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कम्युनिस्ट, समाजवादी, कांग्रेस और आर्यसमाज के पास भी है वर्दीधारी ब्रिगेड

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आरएसएस यानी राष्ट्रीय़ स्वयंसेवक संघ इस विजयादशमी को 99 साल का हो गया. आरएसएस के शतायु होने की उल्टी गिनती शुरू हो गई है. विजयादशमी को आरएसएस की स्थापना 1925 में महाराष्ट्र के नागपुर में हुई थी. नागपुर से निकला आरएसएस आज पूरे देश में छा चुका है. यहां तक कि दुनिया के कई देशों में भी इसकी शाखाएं हैं. समर्थक हो या विरोधी सभी देश और समाज के महत्वपूर्ण मसले पर आरएसएस का विचार जानने के लिए व्यग्र रहते हैं.

आरएसएस के प्रभाव ने हिंदी के कुछ प्रचलित शब्दों को भी ऐसा बना दिया है, मानो वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए ही गढ़े गए थे. देश में किसान संघ, मजदूर संघ, कर्मचारी संघ और उपभोक्ता संघ से लेकर सैकड़ों तरह के संघ हैं. लेकिन, अगर कहीं आप बिना खास संदर्भ लिए केवल संघ बोलेंगे तो सुनने वाले को लगेगा कि जरूर आप राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में बोल रहे हैं. इसी तरह बैंकों और दूसरी कंपनियों की शाखाओं से लेकर हर राजनीतिक दल की शाखाएं हैं. फिर भी अगर आप विशेष बैकग्राउंड की चर्चा किए बिना शाखा बोलेंगे तो आपके आस-पास मौजूद हर व्यक्ति को जरूर लगेगा कि राष्ट्रीय़ स्वयंसेवक संघ द्वारा हर दिन किसी मैदान में होने वाली शारीरिक गतिविधियों के लिए लगने वाली शाखा की बात हो रही है. 

आरएसएस की तर्ज पर बने संगठन नजरों से ओझल क्यों? 

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि देश की हर राजनीतिक विचारधारा के पास आरएसएस की तरह की वर्दीधारी ब्रिगेड है. इन्हें आत्मरक्षा और विरोधियों के आक्रमण झेलने की ट्रेनिंग दी जाती है. इनके कैंप लगाए जाते हैं. प्राकृतिक आपदा और महामारी या दूसरे किसी राष्ट्रीय, क्षेत्रीय या सामाजिक संकट के समय राहत और सेवा के सबक सिखाए जाते हैं. इन्हें विचारधारा के प्रति समर्पण की सीख भी दी जाती है. इनके वैचारिक कोर्स के सिलेबस तैयार होते हैं, उनके आदर्श कार्यकर्ता के लिए इसे पूरा करना अच्छा माना जाता है. 

इनमें से अधिकतर संगठन आरएसएस की स्थापना के नजदीकी सालों में ही बने. कुछ ने सौ साल पूरे कर लिए, कुछ पूरे करने जा रहे हैं. इन सबका अखिल भारतीय फैलाव भी है. फिर भी लाख टके का सवाल यह है कि ये आम जनमानस की नजरों से ओझल क्यों रहते हैं. क्यों इनका आरएसएस की तरह विस्तार नहीं हो पाया? आरएसएस की तर्ज पर बने इन संगठनों में आर्य समाज, कम्युनिस्ट, कांग्रेसी, समाजवादी सभी हैं. लगभग सभी में आरएसएस की तरह के ही पूर्णकालिक कार्यकर्ता(अविवाहित नहीं) भी हैं. 

क्या है भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की वर्दीधारी ब्रिगेड का नाम 

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आरएसएस की शाखा मैदानों और पार्कों में लगती है, यह तो सभी जानते हैं. पर क्या आप जानते हैं कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी जैसे राजनीतिक दल का भी एक वर्दीधारी ब्रिगे़ड है. इसके रंगरूटों की बाजाप्ता ट्रेनिंग होती है. जहां ये सक्रिय हैं, वहां साप्ताहिक परेड या मार्च तक होता है. लाल वर्दी में इनके वॉलंटियर यदा-कदा मार्च करते नजर आते हैं. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के बड़े कार्यक्रमों  में इनके नेतृत्व में परेड करते हुए शोभा यात्रा निकाली जाती है. पार्टी के बड़े आयोजनों में ये लाल झंडे या बड़े नेताओं को सलामी भी देते हैं. सीनियर कॉमरेड इनकी सलामी गारद का निरीक्षण भी करते हैं. 

100 Years Of RSS : भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की इस वर्दीधारी ब्रिगे़ड का नाम जनसेवा दल है. रूस की रेड गार्ड की तर्ज पर भारत में भी इसका गठन हुआ. आजादी से पहले आंध्र प्रदेश में हुए सशस्त्र विद्रोह में भी इस संगठन ने हिस्सा लिया था. बिहार में जनसेवा दल का इतिहास 1938 में शुरू हुआ. किसानों के लाल वर्दीधारी जत्थे ने बछवाड़ा से लेकर दरभंगा तक मार्च भी किया था. बाद के दिनों में भारतीय कन्युनिस्ट पार्टी के तहत जनसेवा दल के नाम से जगह-जगह लाल वर्दीधारी दस्ते का गठन किया गया. बिहार में यह संगठन आज भी सक्रिय है और जगह-जगह प्राकृतिक आपदा आदि में भी इसके दस्ते काम करते हैं. 

समाजवादी भी हर दिन लगाते हैं बच्चों की शाखा

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आरएसएस की ओर से बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक की हर दिन शाखा लगाकर खेल-कूद या शारीरिक गतिविधि करने की बात तो सभी जानते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि बच्चों को समाजवादी विचारधारा और धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों से लैस करने के लिए भी हर दिन शाखा लगाई जाती है. यह सच है. वह भी कोई नई पहल नहीं है. 1931 से ही यह काम चल रहा है. इसमें स्कूल और कॉलेज जाने वाले विद्यार्थियों को लोकतंत्र, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, विज्ञान निष्ठा और राष्ट्रवाद के मूल्यों से लैस किया जाता है. 

राष्ट्रसेवा दल की ओर से प्रचुर साहित्य रचे गए हैं. इनके गीतों को शाखा में जाने वाले बच्चे गाते हैं. खेलकूद और शारीरिक गतिविधियों के माध्यम से इन्हें लोकतंत्र, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता की जरूरत बताकर संस्कारित किया जाता है. इसके अलावा अंधविश्वास को छोड़कर वैज्ञानिक चिंतन अपनाने के लिए प्रेरित किया जाता है. बच्चों के बीच रचनात्मकता के विकास के लिए कला पथक नामक गतिविधि भी चलाई जाती है. फिल्म अभिनेत्री स्मिता पाटिल इसी आंदोलन से निकली. मराठी और दूसरी भाषाओं के कला, संस्कृति और साहित्य जगत की भी कई नामचीन हस्तियां इसी आंदोलन से निकली हैं. 

राष्ट्रसेवा दल के अध्यक्ष नितिन वैद्य बताते हैं कि आजादी की लड़ाई में राष्ट्रसेवा दल के 137 कार्यकर्ताओं ने शहादत दी. आज भी महाराष्ट्र और कर्नाटक में लगभग 600 दैनिक शाखाएं चलती हैं. देश के अधिकतर राज्यों में साप्ताहिक शाखाओं का संचालन किया जाता है. इसके अलावा शिविर लगाए जाते हैं. 1937 में कांग्रेस के फैजपुर अधिवेशन में हिन्दुस्तानी सेवा दल के तहत बच्चों को लोकतांत्रिक मूल्यों में संस्कारित करने के लिए इस तरह की गतिविधि की शुरुआत की गई. 1941 में साने गुरुजी ने राष्ट्रसेवा दल के नाम से इसे पुनर्गठित कर बच्चों को सार्वभौम जीवन मूल्यों में प्रशिक्षित करने के लिए संगठित अभियान शुरू किया. फिलहाल इस संगठन का मुख्यालय पुणे में है. एसएम जोशी और मधु लिमये जैसे समाजवादी विचारक इस अभियान से जुड़े रहे हैं. 

कांग्रेस के सेवा दस्ते का यूनिफॉर्म है ह्वाइट टीशर्ट, ब्लू जींस और स्पोर्ट्स कैप 

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आपने कहीं ह्वाइट टीशर्ट, ब्लू जींस पैंट और स्पोर्ट्स कैप में परेड करते हुए युवाओं को देखा है. यकीन मानिए, यह खिलाड़ियों का मार्च नहीं है. यह कांग्रेस पार्टी का सेवा दस्ता है. इसे कांग्रेस सेवा दल का यूथ ब्रिगेड कहते हैं. कांग्रेस सेवा दल में प्रवेश करते समय यही यूनिफॉर्म दी जाती है. कुछ समय तक यूथ ब्रिगेड में रहने के बाद जब इनकी ट्रेनिंग हो जाती है तो इन्हें खादी वर्दी पहनाई जाती है. इसमें सफेद रंग का  खादी का शर्ट-पैंट और गांधी टोपी होती है. ये बाढ़, भूकंप, रेल हादसे आदि के समय लोगों की मदद करते हैं. इसके अलावा कांग्रेस पार्टी के समारोहों में परेड करने या झंडे अथवा नेतओं को सलामी देने जैसी भूमिका निभाते हैं. 

कांग्रेस सेवादल के अध्यक्ष पंडित जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस जैसे नेता भी रहे हैं. काकीनाडा जेल में बंद 1923 में अमेरिका से पढ़कर लौटे प्रतिभाशाली नौजवान स्वतंत्रता सेनानी नाराय़ण सुब्बाराव हार्डीकर ने इसकी स्थापना के लिए वहां जेल में बंद कांग्रेस के राष्ट्रीय नेताओं से विचार विमर्श किया, यह 1925 में हुई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना से दो साल पहले की बात है. सेवा दल के नाम से इसका गठन किया गया. बाद मे सरोजिनी नायडू के साथ मिलकर हार्डीकर ने इसे विस्तार दिया. इसका नाम बदलकर हिंदुस्तानी सेवा दल कर दिया गया. आजादी के बाद इसका नाम कांग्रेस सेवादल हो गया. 

आर्य वीर दल हर दिन लगाता है युवाओं की शाखा, हैदराबाद मुक्ति संग्राम की शुरुआत की थी

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हिंदू युवाओं की दैनिक शाखा हर दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तरह एक और संगठन लगाता है. उसका नाम आर्य वीर दल है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और आर्य वीर दल की दैनिक शाखा में एक अंतर है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में शिशु से लेकर बुजुर्ग तक जा सकते हैं. वहीं आर्य वीर दल की शाखा केवल किशोरों और युवाओं के लिए होती है. इसमें युवाओं को बलिष्ठ बनने की ट्रेनिंग दी जाती है. साथ ही आत्मरक्षा के गुर सिखाए जाते हैं. यह आर्य समाज का एक घटक है. इसकी स्थापना 26 जनवरी 1929 को यानी ‘आरएसएस’ की स्थापना के चार साल बाद हुई थी. 

आजादी की लड़ाई में भी आर्य वीर दल के कई सदस्यों ने शहादत दी थी. आर्य वीर दल के नौजवानों ने ही हैदराबाद मुक्ति संग्राम की शुरुआत की थी. देश विभाजन के समय नोआखाली में हुए दंगों के बाद लोगों को राहत पहुंचाने में भी आर्य वीर दल के सदस्यों ने काफी प्रशंसनीय काम किया था. आर्य वीर दल से जुड़े युवाओं को सुरक्षा, सेवा और प्रबंधन का  प्रशिक्षण दिया जाता है. शाखा के लिए इनके यूनिफॉर्म अलग और उत्सवों के लिए अलग होते हैं. 

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