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कैग की रिपोर्ट:मध्य प्रदेश कैंपा फंड का ‘दुरुपयोग’

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फॉरेस्ट फंड के दुरुपयोग के एक मामले में मध्य प्रदेश सरकार ने पेड़-पौधे लगाने के लिए दी जाने फंड में से 167 करोड़ रुपये से ज्यादा के फंड  ‘गैर-जरूरी गतिविधियों’ के लिए आवंटित कर दिए.

इस महीने की शुरुआत में भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) की ओर से प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, किसानों और बुनियादी ढांचे के विकास की योजना जैसी गतिविधियों पर 50 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए जा चुके हैं. इस फंड को शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री रहने के दौरान ही डायवर्ट किया गया था.

इन फंड का पैसा प्रतिपूरक वनीकरण निधि प्रबंधन और योजना प्राधिकरण (कैम्पा) ने जुटाई थी. इस फंड का इस्तेमाल  “जंगल की जमीन को हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति के लिए होता है. इसके अलावा फंड का इस्तेमाल क्षतिपूर्ति के तौर वनरोपण के लिए होता है और वन्यजीव आवास में सुधार, जंगल की आग पर नियंत्रण, वन संरक्षण और मिट्टी और जल संरक्षण उपायों के माध्यम से वनों की गुणवत्ता में सुधार करके वन भूमि और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के नुकसान की भरपाई के लिए किया जाता है.”

यह फंड उन कंपनियों से इकट्ठा की जाती है जो गैर-वानिकी परियोजनाएं चलाती हैं यानी ये कंपनियां सिंचाई, खनन, सड़क निर्माण जैसे प्रोजेक्ट पर काम करती हैं. कंपनियों से जो फंड जुटाया जाता है वह केंद्र सरकार की राष्ट्रीय प्राधिकरण के पास जाती है. राष्ट्रीय प्राधिकरण से फंड को राज्यों को तब भेजा जाता है जब वे जंगलों को लेकर अपनी योजनाओं का सालाना प्लान भेजते हैं. 

8 फरवरी की अपनी रिपोर्ट में कैग ने कहा कि मध्य प्रदेश ने “गैर-जरूरी गतिविधियों” के लिए कैम्पा फंड के 167.83 करोड़ रुपये आवंटित किए थे.

रिपोर्ट के मुताबिक, 2017-18 और 2018-19 में मुख्यमंत्री कृषक समृद्धि योजना के तहत कृषि वानिकी के लिए 120.30 करोड़ रुपये आवंटित हुए. वहीं, 2018 में वन भवन के निर्माण के लिए 20.88 करोड़ रुपये,  2017-18 में नई वन भर्तियों के लिए 7.13 करोड़ रुपये,  2017-18 से 2019-20 तक राज्य वन अनुसंधान संस्थान जबलपुर के रिसर्च के लिए 6.47 करोड़ रुपये आवंटित हुए. 

रिपोर्ट में कहा गया कि 2019 में वन कर्मचारियों के प्रशिक्षण के लिए 5 करोड़ रुपये और 2018-19 से 2019-20 तक बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 1.97 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया. 

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