~ पुष्पा गुप्ता
एक बहुत बड़ा विशाल पेड़ था। उस पर बहुत सारे हंस रहते थे।
उनमें एक बहुत बुजुर्ग हंस था, वह बुद्धिमान और बहुत दूरदर्शी। सब उसका आदर करते ‘ताऊ’ कहकर बुलाते थे.
एक दिन उसने एक नन्ही सी बेल को पेड़ के तने पर बहुत नीचे लिपटते पाया। ताऊ ने दूसरे हंसों को बुलाकर कहा, “देखो, इस बेल को नष्ट कर दो। एक दिन यह बेल हम सबको मौत के मुंह में ले जाएगी।”
एक बेफिक्र युवा हंस हंसते हुए बोला, “ताऊ, यह छोटी सी बेल हमें कैसे मौत के मुंह में ले जाएगी?”
बुजुर्ग हंस ने समझाया, आज यह तुम्हें छोटी सी लग रही है। धीरे धीरे यह पेड़ के सारे तने को लपेटा मारकर ऊपर तक आएगी। फिर बेल का तना मोटा होने लगेगा और पेड़ से चिपक जाएगा, तब नीचे से ऊपर तक पेड़ पर चढ़ने के लिए सीढ़ी बन जाएगी। कोई भी शिकारी सीढ़ी के सहारे चढ़कर हम तक पहुंच जाएगा और हम मारे जाएंगे।
दूसरे धनपशु हंस को यकीन न आया. एक छोटी सी बेल कैसे सीढ़ी बनेगी.
तीसरा सेकुलर हंस बोला, “ताऊ, तू तो एक छोटी सी बेल को खींचकर ज्यादा ही लंबा कर रहा है।”
एक हंस बड़बड़ाया, यह ताऊ अपनी अक्ल का रौब डालने के लिए अंट शंट कहानी बना रहा है.
इस प्रकार किसी दूसरे हंस ने ताऊ की बात को गंभीरता से नहीं लिया।
इतनी दूर तक देख पाने की उनमें अक्ल कहां थी?
समय बीतता रहा बेल लिपटते लिपटते ऊपर शाखाओं तक पहुंच गई।
बेल का तना मोटा होना शुरू हुआ और सचमुच ही पेड़ के तने पर सीढ़ी बन गई। जिस पर आसानी से चढ़ा जा सकता था।
सबको दूरंदेशी ताऊ की बात की सच्चाई सामने नजर आने लगी। पर अब कुछ नहीं किया जा सकता था क्योंकि बेल इतनी मजबूत हो गई थी कि उसे नष्ट करना हंसों के बस की बात नहीं थी।
एक दिन जब सब हंस दाना चुगने बाहर गए हुए थे तब एक बहेलिया उधर आ निकला।
पेड़ पर बनी सीढ़ी को देखते ही उसने पेड़ पर चढ़कर जाल बिछाया और चला गया।
सांझ को सारे हंस लौट आए और जब पेड़ पर उतरे तो बहेलिए के जाल में बुरी तरह फंस गए।
जब वे जाल में फंस गए और फड़फड़ाने लगे, तब उन्हें ताऊ की बुद्धिमानी और दूरदर्शिता का पता लगा।
सब सेकुलर ताऊ की बात न मानने के लिए लज्जित थे और अपने आपको कोस रहे थे।
ताऊ सबसे रुष्ट था और चुप चाप बैठा था। एक हंस ने हिम्मत करके कहा, ताऊ, हम मूर्ख हैं, लेकिन अब हमसे मुंह मत फेरो।
दूसरा हंस बोला, इस संकट से निकालने की तरकीब तू ही हमें बता सकता हैं, आगे हम तेरी कोई बात नहीं टालेंगे।
सभी हंसों ने हामी भरी तब ताऊ ने उन्हें बताया, “मेरी बात ध्यान से सुनो सुबह जब बहेलिया आएगा, तब मुर्दा होने का नाटक करना।
बहेलिया तुम्हें मुर्दा समझकर जाल से निकालकर जमीन पर रखता जाएगा, वहां भी मरे समान पड़े रहना. जैसे ही वह अन्तिम हंस को नीचे रखेगा. मैं सीटी बजाऊंगा। मेरी सीटी सुनते ही सब उड़ जाना।”
सुबह बहेलिया आया।
हंसों ने वैसा ही किया, जैसा ताऊ ने समझाया था।
सचमुच बहेलिया हंसों को मुर्दा समझकर जमीन पर पटकता गया, और सीटी की आवाज के साथ ही सारे हंस उड़ गए।
बहेलिया अवाक होकर देखता रह गया।
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वरिष्ठजन घर की धरोहर हैं। वे हमारे संरक्षक एवं मार्गदर्शक है। जिस तरह आंगन में पीपल का वृक्ष फल नहीं देता, परंतु छाया अवश्य देता है।
उसी तरह हमारे घर के बुजुर्ग हमे भले ही आर्थिक रूप से सहयोग नहीं कर पाते है, परंतु उनसे हमे संस्कार एवं उनके अनुभव से कई बाते सीखने को मिलती है।
बड़े-बुजुर्ग परिवार की शान है वो कोई कूड़ा करकट नहीं हैं, जिसे कि परिवार से बाहर निकाल फेंका जाए।