सुसंस्कृति परिहार
जैसा कि हम सब भली-भांति जानते हैं राजीव गांधी स्वभाव से गंभीर, अभिनव मुस्कान के धनी, राजनीति से दूर करिश्माई व्यक्तित्व वाले थे।जब वे बेमन से प्रधानमंत्री बने तब उनकी अत्याधुनिक सोच एवं निर्णय लेने की अद्भुत क्षमता का पता चला। श्री गांधी देश को दुनिया की उच्च तकनीकों से पूर्ण करना चाहते थे और जैसा कि वे बार-बार कहते थे कि भारत की एकता को बनाये रखने के उद्देश्य के अलावा उनके अन्य प्रमुख उद्देश्यों में से एक है – इक्कीसवीं सदी के भारत का निर्माण।देश के कम्प्यूटराइजेशन और टेलीकम्युनिकेशन क्रान्ति का श्रेय उन्हें ही जाता है।स्थानीय स्वराज्य संस्थाओं में महिलाओं को 33% रिजर्वेशन दिलवाने का काम उन्होंने किया । मतदाता की उम्र 21 वर्ष से कम करके 18 वर्ष तक के युवाओं को चुनाव में वोट देने का अधिकार राजीव गांधी ने दिलवाया। उन्होंने जिले के एक गांव में प्रतिभाओं की मदद के लिए नवोदय विद्यालय बनवाए। सिर्फ़ अपने पांच साल में इक्कीसवीं सदी की बुनियाद रखी।पंजाब में शांति समझौता भी महत्वपूर्ण कार्य था।वे1984 से 1989तक वे देश के छठवें प्रधानमंत्री रहे। 40 साल की उम्र में देश के प्रधानमंत्री बना दिए गए लेकिन राजीव गांधी ने अपने कार्यकाल में ऐसे भी कई फैसले लिए हैं जो बहुत महत्वपूर्ण और दूरगामी साबित हुए, जबकि कुछ का तो उनके निजी जीवन पर असर पड़ा।
हम सब जानते हैं राजीव गांधी ने अनुज संजय गांधी की 1980 में हवाई दुर्घटना के बाद राजनीति में पदार्पण किया तथा चार साल बाद 1984 इंदिरा जी की असामयिक क्रूर मौत के बाद उन्हें प्रधानमंत्री बनाया गया राजीव जी की खुशी का नहीं बल्कि एक बड़ी चुनौती था। लेकिन कहते हैं जो सच्चे प्रेमी होते हैं वे। इस ख़तरे को भांप लेते हैं राजीव गांधी की प्रेम कहानी से सब भिज्ञ है।वे हम दो हमारे दो प्यारे बच्चों राहुल और प्रियंका के साथ सुकून से रहते थे। राजनीति से उनका दूर दूर का कोई वास्ता नहीं था। राजीव जब एक शंकराचार्य के कहने और मां के आग्रह पर कांग्रेस में शामिल हुए तो सोनिया जी ने उन्हें सख्ती से मना किया ,कहते हैं अनबोला भी रहा पर राजीव ने मां की बात सुनी पत्नि की नहीं। सोनिया ने अपने संस्मरण में लिखा भी है तुम भारतीय मां बाप के आगे पत्नी की सुनते कहां हो? बहरहाल उनके राजनीति में प्रवेश करने के बाद सोनिया ने समझदारी दिखाई और वे फिर खुश रहने लगीं। उन्होंने भारतीय परम्परा से समझौता करना ही उचित समझा।
यह तो स्पष्ट था कि राजनीति में अपना करियर बनाने में उनकी कोई रूचि नहीं थी। उनके सहपाठियों के अनुसार उनके पास दर्शन, राजनीति या इतिहास से संबंधित पुस्तकें न होकर विज्ञान एवं इंजीनियरिंग की कई पुस्तकें हुआ करती थीं। हालांकि संगीत में उनकी बहुत रुचि थी। उन्हें पश्चिमी और हिन्दुस्तानी शास्त्रीय एवं आधुनिक संगीत पसंद था। उन्हें फोटोग्राफी एवं रेडियो सुनने का भी शौक था।हवाई उड़ान उनका सबसे बड़ा जुनून था। अपेक्षानुसार इंग्लैंड से घर लौटने के बाद उन्होंने दिल्ली फ्लाइंग क्लब की प्रवेश परीक्षा पास की एवं वाणिज्यिक पायलट का लाइसेंस प्राप्त किया। जल्द ही वे घरेलू राष्ट्रीय जहाज कंपनी इंडियन एयरलाइंस के पायलट बन गए थे।वे मेकेनिकल इंजीनियर थे।
कभी-कभी किसी की जिंदगी में अप्रत्याशित मोड़ आ जाते हैं वैसा ही राजीव के साथ हुआ। राजनीति से दूरी उनकी करीबी बन गई।एक कुशल पायलट की तरह उन्होंने देश को समझने अपने पहले प्रधानमंत्री चुनाव में व्यापक लगभग 250दौरे किए तथा लाखों भारतीयों से मुलाकात की।तब उन्होंने अध्यक्ष के नाते 508 में से 401पर कांग्रेस को विजय दिलाई थी। पिछले सात चुनावों में कांग्रेस का वोट प्रतिशत भी तब बढ़ा।देश में पीढ़ीगत बदलाव के अग्रदूत श्री गांधी को देश के इतिहास में सबसे बड़ा जनादेश प्राप्त हुआ था। अपनी मां की हत्या के शोक से उबरने के बाद उन्होंने लोकसभा के लिए चुनाव कराने का आदेश दिया था।
700 करोड़ भारतीयों के नेता के रूप में इस तरह की शानदार शुरुआत किसी भी परिस्थिति में उल्लेखनीय मानी जाती है। यह इसलिए भी अद्भुत है क्योंकि वे उस राजनीतिक परिवार से संबंधित थे जिसकी चार पीढ़ियों ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एवं इसके बाद भारत की सेवा की थी, इसके बावजूद श्री गांधी राजनीति में अपने प्रवेश को लेकर अनिच्छुक थे एवं उन्होंने राजनीति में देर से प्रवेश भी किया।
नवंबर 1982 में जब भारत ने एशियाई खेलों की मेजबानी की थी, स्टेडियम के निर्माण एवं अन्य बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने संबंधी वर्षों पहले किये गए वादे को पूरा किया गया था। श्री गांधी को यह जिम्मेदारी दी गई थी कि सारे काम समय पर पूर्ण हों एवं यह सुनिश्चित किया जा सके कि बिना किसी रूकावट एवं खामियों के खेल का आयोजन किया जा सके। उन्होंने दक्षता एवं निर्बाध समन्वय का प्रदर्शन करते हुए इस चुनौतीपूर्ण कार्य को संपन्न किया। साथ-ही-साथ कांग्रेस के महासचिव के रूप में उन्होंने उसी तन्मयता से काम करते हुए पार्टी संगठन को व्यवस्थित एवं सक्रिय किया। उनके सामने आगे इससे भी अधिक मुश्किल परिस्थितियां आने वाली थीं जिसमें उनके व्यक्तित्व का परीक्षण होना था।वे इसमें सफल रहे थे जिससे उन्हें पहली राजनैतिक ख्याति मिली।
व्यक्तिगत रूप से इतने दु:खी होने के बावजूद उन्होंने संतुलन, मर्यादा एवं संयम के साथ राष्ट्रीय जिम्मेदारी का निर्वहन किया।नियति को लेकिन कुछ और ही मंजूर था।1989 के चुनाव में कांग्रेस हालांकि एक बड़ी पार्टी के रुप में उभरी वह जनता गठबंधन के आरोपों खासतौर पर बोफोर्स के कारण सरकार नहीं बना पाई सन् 1990 तक तब तीन प्रधानमंत्री बने किंतु अंदरुनी कलह से यह सरकार गिर गई और आमचुनावों की घोषणा हुई। राजीव को अपरिपक्व, अनचाहा, एक्सीडेंटल, परिवारवाद आदि के आरोपो का सामना करना पड़ा।1991में वे चुनाव प्रचार कर रहे थे कि तमिल इलम के लोगों ने श्रीलंका सरकार को शांति सैनिक भेजने के प्रतिरोध में उन्हें श्रीपैराम्बदूर में बम से उड़ा दिया। वे बेमन से आए थे और बेमन से चले गए।लोग कहते हैं उनमें पंडित जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी जैसी राजनीतिक समझ नहीं थी। हालांकि चुनाव बाद कांग्रेस के नरसिंहराव ने सरकार बनाई किंतु यह सच है राजीव एक धूर्त कांग्रेस विरोधी गुट से घिर गए थे जिससे कालांतर में भाजपा की ताक़त बढ़ी।जिसे सत्ता से हटाने पिछले दस वर्षों से उनके पुत्र राहुल गांधी मोर्चा संभाले हुए हैं।