शशिकांत गुप्ते
प्राकृतिक विपदाओं के कारण हमारी आस्था आहत नहीं होती है। प्रत्यक्ष उदाहरण हाल ही प्राकृतिक आंधी और तूफ़ान के कारण कालो के काल महाकाल के मंदिर परिसर को दिव्य,भव्य और अलौकिक सुंदरता प्रदान करने के साथ, दर्शनार्थियों के लिए दर्शनीय मूर्तियां विराजित की गई थी।
ये मूर्तियां आंधी और तूफान से ना सिर्फ गिर गई,बल्कि खंडित भी हो गई।
दोष प्रकृति है। इसलिए हमारी अति संवेदनशील आस्था आहत नहीं हुई।
धार्मिक विषय पर इतना लिखना ही पर्याप्त है। धार्मिक विषय बहुत संवेदनशील है,इसलिए इस विषय को यहीं पूर्ण विराम।
इनदिनों हर एक निर्माण दिव्य,भव्य और अलौकिक हो रहा है। साथ ही धार्मिक,राजनैतिक,सामाजिक, सांस्कृतिक आयोजन भी दिव्य भव्यता के साथ सम्पन्न हो रहें हैं।
इनदिनों भौतिकवाद के ताले की कुंजी ही पूंजी है। इस कुंजी से हर तरह के ताले खुल जाते हैं।
यह कुंजी आम के लिए नहीं,सिर्फ चंद लोगों के लिए ही ये उपलब्ध होती है।
इस कुंजी का उपयोग करना हर किसी के बूते की बात नहीं हैं।
मुद्दे की बात तो यह है कि,इस कुंजी का उपयोग नहीं होता है,यह कुंजी तो वापरी जाती है।
इस कुंजी के आकार प्रकार और क्षमता की निर्मिति सत्ता परिवर्तन के साथ वापरने वाले और सत्ता में विराजित लोगों के आपसी सांठ गांठ से होती है।
पूंजी की कुंजी के लाभ वे सभी लोग प्राप्त करते हैं,जो समाज में प्रतिष्ठित कहलाते हैं।
मंदिर परिसर में विराजित मूर्तियां आंधी में गिर पड़ी,खंडित भी हुई।
चिंता करने की कोई बात नहीं,
हमारे पास बेतहाशा पूंजी की कुंजी है। मूर्तियां आस्था का प्रतीक है पुनः निर्मित हो जाएंगी?
हम देशवासियों को गर्व से कहना चाहिए, हमारे देश में धार्मिक स्थलों का विकास हो रहा है।
शहरों, इमारतों के नाम बदल रहें हैं।
यही प्राथमिकताएं हैं।
शशिकांत गुप्ते इंदौर