दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के नेतृत्व में 15 साल तक सरकार चलाने के बाद सत्ता से बाहर हुई कांग्रेस इस बार के विधानसभा चुनाव में कुल 70 में से सिर्फ तीन सीटों पर ही अपनी जमानत बचा सकी। इतना ही नहीं, यह लगातार ऐसा तीसरा चुनाव साबित हुआ, जहां कांग्रेस अपना खाता भी नहीं खोल सकी। कांग्रेस के साथ कुल 554 प्रत्याशी अपनी जमानत नहीं बचा सके। बीएसपी के सभी 69 उम्मीदवार अपनी जमानत नहीं बचा सके। वहीं, एआईएमआईएम के भी 12 में से 10 उम्मीदवार जमानत नहीं बचा पाए।देश की मुख्य विपक्षी पार्टी (कांग्रेस) ने राष्ट्रीय राजधानी में पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले इस बार अपनी वोट हिस्सेदारी में दो प्रतिशत से अधिक की बढ़ोतरी की है। उसने करीब 6.4 प्रतिशत वोट हासिल किए, जबकि 2020 के विधानसभा चुनाव में उसे 4.26 प्रतिशत वोट मिले थे।
दिल्ली के कस्तूरबा नगर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार अभिषेक दत्त न सिर्फ अपनी जमानत बचाने में सफल रहे, बल्कि दूसरे स्थान पर भी रहे। यह दिल्ली की इकलौती सीट हैं जहां कांग्रेस दूसरे पर स्थान पर रही। दत्त ने 27019 वोट हासिल किए और उन्हें भाजपा उम्मीदवार नीरज बसोया से 11 हजार से अधिक मतों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा। उन्हें करीब 32 प्रतिशत वोट हासिल हुए। नांगलोई जाट तीसरी ऐसी सीट है जहां कांग्रेस जमानत बचाने में सफल रही। यहां से पार्टी के उम्मीदवार और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के पूर्व सचिव रोहित चौधरी ने 31918 वोट और 20.1 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया। वह तीसरे स्थान पर रहे।
इनकी नहीं बची जमानत
संदीप दीक्षित, अलका लांबा, कृष्णा तीरथ, मुदित अग्रवाल, हारुन यूसुफ और राजेश लिलोठिया ऐसे नेता रहे जो अपनी जमानत बचाने में विफल रहे। कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता रागिनी नायक को वजीरपुर से 6384 वोट, दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष चौधरी अनिल कुमार को 16549 वोट तथा दिल्ली नगर निगम के पूर्व महापौर फरहाद सूरी को जंगपुरा से 7350 वोट हासिल हुए। दिल्ली की राजनीति में 1998 से 2013 तक अपना सुनहरा दौर देखने वाली कांग्रेस के लिए यह लगातार तीसरा विधानसभा चुनाव था जिसमें उसे एक भी सीट नहीं मिली।
क्या होती है जमानत राशि
चुनाव में किसी भी उम्मीदवार को खड़ा होने के लिए नामांकन दाखिल करते समय एक निश्चित राशि को चुनाव आयोग के पास जमा करवाना पड़ता है। इसी राशि को जमानत राशि कहा जाता है। प्रत्याशियों की जब्त राशि चुनाव आयोग के खाते में जमा करवा दी जाती है।
किस परिस्थिति में वापस मिलती है राशि
- यदि किसी उम्मीदवार का नामांकन खारिज हो जाता है या वह अपनी उम्मीदवारी वापस ले लेता है तो राशि वापस लौटा दी जाती है।
- यदि किसी उम्मीदवार की मतदान शुरू होने से पहले मृत्यु हो जाती है तो उसके परिवार को यह राशि वापस मिल जाती है।
- यदि कोई उम्मीदवार कुल डाले गए वोट के छठवें हिस्से से ज्यादा वोट हासिल कर लेता है तो उसे राशि वापस मिल जाती है।
- यदि किसी उम्मीदवार को छठवें हिस्से जितने वोट नहीं मिलते लेकिन वह चुनाव में जीत हासिल कर लेता है तो इस परिस्थिति में भी उसे राशि वापस मिल जाती है।