पटना। बिहार को लेकर कांग्रेस की चिंता अब दिखने लगी है. पिछले नवंबर-दिसंबर से कांग्रेस में सुगबुगाहट शुरू हुई. तत्कालीन प्रभारी ने दो डिप्टी सीएम की शर्त आरजेडी के सामने रख दी. पिछली बार से कम सीटें किसी भी हालत में स्वीकार न करने की चर्चा भी उन्होंने छेड़ दी. उसके बाद राहुल गांधी 18 जनवरी 2025 को पटना पहुंचे और बिहार में जाति सर्वेक्षणको फेक बता कर सबको चौंका दिया. उसके बाद राहुल ने दो बार और बिहार यात्रा की है. उनकी ताजा यात्रा सोमवार को ही हुई है. कांग्रेस को बिहार में बढ़ाने के लिए राहुल गांधी के करीबी कन्हैया कुमार को पार्टी ने टास्क देकर भेजा. इस बीच 20 फरवरी 2025 को नए प्रदेश प्रभारी कृष्णा अल्लावारु आ गए. अल्लावारु के फीडबैक पर पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष बदल दिया. राहुल गांधी का कहना है कि बिहार में कांग्रेस की खोई ताकत हासिल करने के लिए वे बार-बार बिहार आने को तैयार हैं. कांग्रेस को पुनर्जीवित करने की उन्होंने प्रतिबद्धता जताई है।
अल्लावारु ने अलख जगाया
प्रदेश प्रभारी कृष्णा अल्लावारु बिहार आए तो उन्होंने महागठबंधन के घटक दलों से दूरी बना ली. वे जिलों का दौरा करते रहे. पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं की सुनते रहे. उसके बाद उन्होंने पार्टी हाईकमान को अपना फीडबैक दिया. राहुल गांधी की इस साल हुई पहली यात्रा के महीने भर बाद कृष्णा अल्लावारु बिहार आए थे. आते ही उन्होंने जो कहा, उससे कांग्रेस में बदलाव के संकेत मिल गए थे. उन्होंने कहा कि बिहार कांग्रेस की पुरानी धरती है. सबके साथ मिल कर कांग्रेस को फिर से मजबूत करेंगे. उन्होंने पार्टी की मजबूती के लिए काम करने का संकल्प दोहराया।
प्रदेश अध्यक्ष बदल दिए गए
कृष्णा अल्लावारु आए तो उन्होंने महागठबंधन को लीड करने वाली पार्टी आरजेडी के प्रमुख से मिलना जरूरी नहीं समझा. हालांकि, मुलाकात उन्होंने बहुत बाद तब की, जब लालू यादव बीमार होकर दिल्ली एम्स में भर्ती हैं. अल्लावारु की ही पहल पर अखिलेश प्रसाद सिंह की अध्यक्ष पद से छुट्टी हो गई. अखिलेश सिंह और लालू के रिश्तों के बारे में सबको पता है. लालू यादव के घर अखिलेश सिंह की आसानी से आवाजाही दोनों के संबंधों को बताने के लिए काफी है. वैसे लालू यादव भी यह नहीं छिपाते कि उन्होंने उनके लिए क्या किया है. अध्यक्ष पद से उनका हटाया जाना लालू की अथॉरिटी को सीधी चुनौती है. यह लालू यादव को बिदकाने जैसा काम है।
कन्हैया तो आते ही काम पर
अल्लावारु के पीछे एनएसयूआई के कन्हैया कुमार भी धमक गए. आते ही वे काम पर भी लग गए. कांग्रेस को मजबूत करने के लिए उन्होंने युवाओं पर फोकस किया. नौकरी और पलायन के मुद्दे पर उन्होंने यात्रा प्लान कर आलाकमान की हरी झंडी ले ली. लालू यादव और तेजस्वी से कन्हैया के रिश्तों के बारे में बताने की जरूरत नहीं. वर्ष 2019 के संसदीय चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने कन्हैया को बेगूसराय से अपना प्रत्याशी घोषित किया. आरजेडी से भाकपा के अच्छे रिश्ते थे.
कन्हैया कुमार भूमिहार जाति से आते हैं और बेगूसराय भूमिहारों का गढ़ माना जाता है. कम्युनिस्टों का कभी बेगूसराय में इस कदर दबदबा रहा है कि आज भी इसे लोग बिहार का लेनिनग्राद ही बोलते हैं. मुसलमानों में भी कन्हैया की लोकप्रियता जेएनयू में अध्यक्षी के समय से रही है. कन्हैया के बिहार की सियासत में जमने से लालू को अपने बेटे तेजस्वी के लिए खतरा महसूस हुआ. उन्होंने बेगूसराय में आरजेडी का उम्मीदवार उतार दिया. कहते हैं कि भाकपा से अच्छे रिश्ते के बावजूद लालू ने ऐसा इसलिए किया कि तेजस्वी की राह में कोई कांटा न रहे. उस चुनाव में कन्हैया को ठीक-ठाक वोट मिले, लेकिन आरजेडी के उम्मीदवार के कारण वे तीसरे नंबर पर चले गए. चर्चा है कि अब कन्हैया बिहार में ही पांव जमाएंगे. पार्टी से हरी झंडी मिल चुकी है. कांग्रेस द्वारा लालू को बिदकाने का यह दूसरा कारण है।
अब पप्पू को कांग्रेस ने जोड़ा
तीसरा कारण पप्पू यादव हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले से ही कांग्रेस का आदमी कहलाने के लिए पप्पू बेचैन रहे हैं. इसके लिए उन्होंने अपनी जन अधिकार पार्टी ही कांग्रेस में मिला दी. पूर्णिया से चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस ने टिकट का आश्वासन भी दिया, जैसा पप्पू मीडिया को बताते रहे. कांग्रेस के कहने पर उन्होंने लालू दरबार में मत्था भी टेका. पर, आरजेडी ने अपना उम्मीदवार उतार दिया. नामांकन का फार्म खरीद कर पप्पू कांग्रेस के सिंबल का इंतजार करते रहे. पर्चा दाखिले की तारीख बदलते रहे. लालू के आगे तब कांग्रेस ही लाचार थी, फिर वह पप्पू के साथ कैसे खड़ी होती!आखिरकार पप्पू ने निर्दलीय चुनाव लड़ा. उन्हें हराने के लिए तेजस्वी 40 विधायकों का दस्ता लेकर वहां जम गए. पप्पू को हराने के लिए तेजस्वी ने एनडीए को वोट देने तक की अपील तक कर दी. इसके बावजूद पप्पू जीत गए. तब से वे कांग्रेस का वरदहस्त पाने का प्रयास करते रहे हैं. अब यह अवसर कांग्रेस ने उन्हें दे दिया है. अहमदाबाद में होने वाली एआईसीसी की बैठक में शामिल होने का आखिरी वक्त पप्पू को न्योता मिल गया. तेजस्वी के लिए कन्हैया के बाद पप्पू यादव का आना शुभ तो नहीं माना जा सकता।
CM फेस पर पेच फंसा दिया
कांग्रेस महागठबंधन की पार्टनर है, पर उसकी गतिविधियां अचानक आजाद इकाई की तरह दिखने लगीं. इससे सियासी सर्किल में यह चर्चा छिड़ गई कि क्या कांग्रेस महागठबंधन से अलग मुकाबला करेगी. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसद तारिक अनवर को जब यह कहना पड़ा कि इस बाबत पार्टी को स्पष्ट करना चाहिए. कांग्रेस कोर कमेटी ने इस संशय को तो खत्म कर दिया, लेकिन सीएम के सवाल पर पेंच फंसा दिया. अल्लावारु ने बताया कि सीएम का चेहरा तय करने और उसके नाम की घोषणा चुनाव से पहले होगी या बाद में, यह अभी तय नहीं हुआ है. इसका फैसला महागठबंधन के दल मिल कर करेंगे. उनका यह बयान लालू के इस दावे को चुनौती है, जिसमें उन्होंने कहा कि कोई माई का लाल तेजस्वी को सीएम बनने से नहीं रोक सकता।
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