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किताब समीक्षा:किसानों के लिए क्या किया साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल ने !

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अतुल सिन्हा

एक साहित्यकार अपनी रचनाशीलता और जनपक्षधर सोच को कैसे आम लोगों और देश के किसानों के लिए फायदेमंद बना सकता है इसकी मिसाल आपको जाने माने साहित्यकार और ‘राग दरबारी’ के लेखक श्रीलाल शुक्ल के बारे में गहराई से जानने से पता चलेगा। लोकतंत्र का मतलब उनकी नज़र में क्या था और किसानों की आर्थिक सुरक्षा को लेकर वह कितने चिंतित रहते थे, इसकी एक झलक आपको मिलेगी ‘संघर्ष का सुख’ नाम की पुस्तक में। अपने श्वसुर श्रीलाल शुक्ल को याद करते हुए इफको के प्रबंध महानिदेशक उदय शंकर अवस्थी बताते हैं कि श्रीलाल जी उनसे समय समय पर कुछ ऐसे सवाल पूछते थे जिसपर वह कई कई दिनों तक सोचते थे और फिर उसे किसानों के लिए अपनी संस्था के जरिये ज़मीन पर उतारते थे।

अवस्थी अपनी किताब में बताते हैं कि श्रीलाल शुक्ल ने उन्हें एक बार संस्कृत का एक श्लोक सुनाया जिसका मतलब था – वह संपत्ति किस काम की जो जरूरत पड़ने पर रिश्तेदारों और दोस्तों के काम न आ सके और जिसे देखकर दुश्मनों को जलन न हो। साथ ही एक बार श्रीलाल जी ने उनसे सवाल पूछा कि देश का कानून किस भाषा में काम करता है कि देश के किसी अदालत में खड़े अभियुक्त को अपने खिलाफ या अपने बचाव में कही गई बातों का एक भी शब्द समझ में नहीं आता है? अवस्थी ने इसपर गंभीरता से सोचा और इफको के कृषि पोर्टल को किसानों को उनकी भाषा में जानकारी उपलब्ध कराने की शुरुआत की।

इसी तरह एक मौके पर श्रीलाल शुक्ल ने उनसे पूछा कि गरीबों के ले लिए लोकतंत्र का क्या अर्थ है? लोकतंत्र में उनका क्या फायदा है? इस सवाल पर भी अवस्थी ने काफी गंभीरता से सोचा और इफको में कई ऐसी योजनाएं शुरु करवाईं जो सीधे किसानों की ज़िंदगी को बेहतर बनाने वाली हों और ज्यादा से ज्यादा गरीब किसानों को संस्था से जोड़कर उनके लिए संकट हरण बीमा योजना शुरु की जिसमें किसान को एक बोरी खाद खरीदने पर व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना का लाभ मिलता है। अवस्थी के मुताबिक इस योजना से करोड़ों किसानों को मुफ्त बीमा की सुविधा मिल रही है।

अभिषेक सौरभ ने यह किताब लिखी है जिसे राजकमल प्रकाशन ने छापा है। इसमें इफको को इस मुकाम तक लाने वाले उदय शंकर अवस्थी के संघर्ष और किसानों के लिए किए गए उनके बेहतरीन कामों को बेहद दिलचस्प तरीके से पेश किया गया है। सबसे अहम यह कि कैसे अवस्थी ने भारत में सबसे पहले व्यापक स्तर पर नैनो उर्वरकों की शुरुआत की। नैनो यूरिया एक बेहतरीन और बेहद सस्ते विकल्प के तौर पर किसानों के लिए आज उपलब्ध है। 45 किलोग्राम यूरिया की बोरी के बदले अब किसान नैनो यूरिया के 500 मिलीलीटर की बोतल का इस्तेमाल करता है जो कहीं ज्यादा असरदार होता है। जाहिर है इफको की उपलब्धियां और नई तकनीक के साथ चलने की जो कोशिश है उसमें अवस्थी की दूरदृष्टि का जबरदस्त योगदान है। और इसके पीछे बेशक श्रीलाल शुक्ल जैसे दूरगामी सोच के साहित्यकार की बड़ी भूमिका है, जिसे अवस्थी दिल खोलकर स्वीकार करते हैं।

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