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धान  रोपणी का चमकीला दौर 

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                 –सुसंस्कृति परिहार

सन 2023 का मनभावन सावन माह अमृतकाल का एक सुनहरा अध्याय होगा इसके अच्छे संकेत पिछले दिनों देखने मिले।  भारत सरकार की उपेक्षा का शिकार जन जन का दुलारा इंदिरा गांधी का पोता राहुल गांधी जिसके पिता और दादी प्रधानमंत्री रहे हों वह सोनीपत के एक गांव में टे्क्टर से खेत का मचौआ  करके धान रोपाई कर रहा था लेशमात्र भी बनावटीपन उसके चेहरे  पर नज़र नहीं आया एक मेहनतकश की तरह उसका यह स्वरुप देखकर लोगों की आंखें चकरा गई। यह वही राजकुमार है जो कहते हैं मुंह में चांदी की चम्मच लेकर पैदा हुआ।कभी वह ट्रक में बैठकर लंबी यात्रा  में उनके दुखदर्द की तह में जाता है तो कभी कड़कड़ाती ठंड में बिना गर्म कपड़े पहने बच्चों को देखकर भारत जोड़ो यात्रा एक टी शर्ट में सम्पन्न करता है। कभी मोटर मैकेनिकों के बीच काम सीखता है ,कभी फर्राटे में  भागती डिलेवरी ब्आय की गाड़ी पर नज़र आता है कभी खटिया पर बैठ अपनी बहिन प्रियंका से ग्रामीण महिलाओं से ना केवल बात कराता है  बल्कि उनके साथ एक आम भारतीय की तरह भोजन करता है।यह माद्दा जन नेता में होना चाहिए जिससे वह अवाम की तकलीफ़ समझ सके।यह कार्य वह किसी इवेंट की तरह नहीं कर रहा है बल्कि वह जन जन से खुद को जोड़कर उनकी तकलीफों को महसूस करने की हरचंद कोशिश में है।

इधर आजकल सारा भारत मानसून की दरियादिली से इतना पानी पानी हो गया कि किसानों को धान बोने का मौका ही नहीं मिला इसलिए रोपाई का काम ही चारों ओर दिखाई दे रहा है यह बहुत कठिन होता है पानी से भरे खेत में मिट्टी को मचाकर उसमें धान के पौधे रोपे जाते हैं। आश्चर्यजनक रूप से राहुल  के धान रोपाई को देखने के बाद एक वीडियो भी सामने आ गया जिसमें मशहूर क्रांतिकारी भोजपुरी लोकगायिका नेहा सिंह राठौर भी अपने खेत में धान रोपाई सीखने खेत में उतरी और धान के पौधे रोपना सीखा।वे अपने जमीनी अनुभव को निश्चित ही अपने लोकगीत में उतारेगी।इस दौरान प्रायः हर अंचल में महिलाएं रोपण करते हुए जो गीत गाती हैं वह हमारी विरासत है।कठिन परिस्थितियों में खुशी खुशी काम थकान भी नहीं आने देता।पहले जब ट़ेक्टर नहीं  होते थे तो यह काम बैलों के साथ किसान मचौआ करते थे और धान रोपने का काम आमतौर पर महिलाएं करती थीं। क्योंकि कहा जाता है महिलाएं सलीके से बेहतरीन ढंग से पौधे रोपने का काम करती है। 

इसी बीच बाबा नागार्जुन और फणीश्वरनाथ रेणु जी का भी धान रोपते एक फोटो फेसबुक पर आ धमकता है।खुशी होती है देखकर साहित्यकार का जुड़ाव भी इसी तरह  ज़मीन से होना चाहिए।ये सच है जब तक वह सामाजिक जीवन से नहीं जुड़ेगा तब तक ज़िंदगी से जुड़े जीवन के सवाल कैसे उठाएगा। किसान का श्रम एवं कर्म अत्यंत जीवन्त रूप में प्रतिबिंबित होता है केदारनाथ अग्रवाल के ‘कटुई का गीत’, ‘खेतिहर’, ‘छोटे हाथ’, ‘किसान से’  कुछ ऐसी ही कविताएँ हैं।वे लिखते हैं

जल्दी-जल्दी हांक किसनवा!
बैलों को हुरियाये जा
युग की पैनी लौह कुसी को
भुईं में ख़ूब गड़ाये जा. ।यह उनके अनुभव से उपजी कविता है।
मुनव्वर राणा भी इस बीच याद आ रहे हैं-
घर में रहते हुए गैरों की तरह होती है
बेटियां धान के पौधों की तरह होती हैं

कुल मिलाकर यह साल अधिक वर्षा के कारण धान की रोपणी वाला ही है कठिन स्थितियों में परम्परागत कृषि ही साथ देती है। गैरों की तरह लड़कियों की तुलना धान के रोपाई से करना भी हमारी चिंता में शामिल होना चाहिए।ये ज़रुर है वे जहां जाती हैं धान के पौधे की तरह सभी परिवार को धन-धान्य से समृद्ध करती हैं।
बहरहाल राहुल गांधी की धान की रोपाई ने आमजन को बहुत प्रभावित किया है सब कुछ सीखने और उसकी परेशानियों को आत्मसात करने वाले इस युवा
से देश को बहुत उम्मीदें हैं, धान की श्रमसाध्य सौंधी महक से यह चमक निरंतर बढ़ती जाएगी । साहित्य,कला ने जमीन से जुड़कर ही उसे निखारा है तो राजनीति को चमकीला यह ज़मीन से जुड़ाव ही बनाएगा।

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