*प्रसिद्ध गांधीवादी काशीनाथ त्रिवेदी की स्मृति में व्याख्यान व्याख्यान देंगे*
इंदौर। प्रसिद्ध ऊर्जा वैज्ञानिक डॉ अनिल काकोडकर 16 फरवरी को इंदौर आएंगे वह यहां प्रसिद्ध गधीवादी काशीनाथ त्रिवेदी की स्मृति में आयोजित व्याख्यान माला में व्याख्यान देंगे कार्यक्रम 16 फरवरी को शाम 5:00 बजे अभिनव कला समाज सभागृह में आयोजित किया गया है ।

बालशिक्षण और बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा को समर्पित दादा श्री काशिनाथ त्रिवेदी की स्मृति में आयोजित व्याख्यानमाला में डा० काकोड़कर के विचारों से प्रेरणा और मार्गदर्शन दोनों मिलेंगे।
श्री काशिनाथ त्रिवेदी
मध्यभारत और मध्यप्रदेश की गांधी और सर्वोदय विचार पर आधारित कई संस्थाओं और रचनात्मक कार्यकर्ताओं की एक पूरी पीढ़ी के प्रेरणास्रोत, ‘निमाड़ के गांधी’ नाम से जाने वाले स्व० श्री काशिनाथ त्रिवेदी का लगभग ७ दशकों का सार्वजनिक जीवन गांधीवादी रचनात्मक कार्यक्रम के प्रचार को समर्पित रहा।
धार जिले के आदिवासी क्षेत्र टवलाई में उनके द्वारा स्थापित ‘ग्राम भारती आश्रम’ ने गांधीवादी विकेन्द्रित ग्रामोन्मुखी स्वावलम्बी विकास प्रणाली का क्षेत्र के ग्रामीण अंचल में प्रत्यक्ष प्रयोग किया, और खादी, कृषि, आदिवासी बाल शिक्षण के माध्यम से क्षेत्र के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
मध्यप्रदेश की रचनात्मक संस्थाओं गांधी स्मारक निधि, मध्यप्रदेश सर्वोदय मंडल, भूदान यज्ञ बोर्ड, आदि के मंत्री/अध्यक्ष पदों से प्रदेश में रचनात्मक गतिविधियों का संयोजन, संचालन, और कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण, मार्गदर्शन का कार्य किया। उनके द्वारा संपादित, प्रकाशित पत्रिकाएं ‘भूमिक्रान्ति’ और ‘शताब्दी सन्देश’ भूदान और सर्वोदय विचार को कार्यकर्ताओं और जनता तक पहुंचाने का प्रमुख माध्यम बनीं।
लगभग १२५ से अधिक ग्रंथों का गुजराती से हिन्दी में अनुवाद कर गांधी विचार, सर्वोदय, बाल शिक्षण और लोकशक्ति विकास संबंधी हिन्दी साहित्य की समृद्धि और संवर्धन में श्री त्रिवेदी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उनके अनुवादों के माध्यम से महात्मा गांधी, आचार्य विनोबा, लोकनायक जयप्रकाश, गिजुभाई बधेका आदि के प्रमुख ग्रंथ हिन्दी भाषी पाठकों को उपलब्ध हुए।
बालशिक्षण और समाज में बच्चों के अधिकार और उनके सर्वांगीण विकास की चेतना जगाने में श्री त्रिवेदी की प्रमुख भूमिका रही है। अपने शिक्षामंत्री काल में मध्यभारत के शासकीय विद्यालयों में बालकों के शारीरिक प्रताड़न पर प्रतिबंध से लेकर नईतालीम के प्रसार, हिन्दी ‘शिक्षणपत्रिका’ के संचालन, संपादन; गिजुभाई ग्रंथमाला से उन्होंने बालशिक्षण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
स्वतंत्र भारत को ऊर्जा, आधारभूत उच्च तकनीक एवं विज्ञान और प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भर बनाने में, डा० अनिल काकोड़कर का अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान रहा है। मध्यप्रदेश के बड़वानी में १९४३ में जन्मे, डा० काकोड़कर की आरंभिक शिक्षा खरगोन से शुरू होकर मुंबई में मेकेनिकल इंजीनियरिंग और इंग्लैण्ड से स्नातकोत्तर अध्ययन तक हुई। १९६४ में भाभा परमाणु अध्ययन केंद्र (BARC) से जुड़े डा० काकोड़कर ने परमाणु ऊर्जा में देश के सर्वोच्च पद चेयरमैन, एटामिक एनर्जी कमीशन और सचिव भारत सरकार तक पहुँच कर महत्वपूर्ण योगदान दिया।
उच्च शिक्षा के अलावा बालशिक्षा से डा० काकोड़कर का पुराना और घनिष्ठ नाता रहा है। उनकी माताजी श्रीमती कमलाताई काकोड़कर सेवाग्राम के महिलाश्रम में बालशिक्षाविद् काशिनाथजी त्रिवेदी की छात्रा रहीं, और प्रख्यात बालशिक्षा विचारक मारिया मांटेसोरी से उन्होंने मांटेसोरी पद्धति और बालवाड़ी संचालन का प्रशिक्षण लिया। डा० काकोड़कर ने आणविक ऊर्जा संस्थानों द्वारा चलाए जाने वाले विद्यालयों में शैक्षणिक नवाचारों की कई नई परम्पराएँ स्थापित कीं। पूर्व प्राथमिक और प्राथमिक शिक्षा के बालकों के विकास में महत्व का विचार उन्होंने बचपन से ही अपनी माताजी से समझा।