मुनेश त्यागी
फिलहाल अमेरिका की फोक्स न्यूज कंपनी के संवाददाता टकर कार्लसन ने रूस के राष्ट्रपति पुतिन का साक्षात्कार लिया है। इस साक्षात्कार में राष्ट्रपति पुतिन से मुख्य मुख्य रूप से यूक्रेन युद्ध पर अपने विचार व्यक्त किए हैं जिसमें उन्होंने बताया है कि इस युद्ध के लिए मुख्य रूप से कौन जिम्मेदार है। इससे पहले भी राष्ट्रपति पुतिन कई बार यूक्रेन युद्ध पर अपने विचार व्यक्त कर चुके हैं, मगर पुतिन के इन विचारों से पश्चिमी देशों की सरकारों ने अपनी जनता को महरूम रखा है। उन्होंने पुतिन के इन विचारों से अपनी जनता को अवगत नहीं होने दिया है। टकर कार्लसन का कहना है कि सभी अमेरिकियों का यह अधिकार है कि वे इस युद्ध के बारे में पूरी तरह से जान सके।
अमेरिकी मीडिया ने राष्ट्रपति पुतिन को पश्चिमी देशों में एक “जन शत्रु” के रूप में स्थापित किया हुआ है। वे कार्लसन को पुतिन का पिछलगू और कठपुतली बता रहे हैं। पूरी पश्चिमी दुनिया का शासक वर्ग कार्लसन द्वारा राष्ट्रपति पुतिन के साक्षात्कार से जैसे डरा हुआ है, वह नहीं चाहता कि अमेरिका और पश्चिमी दुनिया के लोग रूस और यूक्रेन युद्ध की असलियत पश्चिमी देशों मुख्य रूप से पश्चिमी देशों की जनता को पता चले। इसी को लेकर वे कार्लसन पर तरह-तरह के झूठे आरोप लगा रहे हैं, उन्हें बदनाम कर रहे हैं और कुछ पश्चिमी देशों ने तो कार्लसन पर प्रतिबंध लगाने तक की भी बात की है।
आखिरकार मुख्य रूप से पश्चिमी देश, मुख्य रूप से अमेरिका ऐसा क्यों कर रहा है? अमेरिका क्यों नहीं चाहता कि उसकी जनता यूक्रेन और रूस के युद्ध के बारे में जानकारी प्राप्त करें और इस युद्ध के बारे में अपनी स्वतंत्र सोच कायम करें? यहीं पर सबसे बड़ा सवाल पैदा होता है कि आखिर अमेरिका अपनी जनता को रूस यूक्रेन युद्ध के बारे में हालात को क्यों छुपाना चाहता है और वह क्यों इस साक्षात्कार पर आधे अधूरे आरोप लगाने पर उतर आया है?
इसका मुख्य कारण है कि अमेरिका और पश्चिमी देशों की पूंजीपति सरकारें नहीं चाहती कि वहां की जनता को यूक्रेन रूस युद्ध के बारे में पता चले क्योंकि यूक्रेन और रूस के बीच में हो रहे युद्ध का सबसे बड़ा कारण अमेरिका और नाटो देशों की नीतियां ही इस युद्ध के लिए सबसे बड़ी जिम्मेदार हैं। इस साक्षात्कार की सूचनाओं के जनता में जाने के बाद पूरी दुनिया को पता चल जाएगा कि किस तरह से इस युद्ध से पहले पुतिन ने लगातार कोशिश की थी कि नेटो और अमेरिका दोनों इस लड़ाई से अलग रहें और रूस के साथ यूक्रेन को अपना मोहरा न बनाएं।
इस साक्षात्कार के जनता के सामने आने से पूरी दुनिया को पता चल जाएगा कि यूक्रेन रूस युद्ध में सबसे ज्यादा हथियार और पैसा अमेरिका और नाटो के देश भेज रहे हैं। इस साक्षात्कार के सामने आने से पूरी दुनिया को पता चल जाएगा कि किस तरह से अमेरिका और नाटो देश, यूक्रेन को अपने कब्जे में लेकर और नाटो में शामिल करके, रूस की सुरक्षा को सबसे बड़ा खतरा पैदा कर रहे थे और इस साक्षात्कार के बाद पूरी जनता को पता चल जाएगा कि किस तरह से तमाम पूंजीवादी लुटेरे, रूस को पांच भागों में बांटकर उस पर कब्जा करने चाहते थे।
इस साक्षात्कार के तथ्य सामने आने से पूरी दुनिया को पता चल जाएगा कि रूस में दुनिया के सबसे बड़े तेल भंडार हैं, दुनिया की सबसे ज्यादा गैस है, नेचुरल गैस है, दुनिया का सबसे ज्यादा कोयला, लोहा है, सबसे ज्यादा गेहूं पैदा होता है तो इस सब पर कब्जा करने के लिए और रूस को बर्बाद करने के लिए उन्होंने यानी लुटेरे पश्चिमी देशों ने, रूस और यूक्रेन में युद्ध करवाने की सबसे बड़ी भूमिका अदा की है।
यहीं पर हम देख रहे हैं की वैसे तो अमेरिका, नाटो, इंग्लैंड, फ्रांस और जर्मनी पूरी दुनिया में आजादी का ढिंढोरा पीटते हैं, वे पूरी दुनिया में आजादी के चैंपियन होने का ढोंग करते हैं, मगर हम बहुत समय से देखते आ रहे हैं कि पूरी दुनिया में दुनिया के किसी भी देश के मालिकों, सामंतों और पूंजीपति शासकों ने, कभी भी शोषित वर्ग की आजादी का समर्थन नहीं किया है।
भारत में इसी शोषक वर्ग में गौतम बुद्ध के विचारों को बर्दाश्त नहीं किया, उसने चार्वाक विचारों को बर्दाश्त नहीं किया, उसने कबीर के विचारों को बर्दाश्त नहीं किया, उसने रविदास और पेरियार के विचारों को बर्दाश्त नहीं किया, उसी ने दुनिया भर के ज्ञानी वैज्ञानिक विचारों को बर्दाश्त नहीं किया। यूरोप में तो वैज्ञानिक विचार प्रसारित करने की वजह से कोपरनिकस को आजीवन अपने विचार व्यक्त करने की पाबंदी लगा दी थी और जॉरदन ब्रूनो द्वारा यह कहने पर कि पृथ्वी सूरज के चारों तरफ घूमती है, उसको जिंदा जला दिया था।
इसी पूंजीवादी दुनिया ने कार्ल मार्क्स और एंगेल्स ने जब पूरी दुनिया की पूंजीपति वर्ग की लूट की पोल खोल दी और शोषण का पूरी तरह से खुलासा कर दिया और पूरी दुनिया को बता दिया कि किस तरह से पूंजीवादी व्यवस्था के स्थान पर समाजवादी व्यवस्था आएगी और किसान मजदूर की सरकार आकर पूरी जनता का कल्याण कर देगी, वहां की सरकारों ने मार्क्स और एंगेल्स के विचारों को बर्दाश्त नहीं किया, उन्हें देश निकाले दिए।
इसी प्रकार भारत के आजादी के आंदोलन में भगत सिंह और उनके क्रांतिकारी साथियों के विचारों को बर्दाश्त नहीं किया गया और उनके द्वारा लगाए गए नारे “इंकलाब जिंदाबाद” और “साम्राज्यवाद मुर्दाबाद”और “सोवियत रूस की जनता की क्रांति जिंदाबाद” की वजह से उन्हें सबूत न होते हुए भी बिस्मिल, अशफाक, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह, भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गई। इसी प्रकार भारत की आजादी के लिए रूस जाते हुए सुभाष चंद्र बोस की विमान दुर्घटना में हत्या कर दी गई थी।
इसके बाद जब भारत में आजादी के बाद संविधान लागू किया गया और देश की जनता को बोलने, लिखने, पढ़ने की आजादी दी गई, यूनियन बनाने की आजादी दी गई, तो भारत के पूंजीपति वर्ग ने इसे कभी भी स्वीकार नहीं किया। भारत का संविधान कई तरह की आजादी देने की बात करता है, मगर भारत का पूंजीपति वर्ग और यहां की लुटेरी सत्ता लिखने, पढ़ने के विचारों की आजादी और यूनियन बनाने से सबसे ज्यादा डरती है। वह किसी भी दशा में छात्रों, नौजवानों, किसानों और मजदूरों को अपनी यूनियन बनाकर अपना आंदोलन चलाना स्वीकार नहीं करतीं।
आज हम देख रहे हैं कि जब मजदूर अपने यूनियन बनाने के कानूनी अधिकार का प्रयोग करके यूनियन बनाते हैं तो कारखानेदार सबसे पहले इन यूनियन बनाने वाले मजदूरों को नौकरी से गैर कानूनी रूप से हटा देता है और फिर वह जिंदगी अपना रोजगार पाने के लिए भटकते रहते हैं। इसी प्रकार छात्र यूनियन बनाने वाले छात्रों को ब्लैक लिस्ट किया जाता है, उन्हें फेल कर दिया जाता है उन्हें ब्लैक लिस्ट करके कॉलेज से निकाल दिया जाता है।
यही हादसा देश और दुनिया में यूनियन बनाकर अपने हकों की लड़ाई लड़ने वाले तमाम लोगों के साथ किया जाता है। इस प्रकार हम देख रहे हैं कि पूंजीवादी देशों द्वारा आजादी की बात करना सबसे बड़ी बेईमानी है। हकीकत में देखने पर यह पता चलता है कि दुनिया का लुटेरा पूंजीपति और सामंती वर्ग बोलने, लिखने, पढ़ने, यूनियन बनाने और ज्ञान विज्ञान की जानकारी हासिल करने की बात केवल और केवल किताबों तक मेहदूद रखना चाहता है। असल में वह जनता को असली आजादी देने के लिए कतई भी तैयार नहीं कर तैयार है और जब जनता अपनी आजादी के लिए लड़ती है, लिखती है, बोलती है, पढती है, यूनियन बनती है, समाज बदलने या क्रांतिकारी परिवर्तन की बात करती है तो वह सबसे ज्यादा हमला इन्हीं लोगों पर करती है। इस प्रकार दुनिया की लुटेरी पूंजीवादी ताकतें आजादी के अधिकार पर सबसे ज्यादा हमला कर रही है और वह जनता की सच्ची आजादी की सबसे बड़ी दुश्मन बन गई हैं।
वैसे तो अमेरिका और पश्चिमी पूंजीवादी देश पूरी दुनिया में आजादी का ढिंढोरा पीटते हैं, वे आजादी के चैंपियन बनते हैं, मगर हकीकत में जब जनता अपने हक और अधिकारों को पाने के लिए और असली आजादी की लड़ाई लड़नी है तो ये ताकतें ही सबसे पहले उन पर जुल्मों सितम करती हैं और उन्हें मौत के घाट उतरती हैं। यही काम उन्होंने क्यूबा के साथ किया है और यही काम वे पूरी पूरे दक्षिणी अमेरिकी महाद्वीप की जनता के साथ कर रहे हैं, जहां जनता अपनी आजादी के लिए लड़ना चाहती है, अपनी आजादी प्राप्त करना चाहती है, मगर ये लुटेरी ताकतें तरह-तरह से उन्हें परेशान कर रहे हैं, उनके आंतरिक मामलों में दखलअंदाजी करते हैं और वहां की सरकारों को साजिशें करके गिराते हैं।
हम देख रहे हैं कि यह पूंजीवादी ताकतें जो अपने आप को आजादी का चैंपियन बताती हैं, सबसे ज्यादा समाजवादी विचारों से भयभीत हैं। वे नहीं चाहती कि किसी भी देश में वहां की जनता वामपंथी विचारों को अपनाकर, वहां के समाज में पूंजीवादी समाज को पलट कर उसके स्थान पर समाजवादी समाज कायम करें।
आज भी हम देख रहे हैं कि ये आजादी के तथाकथित चैंपियन पूरी दुनिया में समाजवादी ताकतों पर सबसे ज्यादा हमले कर रहे हैं। चाहे रुस हो, चीन हो, भारत हो, वियतनाम हो, उतरी कोरिया हो, इराक हो, लीबिया हो, सब जगह और पूरी दुनिया में समाजवादी ताकतों पर सबसे ज्यादा हमले किए जा रहे हैं, उनकी आजादी छीनी जा रही है, उनकी आजादी की हत्या की जा रही है। कार्लसन के राष्ट्रपति पुतिन के साक्षात को लेकर पुरी पूंजीवादी दुनिया और पूंजीवादी सत्ताएं डर गई हैं। वे जनता को हकीकत और सच्चाई बताने से डरी हुई हैं। वे सिर्फ और सिर्फ आजादी का चैंपियन होने की बात करती हैं, हकीकत में वे आजादी के सबसे बड़े हत्यारे हैं और आजादी के सबसे बड़े दुश्मन हैं।