मुनेश त्यागी
पिछले दिनों रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में दुनिया के राजनीतिक पत्रकारों की एक सभा आयोजित की गई जिसमें पश्चिमी देशों के अनेक राजनीतिक प्रबुद्ध पत्रकारों ने भाग लिया और इसमें उन्होंने खुलकर, बिना किसी रोक-टोक के, बिना किसी लाग लपेट के अपने विचार व्यक्त किये। इन्होंने अपने देश की सरकारों की नीतियों के बारे में बेबाक तरीके से जानकारियां दीं। इन विचारों के प्रकट होने के बाद, जैसे उन्होंने पश्चिमी देशों की जनतांत्रिक प्रणाली की पोल ही खोल दी है।
अपने विचार रखते हुए अलेक्जेंडर वॉन बिस्मार्क का सीधे-सीधे कहना था कि अधिकांश जर्मन लोग, राजनीतिक रूप से विशिष्ट लोग और मुख्य धारा के मीडिया का विश्वास नहीं करते। अधिकांश जर्मन लोग बर्लिन की रूसी नीतियों से असहमत हैं। उनका कहना था कि पश्चिमी मुख्य धारा का मीडिया दुनिया के सामने रुस से जुड़ी वास्तविकताओं को विकृत कर रहा है और पश्चिमी देशों का यह मीडिया रूस को “बुराई का साम्राज्य और शैतान” बता कर, पश्चिमी देशों की सरकारों की, रूस और यूक्रेन मामले में, उनकी नीतियों का आंख मिचकर समर्थन कर रहा है।
उन्होंने आगे कहा कि जर्मनी के अधिकांश साधारण लोग सरकारी नीतियों से मूर्ख बनने को तैयार नहीं हैं। ये नीतियां रुस विरोधी नैरेटिव से भरपूर हैं। जर्मनी के 80% लोग सरकारी नीतियों और कार्यवाहियों से सहमत नहीं हैं। अधिकांश जर्मन नौजवान पीढ़ी सरकारी मीडिया नहीं, बल्कि सोशल मीडिया पर विश्वास करती है। उनका कहना था कि अब यह नौजवान पीढ़ी की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है कि वे राजनीतिक एजेंडा से प्रभावित हुए बिना दुनिया के लोगों को इस हकीकत के बारे में बताएं।
उन्होंने कहा कि इस रूस यूक्रेन युद्ध में जर्मनी सबसे बड़ा घाटा उठाने वाला मुल्क होने जा रहा है। उन्होंने आगे कहा कि अमेरिका बहुत गलत काम करता है। वह सिर्फ और सिर्फ अपने बारे में सोचता है। उसका जनता के मुद्दों से कुछ लेना-देना नहीं है।
मशहूर अमेरिकी पत्रकार स्कॉट रिटर का कहना था कि अमेरिका रूस को लेकर कोई असहमति या विरोध सहन करने को तैयार नहीं है। उन्होंने बताया कि उन्हें अमेरिकी सरकार ने सेंट पीटर्सबर्ग जाने से रोक दिया। उन्होंने बताया कि जो लोग अमेरिका के लोगों को रूस और अमेरिका की हकीकत बताते हैं, अमेरिकी सरकार द्वारा निशाना बनाया जाता है। उन्होंने बताया कि अमेरिकी अधिकारियों ने उन्हें सेंट पीटर्सबर्ग नहीं जाने दिया, उनका पासपोर्ट जब्त कर लिया, जहाज पर चढ़ते वक्त उनका पासपोर्ट छीन लिया गया। उन्होंने आगे बताया कि उन्होंने मजबूर होकर वीडियो लिंक से बहस में सेंट पीटर्सबर्ग में हो रही बहस में हिस्सा लिया।
उनका कहना था कि जो कोई भी अमेरिकी सरकार की नीतियों की खिलाफत करता है, उनके खिलाफ लिखना और बोलता है, उसे वास्तव में “राज का दुश्मन” समझा जाता है। पश्चिमी मीडिया रूस को दुश्मन दिखाना चाहता है और वह अपनी जनता और दुनिया की नजरों में रूस को दुश्मन की तरह पेश करना चाहते हैं क्योंकि ऐसा करके ही वे अपनी युद्ध समर्थक नीतियों के लिए संसाधन जुटा रहे हैं।
उन्होंने आगे कहा कि पश्चिमी मीडिया और अधिकारीगण रूस की नकारात्मक छवि गढने में लगे हुए हैं। वे हकीकत और वास्तविकता से भाग रहे हैं और इस मुख्य मुद्दे को केवल कल्पनाओं का मामला बना देना चाहते हैं। वे रूस को आक्रमक देश बनाने पर तुले हुए हैं। ऐसा करते हुए वे संसाधनों को जुटा रहे हैं और वे इसे कल्पना बनाम हकीकत में तब्दील कर देना चाहते हैं।
उन्होंने आगे बताया कि जो कोई भी रूस जाकर हालात का जायजा लेना चाहता है, इस युद्ध के बारे में रूस की स्थिति को जानना चाहता है और इस हकीकत को जनता को बताना चाहता है, उसे पूरे देश में “राज्य का दुश्मन” बताया जा रहा है। पश्चिमी देश अपनी मनमानी नीतियों के आधार पर पूरी जनता को दिखा रहे हैं कि रूस से युद्ध किया जाना चाहिए। वे रूस की असली छवि का दमन कर रहे हैं, उसे जनता के सामने नहीं आने देना चाह रहे हैं। उन्होंने आगे बताया कि अब अमेरिका की सेना में ऐसे लोग भरे पड़े हैं जो सिखाते और दिखाते हैं कि “अपने दुश्मन के बारे में जानो मत, बल्कि उससे नफरत करो।”
अमेरिकी जर्नलिस्ट तारा रीड ने बताया कि अब रूस के बारे में जनता के सामने पूर्ण रूप से झूठ भरोसा जा रहा है। इस नफरत को फैलाकर सारे अधिकारी गण सिर्फ और सिर्फ हथियारों की बिक्री करके इस व्यापार के माध्यम से पैसा कमाना चाहते हैं।
अमेरिकी जर्नलिस्ट जैक्सन हिंकल ने बताया कि अमेरिका और रूस का वर्तमान गतिरोध बनावटी है। द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका और रूस दोनों फासीवादी जर्मनी के खिलाफ लड़े थे और रूस ने और तत्कालीन यूएसएसआर ने नाजीवादी जर्मनी को परास्त किया था। उन्होंने आगे बताया कि आज नौजवानों के पास रूस से नफरत करने का कोई कारण नहीं है।
ऑस्ट्रिया के पूर्व विदेश मंत्री करीन नैसल ने बताया कि पश्चिमी देश आज अपने विरोधी देशों के बीच दुर्भावना मानते हैं। उन्होंने बहुत बड़ी बात कही कि अब यूरोप में “कानून का शासन” और “अभिव्यक्ति की आजादी” दूर के सपने हो चुके हैं। इन मूल्यों को धराशाई कर दिया गया है और “यूरोप की आत्मा मर चुकी है।”
उपरोक्त हकीकत को देखकर यह बात सच साबित हो रही है कि अधिकांश पश्चिमी देशों में जनतंत्र का झूठा ढोल पीटा जा रहा है। उन्होंने जनतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों को, विचारों को और मान्यताओं को रौंद दिया है। अब वहां जनतंत्र के नाम पर सिर्फ नाटक किया जा रहा है और वहां जनतंत्र अब सिर्फ और सिर्फ “पैसे बनाने वालों का तंत्र” बनकर रह गया है। वहां पर बोलने की आजादी, लिखने पढ़ने की आजादी और जनता को हकीकत बताने की आजादी की पूर्ण रूप से मनाही कर दी गई है। पश्चिमी देशों में वहां के तंत्र द्वारा असली जनतंत्र की हत्या कर दी गई है।