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वैश्विक फलक : विकसित देशों में विकास

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सुधा सिंह

2010 में अमेरिका में गल्फ़ कोस्ट पर बीपी कंपनी पेट्रोल के लिए समुद्र में खुदाई कर रही थी. अकस्मात् रिग की दीवार से मीथेन गैस का रिसाव होने लगा. ब्लास्ट हुआ, दस कर्मी मरे और तेल कुँवा फाड़  कर समुद्र में रिसने लगा. कई महीनों तक यह रिसाव चला. यदि हम सोचे तो इसमें अनहोनी क्या थी. हो जाता है, ऐसे एक्सीडेंट तो होते ही रहते हैं.

         नॉट सो फ़ास्ट. एक विकसित देश में नहीं. इनक्वायरी हुई, बीपी को इंडिक्ट किया गया कि कुवें को प्लास्टर करने में जो सीमेंट का प्रयोग किया गया था उस पर प्रोटोकॉल के अनुरूप टेस्ट नहीं किया गया था. अलग अलग तरह के मुक़दमे चले.

        पहले मुक़दमे में बीपी पर फाइन और पेनल्टी लगी लगभग चार बिलियन डालर. इन पैसों से ही बिलियन खर्च कर ट्रस्ट बनाया गया जो ऐसे केस की जाँच पड़ताल करेगा. चूँकि तेल बहता हुआ समुद्र तट तक आ गया था. तो क्लास एक्शन ला सूट में फ़ैसला दिया गया कि इस बहते तेल की वजह से किसी भी नागरिक को कोई दिक़्क़त हुई हो एक एक को मुआवज़ा मिलेगा.

        लाखों लोगों को मुआवज़ा मिला – लगभग बीस बिलियन डॉलर कंपनी के इसमें खर्च हुवे. 

अभी फाइन वाला चैप्टर समाप्त नहीं हुआ. ट्रस्ट ने निर्धारित किया कि ऐसे हर केस में जितने गैलन तेल बह गया है प्रति गैलन लगभग 4300 डालर सरकार को फाइन देना होगा. कल्पना कीजिये तेल बिकता है सौ डालर, बह गया तो 4300 डालर फाइन.

       कंपनी ने बिलियंस फाइन दिया. साथ ही ज़ाहिर सी बात है एक एक बूँद तेल साफ़ करवाना पड़ा समुद्र में ढूँढ ढूँढ कर. सब मिला कर लगभग 65 बिलियन डालर खर्च हुवे फाइन मुआवज़े और क्लीन अप में अर्थात् पाँच लाख करोड़ रुपये नगद कंपनी को भुगतना पड़े.

        यह होता है विकास. विकास यह नहीं होता कि कहीं भी कुछ भी खोद दिया. विकास यह नहीं होता कि ग्लेशियर की राख के ढेर पर पूरा शहर बन गया बग़ैर ड्रेनेज के. जिसका जहां मन हुआ होटल बना दिया, घर बना दिया, इसे विकास नहीं विनाश कहते हैं.

        विकास में घर की दीवार का एक ईंट रखने से पूर्व ड्रेनेज सीवेज़ सब क्लीयर होता है. सड़क के शिलान्यास से पूर्व नालियाँ बन जाती हैं. 

जोशी मठ में जो हो रहा है यह नया क़िस्सा नहीं. भोपाल गैस त्रासदी से लेकर जोशी मठ तक की दुर्घटनाएँ स्पष्ट उदाहरण हैं कि विकास का अर्थ कहीं भी कुछ भी कैसे भी बना देना नहीं होता. पर्यटन स्थल है, विकास की अति आवश्यकता है.

      प्रॉपर विकास. ये नहीं कि अग़ल बग़ल सटे सटे दस होटल बना दिये गये जिनमे न ड्रेनेज है न सीवर और बाद में जब एक्सीडेंट हो जाये तो विकास के नाम का मातम मनाना.

        भारत ग्रोविंग कंट्री है. सख़्त आवश्यकता है हाउसिंग ज़ोनिंग कंस्ट्रक्शन के आधुनिक विश्व के नियम लाने की और नियमों का पालन न करने पर दसियों गुना अर्थ दंड लगाने की.

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