,मुनेश त्यागी
चांद पर विक्रम और प्रज्ञान
जय विज्ञान ,जय विज्ञान,
जय हो चंद्रयान अभियान
जय हो ज्ञान और विज्ञान।
23 अगस्त 2023 को सायं 6 बजकर 4 मिनट पर भारत का चंद्रयान 3 चांद के दक्षिणी ध्रुव के करीब सफलतापूर्वक उतर गया। यह भारत के संविधान में उल्लिखित ज्ञान विज्ञान और वैज्ञानिक संस्कृति के अभियान का सबसे बड़ा और अहम् योगदान है। इस उपलब्धि के साथ भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में बहुत बड़ी कामयाबी हासिल की है। जैसे ही चंद्रयान-3 के विक्रम ने चांद पर लैंडिंग की, देश के ज्ञान विज्ञान और वैज्ञानिक संस्कृति से जुड़े करोड़ों लोग खुशी से झूम उठे।
भारत के चांद पर पहुंचने की इस उपलब्धि में इसरो के तमाम वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और हजारों कर्मचारियों की मेहनत का सबसे बड़ा हाथ है। विक्रम लैंडर के चांद पर उतरने के बाद इस उपलब्धि ने, चांद के देवीय रूप को नकार दिया है। भारत चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास उतरने वाला पहला देश बन गया है। यह भारत की बहुत बड़ी कामयाबी है। इस मिशन में दुनिया के कई देश लगे हुए थे, मगर वे कामयाब नहीं हो पा रहे थे।
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस कामयाबी का पहला पत्थर रखा था जिसे आगे बढ़ाते हुए अन्तरिक्ष विज्ञानी विक्रम साराभाई ने “इसरो” की नींव रखी थी, इसीलिए विक्रम लैंडर नाम इन्हीं के नाम पर रखा गया है। यह भारत की वैज्ञानिक टेंपरामेंट की महान जीत है। यह उपलब्धि भारत की इंजीनियरिंग का बड़ा योगदान है। अगले 14 दिनों में प्रज्ञान रोवर चांद की सतह पर घूमेगा और वहां से नई जानकारियां भेजेगा। अब वहां पर ऑर्गेनिक विकास यानी की जीवन की मौजूदगी का पता भी लगाया जाएगा।
यह उपलब्धि भारत के एक नए वैज्ञानिक युग का आगाज करेगी, वहां पर बहुत सारे प्रयोग किए जाएंगे और इसके बाद दुनिया के तमाम देश, इस उपलब्धि और नयी जानकारियों का इस्तेमाल करेंगे। यह थाली या ताली पीटने का नही, बल्कि हमारे वैज्ञानिकों की कमाल की आशावादिता और बहुत बड़ी मेहनत का परिणाम है। यह महान उपलब्धि और बहुत बड़ी कामयाबी, भारत की वैज्ञानिक संस्कृति और ज्ञान विज्ञान के अभियान को बहुत बड़ी गति प्रदान करेगी, पूरे समाज के ज्ञान चक्षु खोलने में बहुत बड़ी भूमिका निभायेगी और यकीनन यह उपलब्धि भारत के सिर को ऊंचा करेगी।
जब हम इस सारे अभियान के बारे में देखते हैं तो हम पाते हैं कि यह हमारे हजारों वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और कर्मचारियों की पिछले 15 साल की मेहनत का फल है, जो अब कामयाबी पर पहुंच गया है। सबसे बड़ी बात यह है कि कितनी सतत मेहनत, लगन और कितनी निपुणता के साथ यह कामयाबी हासिल की गई है, इसरो टीम का यह एकजुट और सफल प्रयास सबसे ज्यादा काबिले तारीफ है।
आईये, चंद्रमा के बारे में कुछ जानकारी हासिल करते हैं। चंद्रमा पृथ्वी का एक उपग्रह है। पृथ्वी से चांद की औसत दूरी लगभग 3,84,400 किलोमीटर है। चांद भी वृत्ताकार कक्षा में नहीं, बल्कि दीर्घ वृत्ताकार कक्षा में पृथ्वी की परिक्रमा करता है। इसकी अधिकतम दूरी 4,06,670 किलोमीटर है और न्यूनतम दूरी 3,56,400 किलोमीटर है पृथ्वी से भेजी गई रेडियो तरंगे 1.28 सेकंड के बाद चंद्रमा पर पहुंच जाती है। चंद्रमा करीब 1 किलोमीटर प्रति सेकंड के वेग से 27 दिन 7 घंटे 43 मिनट और 11 सेकंड में पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरी करता है। यह इतने ही समय में अपनी धुरी पर भी एक चक्कर काट लेता है।
चांद का एक गोलार्द्ध हमेशा ही पृथ्वी की ओर रहता है। पृथ्वी से हमें चांद का दूसरा गोलार्ध कभी नहीं दिखाई देता। नई जानकारी के अनुसार चंद्रमा के दूसरे गोलार्ध की कुछ जानकारी भी मानव ने प्राप्त कर ली है। अभी-अभी नयी जानकारी से पता चला है कि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर कुछ पानी की मौजूदगी है। यहां पर वायुमंडल नहीं है। चांद के जिन क्षेत्रों को समुद्र कहा जाता है, वे सूखे मैदान हैं। चांद की सतह पर बड़े-बड़े गड्ढे और ऊंचे ऊंचे पर्वत हैं।
दिन के समय वहां का तापमान 130 डिग्री सेंटीग्रेड पहुंच जाता है और रात के समय में शून्य से नीचे 150 सेंटीग्रेड पर उतर आता है। 1969 में धरती का मानव चांद पर पहुंचकर लौट आया है। वह अपने साथ चांद की मिट्टी और चट्टानें भी लाया था। चांद पर पहुंचने वाला सबसे पहला मानव नील आर्मस्ट्रांग था।
चांद के बारे में कुछ ताजी जानकारियां इस प्रकार हैं,,,, 1. चांद की उत्पत्ति लगभग 435-440 करोड़ साल पहले हुई थी, 2.जब मंगल ग्रह के आकार जितना “थिया” नमक ग्रह पृथ्वी से टकराया था जिसके अवशेषों से ही मौजूद चंद्रमा बना था। 3.चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव का कुछ हिस्सा अंधेरे में डूबा रहता है। 4.अंधेरे क्षेत्र में तापमान -203 डिग्री तक गिर जाता है। 5.चांद का एक दिन पृथ्वी के 14 दिन के बराबर होता है। 6.चांद के दक्षिणी ध्रुव में पानी की मौजूदगी पाई गई है, यह पता भारत के चंद्रयान एक ने लगाया था। 7.चांद की सतह ऊबड़-खाबड़ है, यहां वायुमंडल नहीं है, 8.यहां पर उड़ने वाली धूल बहुत देरी से जमती है क्योंकि यहां गुरुत्वाकर्षण की शक्ति बहुत कम है। 9.चांद का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी के मुकाबले 6 गुना कम है।
चंद्रयान-3 के चंद्रमा की सतह पर उतारने के बाद भारत ने दुनिया के अंतरिक्ष विज्ञान में बहुत बड़ी कामयाबी हासिल की है। यह महान उपलब्धि भारत की वैज्ञानिक संस्कृति और ज्ञान विज्ञान के अभियान को बहुत बड़ी गति प्रदान करेगा। इससे हमारे देश में मौजूद बहुत सारी धर्मांता, अंधविश्वासों, टोना-टोटकों और पाखंडों की मान्यताओं में कमी आएगी। इनमें से बहुत सारे अंधविश्वासों का साम्राज्य, अपनी मौत मर जायेगा। अब भारत की बहुत सारी जनता इन सब को छोड़कर वैज्ञानिक संस्कृति और ज्ञान विज्ञान हासिल करने में अपनी रुचि दिखाएंगी। सच में अंतरिक्ष विज्ञान की यह महान उपलब्धि, भारत की ज्ञान विज्ञान और वैज्ञानिक संस्कृति के अभियान को, बहुत ऊंचे शिखर पर ले जाएगी।