि उत्पादकता और किसानों से जुड़े लाभ पर अब तक दिखाई नहीं दे रहा है।

काले कृषि कानूनों से कैसे हो सकता था कृषि सुधार?
क्‍या 2020 में पारित तीन कृषि कानून किसानों की उपज के बेहतर मूल्य और कृषि बाजार को सुधारने के उद्देश्य से लाए गए थे? यह 100% झूठ है! इसीलिए, लाखों किसानों ने विरोध किया और इसे किसानों के हितों के खिलाफ बताया। किसानों का कहना है ऐसे कानून निजी कंपनियों को कृषि में अधिक प्रभावी बना देंगे और छोटे किसानों को नुकसान ही होगा। लगभग एक साल तक चले आंदोलन के बाद सरकार ने कानून तो वापस लिए, लेकिन किसानों को लेकर गहरे किस्म की दुर्भावना और घृणा मन में रख ली। तभी ताे यह मामला किसानों और सरकार के बीच संबंधों में बड़ी दरार की तरह देखा गया। इस आंदोलन ने सरकार की किसान नीतियों की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किए।

कृषि निर्यात और आत्मनिर्भर भारत का झूठ
मोदी सरकार ने आत्मनिर्भर भारत के तहत कृषि क्षेत्र में निर्यात को बढ़ावा का झूठा दावा किया। कागजों में भारत ने कृषि उत्पादों का निर्यात तो बढ़ाया, लेकिन इसका सीधा लाभ छोटे किसानों को नहीं मिला। बड़े व्यापारी और कृषि-व्यवसायिक कंपनियां ही ज्यादातर लाभान्वित हुईं। सरकार ने कृषि क्षेत्र में आधुनिक तकनीक और डिजिटल माध्यमों के उपयोग पर जोर दिया। ई-नाम (नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट) जैसी योजनाएं लाई गईं, जिनका उद्देश्य कृषि उत्पादों के ऑनलाइन व्यापार को बढ़ावा देना था। परंतु, ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी और तकनीकी जागरूकता की कमी के कारण इसका लाभ भी किसानों तक नहीं पहुंच सका। यही सबसे बड़ी परेशानी है कि केंद्र सरकार ने किसान कल्याण के नाम पर झूठा प्रचार तो बहुत किया, लेकिन सच्चाई से मुंह फेर लिया। किसानों से सार्वजनिक माफी मांगने वाले प्रधानमंत्री यह याद रखें कि किसान उन्हें कभी भी मन से माफ नहीं कर पाएंगे।

मप्र में भाजपा के किसान विरोधी 20 साल
बात अब केंद्र के साथ राज्य की भारतीय जनता पार्टी सरकार को लेकर भी की जानी चाहिए। भाजपा ने जब से मध्य प्रदेश की सत्ता संभाली, तब से लेकर अब तक किसानों के लिए जो नीतियां लागू की गईं, वे ज्यादातर किसान हितैषी कम और किसान विरोधी अधिक साबित हुईं। इनमें सबसे बड़ी समस्या यह रही कि किसानों की आय को बढ़ाने के लिए जो योजनाएं लागू की गईं, वे फाइलों तक ही सीमित रह गईं। किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का सही से निर्धारण नहीं किया गया। जो मूल्य तय किए गए, वे किसानों को लागत ही नहीं दिलवा पाए।

किसान आंदोलनों का दमन करने की नीति
कई बार मध्य प्रदेश के किसानों ने अपने अधिकारों और मांगों के लिए आंदोलन किया। 2017 में मंदसौर का किसान आंदोलन इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जहां किसान अपने उत्पादों के उचित मूल्य की मांग कर रहे थे। भाजपा सरकार ने आंदोलन को पुलिस के जरिए कुचलने की कोशिश की। संघर्ष में कई किसानों की जान चली गई। मध्य प्रदेश के इतिहास की यह सबसे बड़ी घटना भाजपा सरकार की किसान विरोधी मानसिकता दर्शाती है। किसानों की मांग के बावजूद प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना, फसल बीमा योजना और अन्य योजनाओं का लाभ अधिकांश किसानों तक नहीं पहुंच सका। भ्रष्टाचार, बिचौलियों और अफसरशाही ने इन योजनाओं को कमजोर कर दिया। कई बार किसानों को प्रीमियम भरने के बावजूद बीमा कंपनियों से सही समय पर मुआवजा नहीं मिला, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति और खराब हो गई। ऋण माफी जैसी योजनाओं का सही से कार्यान्वयन नहीं हो सका। इससे कर्ज दिनोंदिन बढ़ता गया। हालात ऐसे बन गए कि किसानों को आत्महत्या करने को मजबूर होना पड़ा।

खेती के अधिकारों की आवाज है कांग्रेस की किसान न्याय यात्रा
किसानों के प्रति भाजपा सरकार की उदासीनता और गलत नीतियों के खिलाफ मध्य प्रदेश कांग्रेस ने किसान न्याय यात्रा शुरू की है। यात्रा का उद्देश्य किसानों की समस्याओं को उजागर करना और उनकी मांगों को लेकर सरकार पर दबाव बनाना है। कांग्रेस ने इस यात्रा के दौरान न केवल किसानों की समस्याओं और जमीनी कठिनाइयों को समझा, बल्कि उन्हें यह भी बताया कि कैसे खेत-खलिहान के वाजिब हकों को भाजपा सरकार नजरअंदाज कर रही है। कांग्रेस के हजारों कार्यकर्ताओं का एक ही उद्देश्य है मध्य प्रदेश के किसानों को न्याय दिलाना और उनकी आय को बढ़ाने के लिए सरकार का ध्‍यान दिलाना।

मध्य प्रदेश कांग्रेस की यह स्पष्ट मान्यता है कि किसानों की हालत सुधारने और उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य को बढ़ाना होगा, ताकि किसानों को उनके उत्पादों का सही मूल्य मिल सके। एमएसपी का निर्धारण इस प्रकार होना चाहिए कि किसान की लागत और एक सम्मानजनक मुनाफे मिल सके। इसके लिए भाजपा सरकार को कृषि लागत और मूल्य आयोग की सिफारिशों का पालन करना चाहिए। फसल बीमा योजना में भी सुधार की आवश्यकता है। किसानों को उनकी फसल नुकसान के लिए समय पर मुआवजा मिलना चाहिए। बीमा कंपनियों के द्वारा होने वाली गड़बड़ियों को रोकने के लिए सख्त निगरानी तंत्र होना चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि प्रीमियम दरें उचित हों। बीमा दावों के निपटान में देरी को कम करने के लिए एक पारदर्शी और डिजिटल प्रणाली लागू की जानी चाहिए।

बिचौलियों की भूमिका को समाप्त करे सरकार
किसानों तक सरकारी योजनाओं का सीधा लाभ पहुंचाने के लिए बिचौलियों की भूमिका को समाप्त करना भी आवश्यक है। इसके लिए सरकार को डिजिटल प्लेटफॉर्म और तकनीकी समाधान अपनाने चाहिए, जिससे किसान सीधे सरकार से जुड़ सकें और योजनाओं का लाभ उठा सकें। किसानों की ऋण माफी योजना को सुदृढ़ करना चाहिए, क्‍योंकि कर्ज माफी के वादे कागजों तक ही सीमित रह जाते हैं और उनका लाभ छोटे और गरीब किसानों तक नहीं पहुंच पाता। ऋण माफी योजनाओं को पारदर्शी और तेज बनाने के लिए एक सशक्त प्रणाली लागू की जानी चाहिए।
मध्य प्रदेश के किसानों की एक बड़ी समस्या जल संकट है। प्रदेश में मानसून के भरोसे कृषि करने वाले किसानों के लिए जल प्रबंधन और सिंचाई सुविधाओं का विकास अत्यंत आवश्यक है। सरकार को नए जल प्रबंधन तकनीकों को बढ़ावा देना चाहिए, जैसे ड्रिप सिंचाई, रेनवॉटर हार्वेस्टिंग और माइक्रो सिंचाई। इसके अलावा, सिंचाई परियोजनाओं में भ्रष्टाचार और देरी को रोकने के लिए एक स्वतंत्र और पारदर्शी निगरानी तंत्र होना चाहिए। किसानों की आय बढ़ाने के लिए कृषि उत्पादों के निर्यात को भी प्रोत्साहन देना चाहिए। सरकार को किसानों को निर्यात बाजारों तक पहुंचाने के लिए आवश्यक इन्फ्रास्ट्रक्चर और सहयोग देना चाहिए। इसके लिए कृषि उत्पादों के प्रसंस्करण, भंडारण और वितरण को बेहतर बनाना आवश्यक है। लगातार कृषि कर्मण अवार्ड जीतने वाले मध्य प्रदेश के किसानों को आधुनिक कृषि तकनीकों और नवाचारों के बारे में जागरूक करना भी आवश्यक है। कृषि शिक्षा का विस्तार ग्रामीण क्षेत्रों तक होना चाहिए, ताकि किसानों को नई तकनीकों, उर्वरकों और बीजों के उपयोग के बारे में जानकारी मिल सके। इसके अलावा, कृषि विश्वविद्यालयों और अनुसंधान केंद्रों को किसानों के साथ मिलकर काम करना चाहिए, ताकि किसानों को नवीनतम जानकारी और तकनीकी सहायता मिल सके।
यदि भाजपा सरकार किसानों की समस्याओं को जमीन स्तर पर दिखेगी तो उसे अपनी कागजी योजनाएं बदलने में देर नहीं लगेगी। अब आवश्‍यकता नीति और नजरिया बदलने की है, ताकि मेहनतकश किसान को भी जीने का हक मिल सके!
(लेखक मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रदेश अध्यक्ष हैं।)

Add comment

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें