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भ्रष्टाचार एक विश्वव्यापी समस्या… मर्ज बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा की

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ललित गर्ग

दुनियाभर में 9 दिसंबर  को अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस मनाया जाता है। इस दिवस का उद्देश्य भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों में जागरूकता फैलाना है। इस दिवस को मनाते हुए सभी सरकारी, प्राइवेट, गैर-सरकारी सस्थाएं एवं नागरिक संगठन भ्रष्टाचार के खिलाफ एकजुटता से लड़ाई लड़ने का संकल्प लेते हैं। 31 अक्टूबर 2003 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक प्रस्ताव पारित कर अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस मनाये जाने की घोषणा की। 2023 की थीम ‘भ्रष्टाचार के खिलाफ दुनिया को एकजुट करना’ है। भ्रष्टाचार के खिलाफ सम्पूर्ण राष्ट्र एवं दुनिया का इस जंग में शामिल होना, एक शुभ घटना कही जा सकती है, क्योंकि भ्रष्टाचार आज किसी एक देश की नहीं, बल्कि सम्पूर्ण विश्व की समस्या है। जैसे-जैसे इस दिवस को मनाने की सार्थकता एवं व्यापकता सफलता की ओर बढ़ी, वैसे-वैसे एक शंका जोर पकड़ती जा रही है कि एक शुभ शुरुआत का असर बेअसर न हो जाये क्योंकि यह समस्या कम होने की बजाय दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। यह शंका बेवजह भी नहीं है, क्योंकि यह जंग उन भ्रष्टाचारियों से हैं जो एक बड़ी ताकत बन चुके हैं।


असल में राजनीतिक दुर्बलता के कारण ही बढ़ती है। हम सब जानते है सत्ता में बैठे कुछ व्यक्ति, आम जनता के साथ भ्रष्ट-व्यवहार करते है और उनकी स्वतंत्रता, स्वास्थ्य, जीवन और भविष्य छीन लेते है। जिसके बाद भ्रष्टाचार हर देश, क्षेत्र, समुदाय को प्रभावित करता है और कोई भी इस अपराध से अछूता नहीं है, जिसके लिए भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में हमे भाग लेना चाहिए। असल में भ्रष्टाचार से लड़ना एक बड़ी चुनौती है, उसके विरुद्ध जन-समर्थन तैयार किया जाना जरूरी है, सभी गैर-राजनीतिक एवं राजनीतिक शक्तियों को उसमें सहयोग देना चाहिए। भ्रष्टाचार क्या है? सार्वजनिक जीवन में स्वीकृत मूल्यों के विरुद्ध आचरण को भ्रष्ट आचरण समझा जाता है। आम जन जीवन में इसे आर्थिक अपराधों से जोड़ा जाता है। भ्रष्टाचार में मुख्य हैं-घूस (रिश्वत), चुनाव में धांधली, सेक्स के बदले पक्षपात, हफ्ता वसूली, जबरन चन्दा लेना, अपने विरोधियों को दबाने के लिये सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग, न्यायाधीशों द्वारा गलत या पक्षपातपूर्ण निर्णय, ब्लैकमेल करना, टैक्स चोरी, झूठी गवाही, झूठा मुकदमा, परीक्षा में नकल, परीक्षार्थी का गलत मूल्यांकन-सही उत्तर पर अंक न देना और गलत, अलिखित उत्तरों पर भी अंक दे देना, पैसे लेकर संसद में प्रश्न पूछना, पैसे लेकर वोट देना, वोट के लिये पैसा और शराब आदि बाँटना, पैसे लेकर रिपोर्ट छापना, अपने कार्यों को करवाने के लिये नगद राशि देना, विभिन्न पुरस्कारों के लिये चयनित लोगों में पक्षपात करना, आदि। भारत में भ्रष्टाचार की समस्या इतनी उग्र है कि हर व्यक्ति इससे पीड़ित एवं प्रताड़ित है।

असल में भ्रष्टाचार एक विश्वव्यापी समस्या है। भारत में इसने कहर ढ़ाया है। इसके खिलाफ लड़ाई डेढ अरब़ जनता के हितों की लड़ाई है, जिसे हर व्यक्ति को लड़ना होगा। ‘वही हारा जो लड़ा नहीं’- अब अगर हम नहीं लड़े तो भ्रष्टाचार की आग हर घर को स्वाहा कर देगी। नेहरू से मोदी तक की सत्ता-पालकी की यात्रा, लोहिया से राहुल-सोनिया तक का विपक्षी किरदार, पटेल से अमित शाह तक ही गृह स्थिति, हरिदास से हसन अली तक के घोटालों की साईज। बैलगाड़ी से मारुति, धोती से जीन्स, देसी घी से पाम-ऑयल, लस्सी से पेप्सी और वंदे मातरम् से गौधन तक होना हमारी संस्कृति का अवमूल्यन- ये सब भारत हैं। हमारी कहानी अपनी जुबानी कह रहे हैं। जिसमें भ्रष्टाचार व्याप्त है। आजादी के बाद से ही देश की जनता भ्रष्टाचार से जूझ रही है और भ्रष्टाचारी मजे कर रहे हैं। पंचायतों से लेकर संसद तक भ्रष्टाचार का बोलबाला है। मोदी के सख्त चेतावनी के बावजूद सरकारी दफ्तरों के चपरासी से लेकर आला अधिकारी तक बिना रिश्वत के सीधे मुंह बात तक नहीं करते। भ्रष्टाचार के कारण जहां देश के राष्ट्रीय चरित्र का हनन होता है, वहीं देश के विकास की समस्त योजनाओं का उचित पालन न होने के कारण जनता को उसका लाभ नहीं मिल पाता। अधिकांश धन कुछ लोगों के पास होने पर गरीब-अमीर की खाई दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। समस्त प्रकार के करों की चोरी के कारण देश को भयंकर आर्थिक क्षति उठानी पड़ रही है। देश की वास्तविक प्रतिभाओं को धुन लग रहा है। भ्रष्टाचार के कारण कई लोग आत्महत्याएं भी कर रहे हैं। भ्रष्टाचार रूपी बुराई ने कैंसर की बीमारी का रूप अख्तियार कर लिया है। ‘मर्ज बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा की’ वाली कहावत इस बुराई पर भी लागू हो रही है। अब तो हालत यह हो गई है कि हमारा देश भ्रष्टाचार के मामले में भी लगातर तरक्की कर रहा है। विकास एवं आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर भारत भ्रष्टाचार के मामले में नित नये कीर्तिमान बना रहा है।

भले ही मोदी की भ्रष्टाचार विरोधी हुंकार के बाद देश में व्यापक बदलाव आया है। नोटबंन्दी एवं जीएसटी जैसे कठोर आर्थिक निर्णयों ने आर्थिक भ्रष्टाचार पर लगाम लगायी है।  लेकिन अभी भी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर एक नयी राजनीतिक शक्ति को संगठित करने की जरूरत है। हर राष्ट्र के सामने चाहे वह कितना ही समृद्ध हो, विकसित हो, कोई न कोई चुनौती रहती है। चुनौतियों का सामना करना ही किसी राष्ट्र की जीवन्तता का परिचायक है। चुनौती नहीं तो राष्ट्र सो जायेगा। नेतृत्व निष्क्रिय हो जायेगा। चुनौतियां अगर हमारी नियति है, तो उसे स्वीकारना और मुकाबला करना हमें सीखना ही होगा और इसके लिये हर व्यक्ति को मोदी बनना होगा। हमारे राष्ट्र के सामने अनैतिकता, महंगाई, बढ़ती जनसंख्या, प्रदूषण, आर्थिक अपराध आदि बहुत सी बड़ी चुनौतियां पहले से ही हैं, उनके साथ भ्रष्टाचार सबसे बड़ी चुनौती बनकर खड़ी है। राष्ट्र के लोगों के मन में भय, आशंका एवं असुरक्षा की भावना घर कर गयी है। कोई भी व्यक्ति, प्रसंग, अवसर अगर राष्ट्र को एक दिन के लिए ही आशावान बना देते हैं तो वे महत्वपूर्ण होते हैं। पर यहां तो निराशा और भय की लम्बी रात की काली छाया व्याप्त है। मोदी के रूप में एक भरोसा जगा क्योंकि मनमोहन सिंह की सरकार ‘जैसा चलता है, वैसे चलता रहे’ में विश्वास रखती थी, जिससे भ्रष्टाचार की समस्या को नये पंख मिले। उन्हें इस बात को समझना चाहिए था कि वे देश के प्रधानमंत्री है, राष्ट्र के हितों की रक्षा उनका पहला दायित्व है। उन्होंने टू-जी स्पैक्ट्रम घोटाले पर शुरू में लीपापोती की, थामस की सीवीसी पद पर नियुक्ति का जमकर बचाव किया, खेलों में भ्रष्टाचार को नजरअंदाज किया। ऐसा बहुत कुछ कहा जिससे साबित हुआ कि वे काजल की कोठरी में रहते हुए खुद अपने को और अपनी सरकार के कपड़ों को पूरी तरह धवल दिखाना चाहते थे और ऐसा करते हुए वे देश की आत्मा को तार-तार करते रहे, देश की अस्मिता एवं अस्तित्व को दागदार बनाते रहे।

दुनिया के कई विकसित देशों में भ्रष्टाचार एक जायज व्यापारिक-राजनीतिक कार्रवाई है। संस्कृतियों के बीच अंतर ने भी भ्रष्टाचार के प्रश्न को पेचीदा बनाया है। भ्रष्टाचार का मुद्दा एक ऐसा राजनीतिक प्रश्न है जिसके कारण कई बार न केवल सरकारें बदल जाती हैं। बल्कि यह बहुत बड़े-बड़े ऐतिहासिक परिवर्तनों का वाहक भी रहा है। नदी में गिरी बर्फ की शिला को गलना है, ठीक उसी प्रकार भ्रष्टाचार से जुड़े तत्वों को भी एक न एक दिन हटना है। यह स्वीकृत सत्य है कि जब कल नहीं रहा तो आज भी नहीं रहेगा। उजाला नहीं रहा तो अंधेरा भी नहीं रहेगा। कभी गांधी लड़ा तो कभी जयप्रकाश नारायण ने मोर्चा संभाला, अब यह चुनौती मोदी ने झेली है तो उसे उनको अंजाम तक पहुंचाना होगा और इसकी पहली शर्त है वे गांधी बने। वह गांधी जिसे कोई राजनीतिक ताप सेक न सका, कोई पुरस्कार उसका मूल्यांकन न कर सका, कोई स्वार्थ डिगा न सका, कोई लोभ भ्रष्ट न कर सका। भ्रष्टाचार आयात भी होता है और निर्यात भी होता है। पर इससे मुकाबला करने का मनोबल हृदय से उपजता है। आज आवश्यकता केवल एक होने की ही नहीं है, आवश्यकता केवल चुनौतियों को समझने की ही नहीं है, आवश्यकता है कि हमारा मनोबल दृढ़ हो, चुनौतियों का सामना करने के लिए हम ईमानदार हों और अपने स्वार्थ को नहीं परार्थ और राष्ट्रहित को अधिमान दें। अन्यथा कमजोर और घायल राष्ट्र को खतरे सदैव घेरे रहेंगे।

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